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मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में बोस और उनके साथी को हुई थी फांसी, किंग्सफोर्ड को मारने के लिए की थी बमबारी

Khudiram Bose: पूरा देश 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले वीर सपूतों को लोगों ने याद किया. अंग्रेजों से लड़ने वालों में बिहार के मुजफ्फरपुर के भी स्वतंत्रता सेनानी थे. मुजफ्फरपुर में ही खुदीराम बोस को फांसी हुई थी, जिसमें किंग्सफोर्ड को मारने के लिए बमबारी की थी.

मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में खुदीराम बोस को हुई थी फांसी
मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में खुदीराम बोस को हुई थी फांसी
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 26, 2024, 7:42 AM IST

मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में खुदीराम बोस को हुई थी फांसी

मुजफ्फरपुरः बिहार का मुजफ्फरपुर स्वतंत्रता सेनानियों की यादों से भरा पड़ा है. मुजफ्फरपुर में ही खुदीराम बोस को फांसी हुई थी. बीच शहर में दोनों का स्मारक स्थल भी बनाया गया है. खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ कई सेनानियों ने अपनी जवान तक गवां दी.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस को फांसीः कहानी शुरू होती है 1905 से जब खुदीराम बोस 14 साल के थे. उन्होंने आजादी का सपना देखा था. उसे पूरा करने के लिए जान गवा दी. अंग्रेजों ने उन्हें बंगाल विभाजन के खिलाफ हुई रैली से गिरफ्तार किया था और मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी. जिस जगह फांसी दी गई थी, वह जगह आज भी मौजूद है.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस का फांसी स्थल
मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस का फांसी स्थल

बंगाल के रहने वाले थे बोसः खुदीराम बोस बंगाल (अब पश्चिम बंगाल) के मिदनापुर के हबीबपुर नाम के एक छोटे से गांव में 3 दिसंबर 1889 को जन्मे थे. मुजफ्फरपुर के स्वतंत्रता सेनानी पंडित मधुसूदन झा बताते हैं जब वे जेल से बाहर आए तो बम बनाना सीखे. उसी बनाए हुए बम से उन्होंने बंगाल के गवर्नर पर हमला किया था. इसके बाद जनवरी 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों पर बम फेंक कर फरार हो गए थे.

1908 में पहुंचे थे मुजफ्फरपुर: दोस्त प्रफुल्ल चाकी के साथ सन 1908 में मुजफ्फरपुर पहुंचे. स्टेशन के पास पुरानी धर्मशाला में ठहरे. मधुसूदन झा बताते हैं कि उस समय युवाओं में गजब का जज्बा था. बताते हैं कि किंग्सफोर्ड पर हमले की बात 30 अप्रैल 1908 की है. बोस और उनके साथी किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम मारने के बाद रात में ही नंगे पांव 24 मील दूर पूसा रोड स्टेशन पहुंच गए. चाय पीने के लिए ठहरे थे. कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि किंग्सफोर्ड बच गया.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी की लगी प्रतिमा
मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी की लगी प्रतिमा

बैरिस्टर की पत्नी और बेटी को मार दिया थाः लोगों की बात सुनकर अचानकर बोस के मुंह से निकल पड़ा, 'अरे बच गया'. इतना सुनने के बाद वहां तैनात रेलवे कर्मचारी ने पुलिस को सूचना दी और खुदीराम बोस पकड़े गए. बग्घी में ब्रिटेन के बैरिस्टर प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी बैठी थी. दोनों की मौत हो गई थी. हालांकि प्रफुल्ल चंद्र चाकी मौके से भाग निकले थे. पुलिस पीछा कर रही थी. मोकामा स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया तो वे खुद को गोली मार ली.

मुजफ्फरपुर में सेंट्रल जेल
मुजफ्फरपुर में सेंट्रल जेल

प्रफुल्ल चंद्र चाकी का सिर काट लिए अंग्रेजः अंग्रेज सिपाही प्रफुल्ल चंद्र चाकी का सिर काटकर मुजफ्फरपुर जेल ले गए, जहां खुदीराम ने उन्हें प्रणाम किया. 3 महीने बाद 11 अगस्त को महज 18 साल की उम्र में मुस्कुराते फांसी पर चढ़ गए. दोनों दोस्त ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते लड़ते शहीद हो गए.

