सागर: पिछले कई सालों से सोयाबीन की फसल का उचित भाव न मिलने से नाराज मध्यप्रदेश के किसान आर पार के मूड में आ गए हैं. रविवार से प्रदेश भर में आंदोलन का आगाज हो गया है. किसानों का कहना है कि पिछले 10 साल से प्रदेश में सोयाबीन का भाव न्यूनतम स्तर पर है. इसको लेकर किसानों में काफी नाराजगी है और सोयाबीन की फसल के उचित दाम की मांग लेकर आंदोलन शुरु किया गया है. खास बात ये है कि आंदोलन के लिए किसान संगठनों का मोर्चा बनाया गया है और चरणबद्ध आंदोलन का ऐलान किया गया है.
आज से प्रदेश व्यापी आंदोलन की शुरुआत
देश में सोयाबीन राज्य के नाम से पहचान रखने वाले मध्यप्रदेश के किसान सोयाबीन के दामों को लेकर लंबे आंदोलन का आगाज आज एक सितंबर से कर चुके हैं. हालत ये हैं कि सोयाबीन की फसलों का किसानों को आज भी वही दाम मिल रहा है, जो 10 साल पहले मिलता था. किसान संगठनों का कहना है कि 2023-24 में सोयाबीन का वो दाम मिल रहा है जो 2013-14 में मिलता था. आज सोयाबीन राज्य में किसान ठगा हुआ महसूस कर रहा है. क्योंकि उसे फसल 10 साल पुराने दामों पर बेंचना पड़ रही है. जबकि 10 सालों में लागत कई गुना बढ़ चुकी है.
किसान की लागत निकलना भी मुश्किल
सोयाबीन के दामों को लेकर किसानों के हालात ये हो गए हैं कि फसल बुवाई से लेकर रखरखाव और कटाई तक की लागत निकालना मुश्किल हो गया है. हर साल सोयाबीन की फसल आने के पहले दाम गिरने लगते हैं. इस साल तो सोयाबीन के दाम साढ़े तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल पर आ गए हैं. हालत ये है कि फसल की बुवाई से लेकर निंदाई, खाद, बीज और कीटनाशक का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है. जबकि सरकार ने फसल का समर्थन मूल्य 4892 रुपए तय किया गया है. ऐसे में किसानों की मांग है कि मध्य प्रदेश सरकार 1108 रुपए का बोनस घोषित कर किसानों का सोयाबीन 6 हजार प्रति क्विंटल की दर से खरीदे.
सरकार की कारपोरेट हितैषी नीतियां जिम्मेदार
भारतीय किसान यूनियन से जुड़े अनिल यादव बताते हैं कि, ''पिछले कई सालों से कभी अल्प बरसात तो कभी अति वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल से किसानों को नुकसान झेलना पड़ा. इसके बावजूद किसान लगातार सोयाबीन के उत्पादन में सक्रिय है. सरकार की खाद्य तेल के आयात निर्यात की जो नीति है वह किसानों के हित में नहीं बल्कि पूंजीपति व्यापारियों के हित में हैं. जैसे ही फसल बाजार में आती है तो सरकार निर्यात बंद कर देती है और आयात शुरू कर देती है. इससे सोयाबीन की फसल के दाम गिरने लगते हैं.''
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ये है आंदोलन की रणनीति
आंदोलन को गांव-गांव तक पहुंचाने ग्राम पंचायत स्तर से आंदोलन की शुरुआत की गई है. पिछले कई महीनों से सोयाबीन के उचित दाम की मांग को गांव-गांव पहुंचाने किसान सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय हैं. प्रदेश के तमाम किसान संगठनों ने मोर्चा बनाकर बड़े आंदोलन की तैयारी की है. आंदोलन के पहले चरण में ग्राम पंचायत सचिव को मुख्यमंत्री के नाम का ज्ञापन सौंपा जाएगा. इसके लिए किसान संगठनों ने प्रदेश के 52 हजार गांव में से 5 हजार गांव का चयन किया है. दूसरे गांवों में भी आंदोलन को पहुंचाने संयुक्त किसान मोर्चा की टोलियां बनाई गई हैं. जो किसानों से संपर्क कर आंदोलन से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. ये आंदोलन फिलहाल 7 सितंबर तक ग्राम पंचायत स्तर पर चलेगा. फिर आगे के चरणों में आंदोलन को सक्रिय करने के लिए और किसानों को जोड़ा जाएगा.