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नहीं रहे जैसलमेर में शिक्षा व संस्कृति की अलख जगाने वाले शिक्षक नंदकिशोर शर्मा - HISTORIAN NANDKISHORE NO MORE

पश्चिमी राजस्थान के एक प्रतिष्ठित इतिहासकार और शिक्षक नंदकिशोर शर्मा का मंगलवार को निधन हो गया. वे 90 वर्ष के थे.

Historian  Nandkishore no More
राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त करते ​नंदकिशोर (ETV Bharat Jaisalmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 14 hours ago

जैसलमेर: पश्चिमी राजस्थान के प्रतिष्ठित इतिहासकार, संस्कृतिविद और शिक्षक नंदकिशोर शर्मा नहीं रहे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा और सांस्कृतिक इतिहास को सहेजने में समर्पित की. वे 90 वर्ष के थे. उनके निधन से उनके प्रशंसकों में शौक की लहर छा गई. अंतिम समय तक भी वे इतिहास को सहजने का काम करते रहे. वे अपने पीछे भरापूरा परिवार तो छोड़कर गए ही हैं, वर्षो से सींचे इतिहास का भंडार भी उनकी याद दिलाता रहेगा. इतिहासकार शर्मा का मंगलवार को अंतिम संस्कार किया गया. इसमें बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे.

शर्मा के करीब कंवराज सिंह चौहान ने बताया कि नंदकिशोर शर्मा ने न केवल इतिहास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया, बल्कि एक आदर्श शिक्षक के रूप में समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया. उन्होंने दूरदराज के इलाकों में जाकर बच्चों को शिक्षित किया. नंदकिशोर का जन्म जैसलमेर में ही हुआ. कठिन परिस्थितियों में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और खुद शिक्षक बन गए. इसके बाद वे लग गए सरस्वती के इस खजाने को दूर दराज की गांव-ढाणियों के बच्चों में बांटने में. उन्हें कई किलोमीटर की पैदल यात्रा रोज करनी पड़ती थी, लेकिन कभी हौसला नहीं हारा. जैसलमेर जैसे पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने का काम किया.

नहीं रहे शिक्षक नंदकिशोर शर्मा (ETV Bharat Jaisalmer)

पढ़ें: राज्यपाल हरिभाऊ बागडे बोले-राष्ट्र कोई भूभाग नहीं, संस्कृति और सनातन मूल्य से जुड़ा विचार

राष्ट्रपति ने सर्वोच्च पदक से नवाजा: वहीं, देवी सिंह चौहान ने बताया कि शिक्षा और संस्कृति के लिए किए गए काम के कारण नंदकिशोर को शिक्षा के सर्वोच्च पदक राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया. उन्होंने जैसलमेर में एक म्यूजियम की स्थापना की. इसमें जैसलमेर की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा और सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ी कई पुस्तकों का भी लेखन किया. म्यूजियम को उन्होंने इतना समृद्ध कर दिया कि जैसलमेर आने वाला हर सैलानी इसमें जरूर जाता है. इससे जैसलमेर के पर्यटन में भी नया आयाम जुड़ा.

सांस्कृतिक विरासत को सहेजा: उनके करीबी राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि शिक्षा के साथ साथ में जिलेभर में फैली सांस्कृतिक विरासत भी उन्हें आकर्षित करती थी. वे उसे सहेजने में लग गए. अपने इस जूनून के चलते नंदकिशोर शर्मा जिले में कई किलोमीटरों का पैदल सफर तय करते थे और बिखरी हुई सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को अपने म्यूजियम में एकत्र करते थे. इस दौरान शर्मा ने अपने शिष्यों को भी संस्कृति की माला पिरोने के कार्य में जोड़ दिया.

यह भी पढ़ें: 13वें जयरंगम में सजेगा कला, संस्कृति, साहित्य और रंगकर्म का मंच, इंटरनेशनल आर्टिस्ट बढाएंगे शोभा

पर्यटन को दिया बढ़ावा: जैसलमेर के पर्यटन को बढ़ावा देने में भी उनका योगदान था. जब यहां सैलानी आने लगे तो उन्होंने पर्यटन की संभावनाओं को समझा और जिले की बिखरी संस्कृति व ऐतिहासिक विरासत को संजोते हुए अपनी पहली पुस्तक लिखी 'स्वर्णनगरी जैसलमेर'. इसे देश विदेश के लोगों ने बहुत सराहा. शर्मा की यह पुस्तक जैसलमेर के पर्यटन में मील का पत्थर कही जा सकती है. इस पुस्तक का अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में हुआ. इसके बाद जैसलमेर में सै​लानियों की संख्या बढ़ने लगी. एक शिक्षक के साथ शर्मा द्वारा संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्र में किए गए कार्य को भी खूब सराहा गया.

