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लोन चुकता करने के बाद भी घर भेजे रिकवरी एजेंट, हाईकोर्ट ने ICICI बैंक अध्यक्ष से मांगा हलफनामा - high court order

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 27, 2024, 10:20 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है कि याची द्वारा लोन का भुगतान कर दिए जाने के बावजूद रिकवरी के लिए रिकवरी एजेंट बैंक द्वारा क्यों नियुक्त किए गए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है कि याची द्वारा लोन का भुगतान कर दिए जाने के बावजूद रिकवरी के लिए रिकवरी एजेंट बैंक द्वारा क्यों नियुक्त किए गए. कोर्ट ने कहा कि रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई है तो किन परिस्थितियों में बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं ली जा रही हैं. कोर्ट ने अध्यक्ष को यह भी जवाब देने के लिए कहा है कि लोन चुकता कर देने के बावजूद बैंक द्वारा याची के विरुद्ध सिविल सूट क्यों दाखिल किया गया.

नोएडा के जसविंदर चहल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया है. याची का कहना है कि उसने आईसीआईसीआई बैंक से 7. 80 लाख का होम लोन वर्ष 2002 में लिया था. उसे विदेश जाना था इसलिए उसने समय से पहले ही लोन चुकता कर दिया. बैंक की ओर से उसे आशय का प्रमाण पत्र भी दे दिया गया तथा उसकी बंधक संपत्ति को रिलीज भी कर दिया गया. सभी दस्तावेज याची को बैंक ने लौटा दिए.

इसके बावजूद बैंक द्वारा सी बिल रेटिंग में याची को डिफाल्टर दिखाया जा रहा है. इतना ही नहीं याची को परेशान करने के लिए बैंक की ओर से उसके खिलाफ सिविल सूट दाखिल कर दिया गया. जिस पर उसने लिखित जवाब दाखिल किया है. सिविल सूट दाखिल करने के बाद भी बैंक के अधिकारी रुके नहीं और उन्होंने लोन वसूली के लिए दो रिकवरी एजेंट नियुक्त कर दिए, जो उसके घर पहुंचकर तमाशा खड़ा कर रहे हैं तथा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. इससे याची की सामाजिक प्रतिष्ठा को गहरी ठेस पहुंची है.

इस पर कोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है कि पूरा लोन चुकता कर देने के बाद भी याची को परेशान क्यों किया जा रहा है और आईसीआईसीआई बैंक के ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैंकों को रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर रोक लगाने का स्पष्ट निर्देश देने के बावजूद बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं क्यों ली जा रही हैं.

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को निर्देश, जरूरत नहीं तो निरस्त करें भूमि अधिग्रहण या मुआवजा दें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बागपत के एक मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से कहा है कि जमीन की जरूरत नहीं है तो भूमि का अधिग्रहण निरस्त करे या याची को मुआवजे का चार सप्ताह में भुगतान करे. ऐसा न कर सके तो स्पष्ट करे कि क्यों न भारी हर्जाना लगाते हुए याचिका मंजूर कर ली जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति एमके गुप्ता एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने बागपत के सतीश चंद्र जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. याची का कहना है कि धारा 3डी के तहत प्राधिकरण ने याची की जमीन का अधिग्रहण किया. जमीन केंद्र सरकार में निहित हो गई, लेकिन कोई मुआवजा नहीं दिया गया.

इस मामले में कोर्ट ने एनएच आई से पूछा तो बताया गया कि अब याची की अधिग्रहीत ज़मीन की जरूरत नहीं है, इसलिए अवार्ड जारी नहीं किया गया. इस पर कोर्ट ने जानना चाहा कि जब अधिग्रहण आदेश के कारण जमीन केंद्र सरकार को दे दी गई तो मुआवजा देने से इनकार कैसे कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा धारा 3डी की कार्यवाही निरस्त करे और जमीन वापस करे या मुआवजा दे.

