लखनऊ: बीजेपी के जिलाध्यक्ष चयन में सिफारिश के जोर देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने वीटो लगा दिया है. संघ ने लगातार सिफारिशी नेताओं के आगे बढ़ाए जाने को लेकर नाराजगी जताई है. स्क्रीनिंग और कड़ी हो गई है.
कुछ समय पहले प्रदेश भाजपा नेतृत्व की समन्वय बैठक नोएडा में हुई थी. राज्य के संगठनात्मक चुनाव का मुद्दा गूंजा था. प्रांच प्रचारकों ने अपना फीडबैक दिया था, जिसमें मंडल चुनाव के बाद जिलाध्यक्ष चयन की चल रही प्रक्रिया में कैडर कार्यकर्ताओं की नाराजगी झलक रही थी. संघ ने साफ संदेश दिया है कि सांसद-विधायक या स्थानीय से लेकर पंचायत चुनाव में चाहे जो प्रत्याशी बने, लेकिन संगठन संघ व भाजपा से जुड़े कैडर ही चलाएंगे. ऐसे में संगठनात्मक पद देते समय इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा.
बेदाग और संघर्षशील कैडर ही बनाए जाएं जिलाध्यक्ष: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह अरुण कुमार ने बैठक में कहा था कि संघ व भाजपा की प्रदेश टीम से समन्वय के तमाम बिंदुओं पर चर्चा की थी. बैठक में पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के दोनों क्षेत्र प्रचारकों समेत भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी मौजूद थे. समन्वय बैठक में कहा गया है कि बेदाग और संघर्षशील-समर्पित कैडर में से ही जिलाध्यक्ष चुना जाए तो बेहतर परिणाम आएंगे.
पिछले लोकसभा चुनाव में हार के लिए जिन जिलाध्यक्षों की कामचोरी सामने आई थी, उन्हें कतई जिम्मेदारी न जाए. दो साल पूरा करने वाले और 60 साल की उम्र का पालन हो, लेकिन कोई न मिले तो संघ से ऐसे लोगों का चयन किया जाए.
प्रदेश में नए भाजपा अध्यक्ष के नाम के एलान से पहले संघ संग बैठक बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. सूत्रों के अनुसार, संघ के सह सरकार्यवाह ने संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया में बूथ से लेकर मंडल तक से आई शिकायतों की स्क्रीनिंग करते हुए क्षेत्र प्रचारकों ने मत रखा. यह भी बातें आईं कि तमाम विधायक अपने खास को संगठन में एंट्री दिला रहे हैं.
प्रदेश अध्यक्ष चुनने पर फोकस : संघ के साथ समन्वय बैठक में 26 जनवरी से पहले नए जिलाध्यक्ष बनाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष चुनने पर खास फोकस रहा. संगठन से लेकर मंत्रिमंडल में बदलाव और आयोगों में पद देते समय संघ पृष्ठभूमि वाले लोगों को ज्यादा तरजीह देने की बात कही गई. जनहित और विकासकारी एजेंडे को कैसे आगे बढ़ाना है, इसका मंत्र भी दिया गया. हिन्दुत्व के एजेंडे पर खास जोर रहा. एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे' का नारा उप चुनाव में हिट होने के बाद इसे व्यवहार में भी उतारने को कहा गया. यही बाद में टिकट बंटवारे के समय उनके लिए दबाव बनाने के काम आएंगे, यहीं नहीं यदि कोई विधायक पार्टी छोड़ेगा तो संगठनात्मक ढांचे को भी नुकसान पहुंचाएगा. ऐसे में संगठन संचालन की व्यवस्था पूरी तरह कैडर आधारित हो, जिनका पूरा जीवन भाजपा और संघ में खपने का संकल्प हो.
भाजपा अध्यक्ष और संगठन महामंत्री ने जातीय-सामाजिक और जनस्वीकार्यता के आधार पर संगठनात्मक ढांचे को मजबूती देने का तर्क रखा तो उसे भी राजनीति के अखाड़े के लिए छोड़ देने को कहा गया. कहा गया कि संघ-भाजपा में हर जाति-वर्ग के समर्पित कार्यकर्ताओं की बड़ी टोली है, उसमें प्रतिस्पर्धा कराई जाए, और बेहतर चुनाव हो. बाहर से आने वालों को किसी के सिफारिश पर भी संगठन के ढांचे में प्रवेश न दिया जाए.
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