जैसलमेर: पश्चिमी राजस्थान के प्रतिष्ठित इतिहासकार, संस्कृतिविद और शिक्षक नंदकिशोर शर्मा नहीं रहे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा और सांस्कृतिक इतिहास को सहेजने में समर्पित की. वे 90 वर्ष के थे. उनके निधन से उनके प्रशंसकों में शौक की लहर छा गई. अंतिम समय तक भी वे इतिहास को सहजने का काम करते रहे. वे अपने पीछे भरापूरा परिवार तो छोड़कर गए ही हैं, वर्षो से सींचे इतिहास का भंडार भी उनकी याद दिलाता रहेगा. इतिहासकार शर्मा का मंगलवार को अंतिम संस्कार किया गया. इसमें बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे.

शर्मा के करीब कंवराज सिंह चौहान ने बताया कि नंदकिशोर शर्मा ने न केवल इतिहास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया, बल्कि एक आदर्श शिक्षक के रूप में समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया. उन्होंने दूरदराज के इलाकों में जाकर बच्चों को शिक्षित किया. नंदकिशोर का जन्म जैसलमेर में ही हुआ. कठिन परिस्थितियों में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और खुद शिक्षक बन गए. इसके बाद वे लग गए सरस्वती के इस खजाने को दूर दराज की गांव-ढाणियों के बच्चों में बांटने में. उन्हें कई किलोमीटर की पैदल यात्रा रोज करनी पड़ती थी, लेकिन कभी हौसला नहीं हारा. जैसलमेर जैसे पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने का काम किया.

नहीं रहे शिक्षक नंदकिशोर शर्मा (ETV Bharat Jaisalmer)

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राष्ट्रपति ने सर्वोच्च पदक से नवाजा: वहीं, देवी सिंह चौहान ने बताया कि शिक्षा और संस्कृति के लिए किए गए काम के कारण नंदकिशोर को शिक्षा के सर्वोच्च पदक राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया. उन्होंने जैसलमेर में एक म्यूजियम की स्थापना की. इसमें जैसलमेर की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा और सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ी कई पुस्तकों का भी लेखन किया. म्यूजियम को उन्होंने इतना समृद्ध कर दिया कि जैसलमेर आने वाला हर सैलानी इसमें जरूर जाता है. इससे जैसलमेर के पर्यटन में भी नया आयाम जुड़ा.

सांस्कृतिक विरासत को सहेजा: उनके करीबी राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि शिक्षा के साथ साथ में जिलेभर में फैली सांस्कृतिक विरासत भी उन्हें आकर्षित करती थी. वे उसे सहेजने में लग गए. अपने इस जूनून के चलते नंदकिशोर शर्मा जिले में कई किलोमीटरों का पैदल सफर तय करते थे और बिखरी हुई सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को अपने म्यूजियम में एकत्र करते थे. इस दौरान शर्मा ने अपने शिष्यों को भी संस्कृति की माला पिरोने के कार्य में जोड़ दिया.

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पर्यटन को दिया बढ़ावा: जैसलमेर के पर्यटन को बढ़ावा देने में भी उनका योगदान था. जब यहां सैलानी आने लगे तो उन्होंने पर्यटन की संभावनाओं को समझा और जिले की बिखरी संस्कृति व ऐतिहासिक विरासत को संजोते हुए अपनी पहली पुस्तक लिखी 'स्वर्णनगरी जैसलमेर'. इसे देश विदेश के लोगों ने बहुत सराहा. शर्मा की यह पुस्तक जैसलमेर के पर्यटन में मील का पत्थर कही जा सकती है. इस पुस्तक का अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में हुआ. इसके बाद जैसलमेर में सै​लानियों की संख्या बढ़ने लगी. एक शिक्षक के साथ शर्मा द्वारा संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्र में किए गए कार्य को भी खूब सराहा गया.

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