यह भी पढ़ें :हाईकोर्ट में अफजाल की सजा के मामले में सुनवाई जून के पहले सप्ताह, सरकारी अपील पर आपत्ति के लिए मिला समय - Hearing In Afzal Sentencing Case

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है कि याची द्वारा लोन का भुगतान कर दिए जाने के बावजूद रिकवरी के लिए रिकवरी एजेंट बैंक द्वारा क्यों नियुक्त किए गए. कोर्ट ने कहा कि रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई है तो किन परिस्थितियों में बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं ली जा रही हैं. कोर्ट ने अध्यक्ष को यह भी जवाब देने के लिए कहा है कि लोन चुकता कर देने के बावजूद बैंक द्वारा याची के विरुद्ध सिविल सूट क्यों दाखिल किया गया.

नोएडा के जसविंदर चहल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया है. याची का कहना है कि उसने आईसीआईसीआई बैंक से 7. 80 लाख का होम लोन वर्ष 2002 में लिया था. उसे विदेश जाना था इसलिए उसने समय से पहले ही लोन चुकता कर दिया. बैंक की ओर से उसे आशय का प्रमाण पत्र भी दे दिया गया तथा उसकी बंधक संपत्ति को रिलीज भी कर दिया गया. सभी दस्तावेज याची को बैंक ने लौटा दिए.

इसके बावजूद बैंक द्वारा सी बिल रेटिंग में याची को डिफाल्टर दिखाया जा रहा है. इतना ही नहीं याची को परेशान करने के लिए बैंक की ओर से उसके खिलाफ सिविल सूट दाखिल कर दिया गया. जिस पर उसने लिखित जवाब दाखिल किया है. सिविल सूट दाखिल करने के बाद भी बैंक के अधिकारी रुके नहीं और उन्होंने लोन वसूली के लिए दो रिकवरी एजेंट नियुक्त कर दिए, जो उसके घर पहुंचकर तमाशा खड़ा कर रहे हैं तथा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. इससे याची की सामाजिक प्रतिष्ठा को गहरी ठेस पहुंची है.

इस पर कोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है कि पूरा लोन चुकता कर देने के बाद भी याची को परेशान क्यों किया जा रहा है और आईसीआईसीआई बैंक के ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैंकों को रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर रोक लगाने का स्पष्ट निर्देश देने के बावजूद बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं क्यों ली जा रही हैं.

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को निर्देश, जरूरत नहीं तो निरस्त करें भूमि अधिग्रहण या मुआवजा दें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बागपत के एक मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से कहा है कि जमीन की जरूरत नहीं है तो भूमि का अधिग्रहण निरस्त करे या याची को मुआवजे का चार सप्ताह में भुगतान करे. ऐसा न कर सके तो स्पष्ट करे कि क्यों न भारी हर्जाना लगाते हुए याचिका मंजूर कर ली जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति एमके गुप्ता एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने बागपत के सतीश चंद्र जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. याची का कहना है कि धारा 3डी के तहत प्राधिकरण ने याची की जमीन का अधिग्रहण किया. जमीन केंद्र सरकार में निहित हो गई, लेकिन कोई मुआवजा नहीं दिया गया.

इस मामले में कोर्ट ने एनएच आई से पूछा तो बताया गया कि अब याची की अधिग्रहीत ज़मीन की जरूरत नहीं है, इसलिए अवार्ड जारी नहीं किया गया. इस पर कोर्ट ने जानना चाहा कि जब अधिग्रहण आदेश के कारण जमीन केंद्र सरकार को दे दी गई तो मुआवजा देने से इनकार कैसे कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा धारा 3डी की कार्यवाही निरस्त करे और जमीन वापस करे या मुआवजा दे.

यह भी पढ़ें :हाईकोर्ट में अफजाल की सजा के मामले में सुनवाई जून के पहले सप्ताह, सरकारी अपील पर आपत्ति के लिए मिला समय - Hearing In Afzal Sentencing Case

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