सागर: भाजपा संगठन चुनाव के तय कार्यक्रम के तहत फरवरी तक तस्वीर साफ हो जाएगी. इस बीच मध्य प्रदेश भाजपा में उपजे असंतोष को पाटने की कोशिश और सरकार बनने पर हाशिए पर चल रहे नेताओं को एडजस्ट करने का भी भरोसा दिया गया है. खासकर बुंदेलखंड के गोपाल भार्गव और भूपेन्द्र सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को संगठन और सरकार में शामिल किए जाने की उम्मीद बन गयी है. इन नेताओं के क्रियाकलापों और नजदीकी लोगों से भी ऐसे संकेत मिल रहे हैं. मोहन यादव सरकार में शामिल नहीं किए जाने और हासिए पर धकेले जाने के बाद कई बार सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी बता चुके ये नेता इन दिनों शांत नजर आ रहे हैं.
संगठन और सरकार में किया जाएगा एडजस्ट
सियासी गलियारों में बुंदेलखंड के नाराज दिग्गज नेताओं में गोपाल भार्गव और भूपेन्द्र सिंह को एडजस्ट किए जाने की चर्चा जोरों पर है. इन नेताओं द्वारा फिलहाल बरती जा रही शांति भी ऐसे ही संकेत दे रही है. एमपी विधानसभा के सबसे ज्यादा चुनाव जीतने वाले, करीब 20 साल तक कैबिनेट मंत्री रहने वाले दिग्गज ब्राह्मण नेता के बारे में चर्चा तेज है कि फरवरी में संगठन चुनाव के बाद उन्हें सरकार में शामिल किया जा रहा है. वहीं भूपेन्द्र सिंह की मौजूदा सक्रियता बता रही है कि वो संगठन में अपनी अहम जगह बनाने के लिए प्रयासरत है. खासकर उनकी नजर प्रदेश अध्यक्ष पद पर हैं. फिलहाल वीडी शर्मा ब्राह्मण कोटे से प्रदेश अध्यक्ष हैं. विपक्ष द्वारा ओबीसी मुद्दे को दी जा रही हवा को देखते हुए भूपेन्द्र सिंह का दावा मजबूत भी नजर आ रहा है.
संगठन चुनाव बाद मंत्रिमंडल फेरबदल की उम्मीद
सियासी गलियारों में चर्चा है कि मोहन यादव मंत्रिमंडल में संगठन चुनाव के बाद बड़ा फेरबदल तय है, क्योंकि संगठन चुनाव के जरिए कई वरिष्ठ और दिग्गज विधायकों को संगठन में एडजस्ट किया जाएगा. साथ ही कई नेताओं को सरकार में एडजस्ट किया जाना है. ऐसे में चुनाव के बाद जो नेता संगठन में जगह पा चुके होंगे, उनको मंत्रिमंडल से रूखसत कर नाराज और वरिष्ठ नेताओं को जगह दी जाएगी.
लोकप्रिय चेहरों की कमी उपचुनाव में खली
विजयपुर और बुधनी उपचुनाव के परिणाम से साफ है कि मोहन यादव नए नवेले मुख्यमंत्री होने के साथ मंत्रिमंडल में बडे चेहरों की कमी चुनाव अभियान में नजर आयी. मौजूदा मंत्रिमंडल में कोई ऐसा दमदार चेहरा नजर नहीं आया, जो हर जगह सर्वमान्य हो या जाति या वर्ग विशेष के चेहरे के तौर पर पहचान रखता हो. चुनावी प्रबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के संकटमोचक कहे जाने वाले भूपेन्द्र सिंह को सरकार और संगठन में स्थान नहीं होने के कारण पार्टी उनका उपयोग नहीं कर पायी.
इसी तरह बुंदेलखंड ही नहीं एमपी के बडे़ ब्राह्मण नेता माने जाने वाले गोपाल भार्गव ने अपने आप को रहली विधानसभा तक सीमित कर लिया. दमोह के कद्दावर नेता जयंत मलैया उम्र के चलते भले कोई दावेदारी नहीं कर रहे हैं, लेकिन पार्टी या सरकार उनके अनुभव का उपयोग कर सकती है. जयंत मलैया बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के जाने माने जैन समाज का चेहरा है.
दूसरी पंक्ति के विधायकों को भी उम्मीद
दिग्गजों के अलावा मौजूदा विधायकों में कई ऐसे विधायक हैं, जो तीन और चार बार विधायक बन चुके हैं. उनकी फेहरिस्त लंबी है. सागर जिले की बात करें, तो सागर से शैलेन्द्र जैन और नरयावली से प्रदीप लारिया चौथी बार विधायक बने हैं. जैन और एससी समुदाय के कारण मंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं. छतरपुर में ओबीसी महिला नेता ललिता यादव फिर मंत्री बनने की इच्छुक हैं. टीकमगढ के हरीशंकर खटीक भी मंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं. पन्ना में दिलीप अहिरवार को स्थान मिला है, लेकिन वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह को भी मंत्रीपद की उम्मीद है.
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चुनाव से लेना चाहिए सबक
बुंदेलखंड की राजनीति की नब्ज को नजदीकी से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि 'भाजपा सरकार तीन चौथाई बहुमत के साथ बनी है, लेकिन सरकार में संतुलन की कमी है. वरिष्ठ नेताओं को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया. जबकि कांग्रेस की तगड़ी चुनौती देखते हुए चुनाव ना लड़ने वाले इच्छुक नेताओं को भी चुनाव लड़ाया गया. जब सरकार बनी, तो ज्यादातर नए नवेले चेहरे देखने मिले. जिनके पास अनुभव की कमी है. विजयपुर और बुधनी चुनाव से पार्टी को सबक लेना चाहिए कि वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का कैसे फायदा लिया जाए.'