सागर. जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर रहली मार्ग पर प्राचीन और ऐतिहासिक पटनेश्वर मंदिर (Patneshwar Mandir) है. इस मंदिर का निर्माण 300 साल पहले मराठा रानी लक्ष्मीबाई खैर ने कराया था. मराठा रानी काफी धर्म परायण थीं और उन्होंने रहली के आसपास कई मंदिरों का निर्माण कराया. कहा जाता है कि मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू प्रकट है और यह रानी लक्ष्मीबाई खैर के लिए सपना आया था, तब उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण कराया था.
रानी लक्ष्मीबाई का पड़ाव होता था रहली
दरअसल, रहली रानी लक्ष्मीबाई का एक गढ़ था और कई यात्राओं के दौरान उनका पड़ाव भी रहता था. इसी दौरान उन्होंने रहली-सागर मार्ग पर ढाना के पास शिव मंदिर और बावड़ी का निर्माण कराया था, जिसे लोग आज पटनेश्वर नाम से जानते हैं. मंदिर से शिव भक्त राम-राम महाराज की भी कहानी जुड़ी है. जो ब्रिटिश सेना में सिपाही और पटनेश्वर धाम के परम भक्त थे। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला भरता है, जहां हजारों की संख्या में शिवभक्त इकट्ठा होते हैं।
बाजीराव पेशवा से जुड़ा इतिहास
दरअसल, महाराजा छत्रसाल और बाजीराव पेशवा के युद्ध के बाद बुंदेलखंड के इतिहास में मराठाओं का उदय हुआ था. महाराजा छत्रसाल वृद्धावस्था में पहुंच गए थे. तब मुगल शासक मोहम्मद बंगश ने उन पर हमला कर दिया था. जैतपुर में युद्ध के दौरान छत्रसाल हार रहे थे. इस दौरान उन्होंने कई हिंदू राजाओं से मदद मांगी थी लेकिन मुगलों से टकराने कोई तैयार नहीं था. तब बाजीराव पेशवा ने छत्रसाल की मदद की और छत्रसाल ने युद्ध जीतने पर बुंदेलखंड में बाजीराव पेशवा के लिए उपहार स्वरूप कई गढ़ भेंट किए थे. बाजीराव पेशवा ने अपने विश्वस्त गोविंद राव खेर के लिए ये इलाका सौंपा था और फिर गोविंद राव खैर की वंशज रानी लक्ष्मी बाई ने ये मंदिर बनवाया
रानी लक्ष्मी बाई ने किया कई मंदिरों का जीर्णोद्धार
रानी लक्ष्मी बाई खैर बहुत धार्मिक थीं और रहली उनका गढ़ होने की वजह से उन्होंने कई मंदिर बनवाए और कई प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया. रहली में उन्होंने रानगिर हरसिद्धि माता मंदिर, टिकीटोरिया में सिंह वाहिनी मंदिर और पंढरपुर में विट्ठल मंदिर का निर्माण कराया था. इस दौरान जब वह रहली जाती थीं, तो ढाना के पास पटना गांव में विश्राम करती थीं. यहीं उन्हें सपना आया था और उन्होंने पटना गांव में शिव मंदिर और बावड़ी का निर्माण कराया. तभी से गांव को पटनेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था और मंदिर को करीब 300 साल हो चुके हैं