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RTI एक्टिविस्ट का दावा- विभाग देते हैं गोलमोल जानकारी, महीनों तक लटकी रहती है एप्लीकेशन

-RTI एक्ट के 19 साल पूरे -क्या अपने उद्देश्य में सफल हो पाया RTI? -RTI से विभाग दे रहे गोल मोल जानकारी-एक्टिविस्ट

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

RTI एक्ट के 19 साल पूरे
RTI एक्ट के 19 साल पूरे (SOURCE: ETV BHARAT)

नई दिल्ली: हर साल 12 अक्टूबर को सूचना का अधिकार दिवस मनाया जाता है. सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुए 19 साल पूरे हो चुके हैं. यह अधिनियम 20वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. आरटीआई एक्टिविस्ट की माने तो जिस उद्देश्य से इस अधिनियम को बनाया गया था आज यह अधिनियम उस उद्देश्य को हासिल करने में असफल है. आज विभाग, आरटीआई के जरिए सूचना मांगने पर गोलमोल जवाब देते हैं. जो बेहद निंदनीय है और इस पर सुप्रीम कोर्ट व केंद्र सरकार को संज्ञान लेने की जरूरत है.

भारत की सुरक्षा एजेंसी से सेवानिवृत अधिकारी और आरटीआई एक्टिविस्ट बीके मित्तल से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने आरटीआई के विभिन्न पहलुओं को रखा. वीके मित्तल भारत सरकार के सुरक्षा एजेंसी में अधिकारी थे. वर्तमान में वो गाजियाबाद के कौशांबी में रहते हैं. उन्होंने बताया कि नौकरी से रिटायरमेंट के बाद मैंने कई महकमों में गड़बड़ियां देखी तो सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचनाएं मांगी. इसका असर पड़ा कि उन महकमों में जो गैर कानूनी काम हो रहे थे. उसमें सरकार ने जांच के आदेश दिए. गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई भी हुई. मैंने प्रदूषण को लेकर 17 आरटीआई फाइल की थी. जानकारी मिलने के बाद कई तरीके की गड़बड़ियां सामने आई. इन गड़बड़ियों को लेकर सबसे पहले मैं एनजीटी गया. एनजीटी ने 17 केस में ऑर्डर पास किया. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कौशांबी के लिए अलग ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान तैयार किया गया. एनजीटी के आदेश पर एनवायरमेंटल मैनेजमेंट प्लान बनाया गया. दिल्ली सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्लान को कुछ हद तक इंप्लीमेंट भी किया, लेकिन यह काम आधा अधूरा ही हुआ.

RTI एक्टिविस्ट बीके मित्तल से खास बातचीत (SOURCE: ETV BHARAT)

'उद्देश्य को हासिल करने में असफल है आरटीआई'

वीके मित्तल ने कहा कि पहले आरटीआई से सूचनाओं मिलती थी और ब्यूरोक्रेट्स भी डरते थे और आरटीआई पर एक्शन भी लिया जाता था लेकिन वक्त के साथ अब आरटीआई को डाइल्यूट कर दिया गया है. अब क्रिटिकल मामलों में सूचनाएं ना के बराबर मिलती हैं. आज आरटीआई से सूचना मांगने पर सारे विभाग या तो टालने का प्रयास करते हैं या गोलमोल जवाब देते हैं. कई बार तो बेबुनियाद जवाब दे देते हैं, जिसका उसे सब्जेक्ट से कोई मतलब ही नहीं होता है. आज की तारीख में आरटीआई अपना पूरा उद्देश्य हासिल करने में असफल है. आज आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था भी है. डाक के जरिए भी सूचना ली जा सकती है.

