रीवा: विजयदशमी उत्सव देश भर में प्रचलित है, क्योंकि मैसूर के बाद रीवा ही एक मात्र स्थान है, जहां शाही अंदाज में रीवा रियासत के महाराजा द्वारा सिंहासन की गद्दी पर विराजमान भगवान राम की विशेष पूजा की जाती है. इसके बाद महाराजा महल से बाहर आकर प्रजा को दर्शन देते है. महाराज के द्वारा नीलकंठ पक्षी को आकाश की ओर उड़ाया जाता हैय इसके बाद प्रजा से भेंटकर महाराजा पान का स्वाद चखते है. बाद में किला परिसर से भव्य चल समारोह का अयोजन किया जाता है. जिसमे आगे आगे रथ में सवार होकर राजधिराज भगवान राम की सवारी निकलती है. जिसमें रियासत के महाराज उनके सेवक बनकर साथ चलते हैं और पीछे मां दुर्गा की सुंदर झाकियां निकाली जाति है. रीवा रियासत का यह रिवाज 450 साल पुराना है और तब से लेकर अब तक यह परंपरा प्रत्येक वर्ष निभाई जा रही है.
भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को सौंपा था विंध्य का ये इलाका
दरअसल, 750 साल पहले बघेल राजवंश की स्थापना विंध्य के बांधवगढ़ में हुई थी. बघेल राजवंश के पित्रपुरुष व्याघ्रदेव उर्फ बाघ देव महाराज गुजरात से विंध्य के बांधवगढ़ में आए. इसी दौरान महाराजा ने जानकारी दी थी कि समूचा इलाका भगवान लक्ष्मण का है, क्योंकि भगवान राम ने अयोध्या में राजपाठ संभालने के बाद जमुना नदी के पार का इलाका भगवान लक्ष्मण को सौंप दिया था.
बांधवगढ़ से रीवा आए बघेल राजवंश के राजा
इसके बाद बघेल राजवंश के महाराज विक्रमादित्य सिंह जू देव ने 1618 ईस्वी में बांधवगढ़ से राजधानी का दर्जा समाप्त करते हुए रीवा को रियासत की राजधानी बनाई गई. तब के तत्कालीन महाराजा विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने राज सिंहासन पर स्वयं विराजमान होने के बजाय भगवान श्रीराम सीता और लक्ष्मण को राजाधिराज के रूप में स्थापित किया और राजगद्दी श्रीराम के नाम करके वे प्रशासक के रूप में काम करते रहे.
दशहरे के दिन शाही अंदाज में पूजा
बताया जाता है की तकरीबन 400 वर्ष पूर्व रियासत की राजधानी बदली गई. इसका दर्जा रीवा को मिला बघेल वंश के राजा रीवा आए, यहीं पर स्थापित हो गए. अब तक बघेल वंश के 37 पीढ़ियों तक के राजाओं ने राजपाठ संभला. तब से लेकर अब तक एक भी राजा राज सिंहासन में विराजमान नहीं हुए और राजाधिराज भगवान राम को गद्दी में विराजित करके उन्हें अपना आराध्य माना और उनकी सेवा करते रहे. इसके बाद से प्रत्येक वर्ष दशहरे के दिन विधिवत राजसी अंदाज में पूजा अर्चना का प्रचलन शुरू हुआ और रियासत के प्रत्येक महाराजा इस परंपरा को उसी शाही अंदाज में निभाते चले आए.
राजमहल के राज सिंहासन पर विराजित हैं राजाधिराज भगवान राम
विजयादशमी के अवसर पर रीवा किला परिसर में सबसे पहले गद्दी पूजन का आयोजन किया गया. जिसमे राज पुरोहितों के द्वारा वेदों के मंत्र उच्चारण के साथ राजसी अंदाज में पूजा अर्चना की. रीवा रियासत के 37वें महराजा पुष्पराज व उनके पुत्र युवराज दिव्यराज सिंह ने अपने आराध्य राज सिंहासन में विराजे राजाधीराज भगवान राम की विशेष पूजा की. इस दौरान राजपरिवार के कई सदस्य उपस्थित रहे. इसके बाद किला के बाहर प्रतीक्षा कर रही प्रजा को राजा ने दर्शन दिए.
नीलकंठ को अकाश में उड़ाकर पान खाने की प्रथा
युवराज दिव्यराज सिंह ने मंच से नीलकंठ पक्षी को आकाश की ओर उड़ाया. इसी दौरान पान खाने की परम्परा भी निभाई गई. इसके बाद हर वर्ष की तरह विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करके विंध्य का नाम रोशन करने वालें लोगों को महाराज पुष्पराज सिंह के द्वारा पुरुस्कृत भी किया गया.
चल समरोह के बाद दशहरा मैदान में किया गया रावण का दहन
राजाधिराज भगवान राम के रथ के पीछे मां दुर्गा की सुंदर प्रतिमा के साथ झाकियां निकाली गई. चल समरोह किला से निकल कर शहर के तमाम मुख्य मार्ग से होते हुए चल समारोह दशहरा मैदान एनसीसी ग्राउंड पहुंचा. इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ. बाद में रावण दहन का अयोजन किया गया.