गया: बिहार के गया के रहने वाले अभय कुशवाहा औरंगाबाद लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए हैं. उन्होंने एक छोटे कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी और आज राजनीतिक बुलंदी को छू रहे हैं. अभय कुशवाहा ने आरजेडी से सियासी पारी शुरू की थी और फिर से भी आरजेडी में ही हैं. वह दो बार मुखिया बने, फिर विधायकी का भी चुनाव जीते. उनके परिवार के लोग कहते हैं कि अभय शुरुआत से ही समाजवादी विचारधारा को मानते हैं. यही वजह है कि उन्होंने हमेशा गरीबों, पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए आवाज उठाया. यहां तक कि अपनी निजी संपत्ति बेचकर समाज की भलाई के लिए काम किया.
गया के कुजापी के रहने वाले हैं कुशवाहा: औरंगाबाद से आरजेडी सांसद बनने वाले अभय कुशवाहा गया जिले के कुजापी के रहने वाले हैं. इनके पिता राम वृक्ष प्रसाद पेशे से शिक्षक थे. वर्तमान में अभय कुशवाहा को राष्ट्रीय जनता दल की ओर से लोकसभा के संसदीय दल के नेता बनाए जाने पर काफी खुशी है. लोगों का कहना है कि छात्र जीवन से ही अभय कुशवाहा जुझारू प्रवृत्ति के रहे हैं. हालांकि उनका ये भी कहना है कि इस मुकाम तक इतनी जल्दी वह पहुंच जाएंगे, यह किसी ने सोचा नहीं था.
शहीद जगदेव की दिखती है झलक: उनके परिवार और गांव के लोगों की मानें तो अभय कुशवाहा में शहीद जगदेव की झलक दिखती है. शहीद जगदेव गरीबी से ऊपर उठे और अभय कुशवाहा अपनी संपत्ति समाज सेवा के लिए बेचकर नाम कमाते गए और आगे बढ़ते चले गए. उन्होंने आज तक अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.
"मुझे तो अभय कुशवाहा में शहीद जगदेव की झलक दिखती है. वह बचपन से ही तेज तर्रार रहा है, लेकिन काफी हिम्मत दिखाई. अभय कुशवाहा ने समाज सेवा गरीबों की भलाई के लिए भी किया. अपनी संपत्ति को भी तरजीह नहीं दी. समाज सेवा के लिए खेत भी बेच देते थे. कुशवाहा ने काफी रिस्क लिया. लोग नेगेटिव सोचते थे, लेकिन यह उसे पॉजिटिव कर देते थे. इन्होंने सूर्य मंदिर बनाया, जहां आज मेला भी लगता है. सब्जी मंडी भी लगवाई, जिससे बेरोजगारी दूर हुई. गरीबों को रोजगार मिला. ऐसे कई काम है, जो अभय कुशवाहा के द्वारा किए गए."- रामाशीष प्रसाद, अभय कुशवाहा के चाचा
संघर्ष और समाज सेवा के बूते दो बार मुखिया बने: रामाशीष प्रसाद बताते हैं कि अभय कुशवाहा ने कुजापी के जग्गू लाल हाई स्कूल से 1986 में मैट्रिक के परीक्षा पास की. गया कॉलेज से 1988 में इंटरमीडिएट किया. गया इवनिंग कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई 2018 में पूरी की. वह बताते हैं कि 2006 से 2015 तक दो बार कुजापी पंचायत के मुखिया रहे. काफी लोकप्रिय छवि इनकी बनी रही.
2015 में पहली बार विधायक बने थे अभय: बहुजन समाज पार्टी में सबसे पहले शामिल हुए और फिर बहुजन समाज पार्टी को जल्दी छोड़ दिया. एक बार निर्दलीय विधानसभा का चुनाव यह 2005 में आजमाया. 2005- 2006 के आसपास में आरजेडी के छोटे कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हुए और जल्दी ही काफी लोकप्रिय भी हो गए. राष्ट्रीय जनता दल में उनकी पहुंच सीधे लालू परिवार तक थी. हालांकि बाद में विधानसभा का टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गए और पार्टी छोड़ दी. इसके बाद उन्होंने जेडीयू ज्वाइन की और 2015 में टिकारी से विधायक भी बने.
औरंगाबाद में पहली बार गैर राजपूत सांसद बने: हालांकि 2000 में जेडीयू ने अभय कुशवाहा को बेलागंज से उम्मीदवार बनाया लेकिन चुनाव हार गए. 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान आरजेडी में वापस आ गए. लालू यादव और तेजस्वी यादव ने उनको औरंगाबाद लोकसभा से टिकट दिया और उन्होंने जीत भी दर्ज की. चित्तौड़गढ़ माने जाने वाले औरंगाबाद सीट पर जीत दर्ज कर एक तरह से रिकॉर्ड भी बनाया. 1952 से वहां क्षत्रिय समाज के लोग ही चुनाव जीतते रहे हैं.
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