'ऑनलाइन सूचना मांगने पर महीनों तक नहीं मिलता जबाब'

वीके मित्तल ने कहा कि आरटीआई का जवाब एक महीने में देने का प्रावधान है, लेकिन लोगों को महीनों तक सूचना नहीं मिल पाती हैं. यदि आरटीआई में एक से अधिक लोग इंवॉल्व हैं तो हर व्यक्ति के लिए 15 दिन का अतिरिक्त समय मिलता है. ऐसे में एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट पर बात डाल देता है. इससे महीनों तक इनफॉरमेशन नहीं मिलती है. आज लोग घर बैठे ऑनलाइन आरटीआई फाइल कर देते हैं, लेकिन जो सूचना मांगी जाती है वह नहीं मिलती है.

'क्यों और किस लिए सवाल पर आरटीआई हो जाती है निरस्त'

मित्तल ने बताया कि आरटीआई डालते समय काफी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. यदि आरटीआई में क्यों और किस लिए शब्द है तो विभाग आरटीआई को निरस्त कर देता है. इसका जवाब नहीं दिया जाता. ऐसे में अगर कोई सूचना मांग रहे हैं तो सवाल को घुमा कर लिखें. आजकल बहुत से विभाग अपनी वेबसाइट पर बहुत सारी जानकारियां डालते हैं लेकिन अंदर की सूचना नहीं होती है, जिसे जानने के लिए लोगों को आरटीआई लगाना पड़ता है. आरटीआई से सूचना नहीं मिलने पर लोग स्टेट कमीशन या सेंट्रल कमीशन में जा सकते हैं, लेकिन यहां पर भी स्टाफ का अभाव कितना ज्यादा है कि सालों तक नंबर ही नहीं आते हैं. अपील पर सुनवाई ही नहीं होती है.

'सरकार और सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई को लेकर होना पड़ेगा गंभीर'

उन्होंने कहा कि आरटीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट को और गवर्नमेंट को सीरियस होना पड़ेगा. इनफॉरमेशन कमिशन तक की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही है, जो सरकार का अपना रूटीन काम है. कई बार तो ऐसा महसूस होता है कि यह देश सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों से चल रहा है. यह स्थिति बदलनी चाहिए सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए लोगों को सरकार को फेस टू फेस क्वेश्चन करने की आजादी और हिम्मत होनी चाहिए तभी स्थिति बदलेगी.

ये भी पढ़ें- क्या है सूचना का अधिकार कानून, घोटालों का पर्दाफाश करने कितना कामयाब रहा, एक नजर

ये भी पढ़ें- RTI कार्यकर्ता ने UPSC परीक्षा में फर्जी प्रमाणपत्रों की बढ़ती संख्या के बारे में राष्ट्रपति को पत्र लिखा

नई दिल्ली: हर साल 12 अक्टूबर को सूचना का अधिकार दिवस मनाया जाता है. सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुए 19 साल पूरे हो चुके हैं. यह अधिनियम 20वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. आरटीआई एक्टिविस्ट की माने तो जिस उद्देश्य से इस अधिनियम को बनाया गया था आज यह अधिनियम उस उद्देश्य को हासिल करने में असफल है. आज विभाग, आरटीआई के जरिए सूचना मांगने पर गोलमोल जवाब देते हैं. जो बेहद निंदनीय है और इस पर सुप्रीम कोर्ट व केंद्र सरकार को संज्ञान लेने की जरूरत है.

भारत की सुरक्षा एजेंसी से सेवानिवृत अधिकारी और आरटीआई एक्टिविस्ट बीके मित्तल से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने आरटीआई के विभिन्न पहलुओं को रखा. वीके मित्तल भारत सरकार के सुरक्षा एजेंसी में अधिकारी थे. वर्तमान में वो गाजियाबाद के कौशांबी में रहते हैं. उन्होंने बताया कि नौकरी से रिटायरमेंट के बाद मैंने कई महकमों में गड़बड़ियां देखी तो सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचनाएं मांगी. इसका असर पड़ा कि उन महकमों में जो गैर कानूनी काम हो रहे थे. उसमें सरकार ने जांच के आदेश दिए. गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई भी हुई. मैंने प्रदूषण को लेकर 17 आरटीआई फाइल की थी. जानकारी मिलने के बाद कई तरीके की गड़बड़ियां सामने आई. इन गड़बड़ियों को लेकर सबसे पहले मैं एनजीटी गया. एनजीटी ने 17 केस में ऑर्डर पास किया. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कौशांबी के लिए अलग ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान तैयार किया गया. एनजीटी के आदेश पर एनवायरमेंटल मैनेजमेंट प्लान बनाया गया. दिल्ली सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्लान को कुछ हद तक इंप्लीमेंट भी किया, लेकिन यह काम आधा अधूरा ही हुआ.