यह भी पढ़ेंः 75वां गणतंत्र दिवस: क्या है इस बार खास और क्या है थीम, जानें एक नजर में

मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में खुदीराम बोस को हुई थी फांसी

मुजफ्फरपुरः बिहार का मुजफ्फरपुर स्वतंत्रता सेनानियों की यादों से भरा पड़ा है. मुजफ्फरपुर में ही खुदीराम बोस को फांसी हुई थी. बीच शहर में दोनों का स्मारक स्थल भी बनाया गया है. खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ कई सेनानियों ने अपनी जवान तक गवां दी.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस को फांसीः कहानी शुरू होती है 1905 से जब खुदीराम बोस 14 साल के थे. उन्होंने आजादी का सपना देखा था. उसे पूरा करने के लिए जान गवा दी. अंग्रेजों ने उन्हें बंगाल विभाजन के खिलाफ हुई रैली से गिरफ्तार किया था और मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी. जिस जगह फांसी दी गई थी, वह जगह आज भी मौजूद है.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस का फांसी स्थल
मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस का फांसी स्थल

बंगाल के रहने वाले थे बोसः खुदीराम बोस बंगाल (अब पश्चिम बंगाल) के मिदनापुर के हबीबपुर नाम के एक छोटे से गांव में 3 दिसंबर 1889 को जन्मे थे. मुजफ्फरपुर के स्वतंत्रता सेनानी पंडित मधुसूदन झा बताते हैं जब वे जेल से बाहर आए तो बम बनाना सीखे. उसी बनाए हुए बम से उन्होंने बंगाल के गवर्नर पर हमला किया था. इसके बाद जनवरी 1908 में दो अंग्रेज अधिकारियों पर बम फेंक कर फरार हो गए थे.

1908 में पहुंचे थे मुजफ्फरपुर: दोस्त प्रफुल्ल चाकी के साथ सन 1908 में मुजफ्फरपुर पहुंचे. स्टेशन के पास पुरानी धर्मशाला में ठहरे. मधुसूदन झा बताते हैं कि उस समय युवाओं में गजब का जज्बा था. बताते हैं कि किंग्सफोर्ड पर हमले की बात 30 अप्रैल 1908 की है. बोस और उनके साथी किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम मारने के बाद रात में ही नंगे पांव 24 मील दूर पूसा रोड स्टेशन पहुंच गए. चाय पीने के लिए ठहरे थे. कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि किंग्सफोर्ड बच गया.

मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी की लगी प्रतिमा
मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी की लगी प्रतिमा

बैरिस्टर की पत्नी और बेटी को मार दिया थाः लोगों की बात सुनकर अचानकर बोस के मुंह से निकल पड़ा, 'अरे बच गया'. इतना सुनने के बाद वहां तैनात रेलवे कर्मचारी ने पुलिस को सूचना दी और खुदीराम बोस पकड़े गए. बग्घी में ब्रिटेन के बैरिस्टर प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी बैठी थी. दोनों की मौत हो गई थी. हालांकि प्रफुल्ल चंद्र चाकी मौके से भाग निकले थे. पुलिस पीछा कर रही थी. मोकामा स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया तो वे खुद को गोली मार ली.

मुजफ्फरपुर में सेंट्रल जेल
मुजफ्फरपुर में सेंट्रल जेल

प्रफुल्ल चंद्र चाकी का सिर काट लिए अंग्रेजः अंग्रेज सिपाही प्रफुल्ल चंद्र चाकी का सिर काटकर मुजफ्फरपुर जेल ले गए, जहां खुदीराम ने उन्हें प्रणाम किया. 3 महीने बाद 11 अगस्त को महज 18 साल की उम्र में मुस्कुराते फांसी पर चढ़ गए. दोनों दोस्त ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते लड़ते शहीद हो गए.

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