मेरठ : पश्चिमी यूपी में अपना प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने जिस दिन से ऐलान किया था कि वे NDA का हिस्सा हैं, तब से रालोद के तमाम नेता चुप्पी साधे हुए हैं. फिलवक्त सभी पार्टी मुखिया के सीट बंटवारे के औपचारिक ऐलान का इंतजार कर रहे हैं. राज्यसभा चुनाव में मतदान के बाद अब तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है. राज्यसभा में रालोद के सभी विधायक एक साथ रहे और उन्होंने संदेश दिया कि वे एक साथ हैं. हालांकि चर्चा है कि दादा को भारत रत्न के ऐलान के बाद भाजपा का दामन थामने वाले रालोद मुखिया की डील अटक गई है.
राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की, उसके बाद ही राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी की बातों से यह स्पष्ट हो गया था कि अब वह एनडीए के साथ जा रहे हैं. आज जिस तरह से यूपी में राज्यसभा के प्रत्याशियों के समर्थन में राष्ट्रीय लोकदल के सभी नौ विधायक एक साथ अपने मताधिकार का प्रयोग करने आए उसके बाद तो अब इस पर पुख्ता मुहर भी लग गई है.
यह बात ठीक है कि बीच में असमंजस की स्थिति बन रही थी और क्योंकि इसमें देरी हो रही थी कि आखिर रालोद मुखिया ने जो बयान दिया था कि वह एनडीए का हिस्सा हैं उसके बाद काफी समय बिल्कुल शांत माहौल हो गया था. हालांकि जयंत चौधरी कई मौकों पर यह जरूर कहते रहे कि सब कुछ जल्द ही स्पष्ट हो जाएगा. अब वह स्थिति पूरी तरह से साफ हो चुकी है. अब जब भाजपा के पक्ष में रालोद विधायकों ने अपना समर्थन देकर पूरी तस्वीर को ही साफ कर दिया है. जयंत चौधरी अब बीजेपी की कसौटी पर खरे उतरे हैं. भाजपा का भी अब जयंत पर विश्वास बढ़ा है कि जयंत आगामी समय में भी बीजेपी के मजबूत साथी साबित हो सकते हैं.
शादाब रिजवी का कहना है कि जिस तरह से रालोद मुखिया ने बीजेपी का साथ दिया है, इससे उन्हें लगता है कि आने वाले समय में बीजेपी ने जो भी वादे रालोद अध्यक्ष से किए होंगे उन पर खरे उतरेंगे. ऐसे में लगता है कि वेस्ट यूपी में बीजेपी भी मजबूत होगी और ऐसे में लगता है कि रालोद भी मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी. जाट मुस्लिम समीकरण पश्चिमी यूपी में एक मजबूत कॉम्बिनेशन है, जहां तक रालोद या जयंत चौधरी की जो सियासत है वो इसी पर यहां टिकी रहती थी.
इसी समीकरण का ही परिणाम है कि चाहे कैराना का चुनाव रहा हो, 2017 का चुनाव रहा हो या 2019 का चुनाव हो या फिर 2022 का विधानसभा चुनाव हो या फिर खतौली का उपचुनाव हो, सभी चुनावों में बीजेपी के सामने पश्चिमी यूपी में मजबूत विकल्प रालोद रही है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जो सामाजिक ताना बाना बिगड़ा था. वह लगातार अब फिर से मजबूत हुआ था.
अब क्योंकि मुसलमान आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी के साथ खुद को सहज नहीं पाता है और भाजपा के साथ मुस्लिम जाना नहीं चाहता है तो ऐसे में रालोद बीजेपी के साथ जा रही है तो देखने वाली बात होगी कि किस तरह से अब मुस्लिम समाज आगे रालोद के साथ रहने वाला है, रहने वाला भी है या नहीं. हालांकि यह बात भी ठीक है कि पार्टी के मुस्लिम नेताओं ने अभी तक चुप्पी ही साधी हुई है, कोई रिएक्शन जयंत के निर्णय के विरुद्ध पार्टी के मुस्लिम नेताओं के नहीं सुनने में आए हैं.
राज्यसभा चुनाव के घटनाक्रम के बाद यह माना जा रहा है कि यह सियासी दोस्ती पक्की हो चुकी है और अब यह भी देखने वाली बात होगी कि अगर विरोध होता है तो जयंत के लिए इस विरोध को रोकने की चुनौती होगी. अब मुस्लिमों के ऊपर भी यह निर्भर करेगा कि वह इस गठबंधन को स्वीकार करता है या नहीं. जयंत के लिए भी यह चुनौती होगी कि कितने मुसलमानों को वह अपने साथ पहले की तरह सहज ढंग से साथ रख पाते हैं.
फिलहाल अब यह तो तय है कि आगामी समय में जयंत के सामने यह चुनौती तो है कि वह मुसलमानों को साध कर साथ रख पाएं. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है कि राष्ट्रीय लोकदल के कोटे से जो प्रदेश सरकार में मंत्री बनने हैं जैसा कि उम्मीद जताई जा रही है, उनमें से पार्टी का मुस्लिम विधायक भी प्रदेश सरकार में मंत्री बने, ताकि रालोद का जाट मुस्लिम समीकरण बना रहे. इसमें कोई गलत संदेश न जाए, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि क्या किसी मुस्लिम विधायक को मंत्री पद योगी सरकार में मिलने जा रहा है या नहीं.
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