RTI एक्टिविस्ट बीके मित्तल से खास बातचीत (SOURCE: ETV BHARAT)

'उद्देश्य को हासिल करने में असफल है आरटीआई'

वीके मित्तल ने कहा कि पहले आरटीआई से सूचनाओं मिलती थी और ब्यूरोक्रेट्स भी डरते थे और आरटीआई पर एक्शन भी लिया जाता था लेकिन वक्त के साथ अब आरटीआई को डाइल्यूट कर दिया गया है. अब क्रिटिकल मामलों में सूचनाएं ना के बराबर मिलती हैं. आज आरटीआई से सूचना मांगने पर सारे विभाग या तो टालने का प्रयास करते हैं या गोलमोल जवाब देते हैं. कई बार तो बेबुनियाद जवाब दे देते हैं, जिसका उसे सब्जेक्ट से कोई मतलब ही नहीं होता है. आज की तारीख में आरटीआई अपना पूरा उद्देश्य हासिल करने में असफल है. आज आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था भी है. डाक के जरिए भी सूचना ली जा सकती है.

'ऑनलाइन सूचना मांगने पर महीनों तक नहीं मिलता जबाब'

वीके मित्तल ने कहा कि आरटीआई का जवाब एक महीने में देने का प्रावधान है, लेकिन लोगों को महीनों तक सूचना नहीं मिल पाती हैं. यदि आरटीआई में एक से अधिक लोग इंवॉल्व हैं तो हर व्यक्ति के लिए 15 दिन का अतिरिक्त समय मिलता है. ऐसे में एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट पर बात डाल देता है. इससे महीनों तक इनफॉरमेशन नहीं मिलती है. आज लोग घर बैठे ऑनलाइन आरटीआई फाइल कर देते हैं, लेकिन जो सूचना मांगी जाती है वह नहीं मिलती है.

'क्यों और किस लिए सवाल पर आरटीआई हो जाती है निरस्त'

मित्तल ने बताया कि आरटीआई डालते समय काफी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. यदि आरटीआई में क्यों और किस लिए शब्द है तो विभाग आरटीआई को निरस्त कर देता है. इसका जवाब नहीं दिया जाता. ऐसे में अगर कोई सूचना मांग रहे हैं तो सवाल को घुमा कर लिखें. आजकल बहुत से विभाग अपनी वेबसाइट पर बहुत सारी जानकारियां डालते हैं लेकिन अंदर की सूचना नहीं होती है, जिसे जानने के लिए लोगों को आरटीआई लगाना पड़ता है. आरटीआई से सूचना नहीं मिलने पर लोग स्टेट कमीशन या सेंट्रल कमीशन में जा सकते हैं, लेकिन यहां पर भी स्टाफ का अभाव कितना ज्यादा है कि सालों तक नंबर ही नहीं आते हैं. अपील पर सुनवाई ही नहीं होती है.

'सरकार और सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई को लेकर होना पड़ेगा गंभीर'

उन्होंने कहा कि आरटीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट को और गवर्नमेंट को सीरियस होना पड़ेगा. इनफॉरमेशन कमिशन तक की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही है, जो सरकार का अपना रूटीन काम है. कई बार तो ऐसा महसूस होता है कि यह देश सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों से चल रहा है. यह स्थिति बदलनी चाहिए सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए लोगों को सरकार को फेस टू फेस क्वेश्चन करने की आजादी और हिम्मत होनी चाहिए तभी स्थिति बदलेगी.

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