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देहरादून में 9° तापमान, रात में ठिठुर रहे खुले में रहने को मजबूर लोग, रैन बसेरों का रियलिटी चेक - UTTARAKHAND NIGHT SHELTER

देहरादून में खुले में सोने को मजबूर मजदूर वर्ग, कहीं अलाव की व्यवस्था नहीं, तो कहीं लोगों को रैन बसेरों की नहीं जानकारी

UTTARAKHAND NIGHT SHELTER
ठंड से ठिठुर रहीं जिंदगियां (PHOTO- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 24, 2024, 5:15 PM IST

देहरादून (धीरज सजवाण): जहां एक तरफ NDMA (National Disaster Management Authority) और उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने शीतलहर को लेकर अलर्ट जारी किया है. दूसरी ओर बेसहारा लोग खुली सड़क पर सोने को मजबूर हैं. क्या हैं देहरादून शहर में शाम ढलने के बाद के हालात देखिए हमारी ग्राउंड रिपोर्ट में.

कपड़े जलाते नजर आए मजदूर: पहाड़ी जनपदों में रात में न्यूनतम तापमान नीचे जाने की कगार पर है. ऐसे में निम्न वर्ग के लोगों के लिए यह दौर बेहद मुश्किल भरा है. ऐसे में क्या कुछ व्यवस्था गरीब तबके के लोगों के लिए की जा रही हैं और रैन बसेरों के क्या कुछ हालात हैं. इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की. हमने सबसे पहले देहरादून घंटाघर का रुख किया. घंटाघर शहर का सबसे व्यस्ततम चौक है. यहां पर मजदूर खड़े होते हैं और देर रात तक मजदूर काम के लिए राह देखते हैं. ऐसे में यहां पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे ठंड से बचने के लिए मजदूर कपड़े जलाते नजर आए.

घंटाघर में अलाव की नहीं व्यवस्था: मजदूरों ने कहा कि जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा उनके लिए अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे वो कूड़ा या फिर दुकानों से निकलने वाले कपड़े को जलाकर अलाव जलाते हैं. उन्होंने बताया कि 7 बजे के आसपास अलाव के लिए लकड़ियां पुलिस चौकी के पास डाली जाती हैं, लेकिन जहां पर आम मजदूर होते हैं, वहां पर अलाव की व्यवस्था नहीं की गई है.

त में ठिठुर रहे खुले में रहने को मजबूर लोग (VIDEO-ETV Bharat)

खुले में रात गुजारने को मजबूर लोग: मजदूर ने बताया कि वह इस कड़ाके की सर्दी में इसलिए खुले में रहने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि हाल ही में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के चलते काठ बांग्ला क्षेत्र में उसका घर तोड़ दिया गया और उसके बाद उसके पास कोई छत नहीं है. उन्होंने कहा कि रैन बसेरे में उनकी एंट्री नहीं है, क्योंकि उनके पास लोकल आईडी है.

दुकानों के सामने सो रहे लोग: वहीं एक बुजुर्ग ने बताया कि जब घंटाघर में दुकानें बंद हो जाती हैं, तो उन दुकानों के शटर के आगे सोते हैं और सुबह दुकान खुलने से पहले उठ जाते हैं. वह दिल्ली शामली के निवासी हैं और देहरादून शादी इवेंट्स में काम करने के लिए आए हैं, लेकिन इस कड़ाके की सर्दी में वह खुले में रात गुजारने के लिए मजबूर हैं.

गरीबों को 10 रुपए में मिल रहा बेड: घंटाघर के पास मौजूद एक प्राइवेट रैन बसेरा जो चक्ख़ू मोहल्ला में मौजूद है, यहां पर ₹10 प्रति बिस्तर के हिसाब से गरीब लोगों को बेड दिया जाता है. 100 लोगों की कैपेसिटी वाले इस रैन बसेरे में इन दिनों खूब भीड़ देखने को मिल रही है.

सरकारी रैन बसेरों में नहीं पहुंच रहे लोग: देहरादून में जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा चार रैन बसेरे संचालित किए जा रहे हैं. इनमें से एक प्राइवेट घंटाघर के पास मौजूद है. वहीं पटेल नगर आईएसबीटी ट्रांसपोर्ट नगर और रायपुर में नगर निगम के खुद के रैन बसेरे रहे हैं, जहां पर बिना किसी शुल्क के असहाय व्यक्ति और निर्धन व्यक्तियों के रुकने की पूरी व्यवस्थाएं की गई हैं. पटेलनगर रैन बसेरा का जब दौरा किया गया, तो यहां पर हमें बहुत कम लोग देखने को मिले. हालांकि व्यवस्था यहां पर अच्छी थी. पटेल नगर रैन बसेरे में महिलाओं के लिए भी अलग से कमरे बनाए गए थे. हालांकि यहां पर आने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है. इसके अलावा आईएसबीटी ट्रांसपोर्ट नगर और रायपुर में मौजूद रैन बेसेरों में भी यही हालात हैं.

ISBT पर शाम को ठंड बढ़ते ही घटने लगी आवाजाही: आईएसबीटी चौक पर लोगों की आवाजाही ठीक-ठाक मिली और यहां पर अलाव की भी हमें व्यवस्था देखने को मिली, लेकिन आईएसबीटी बस स्टेशन के अंदर लोग बहुत कम देखने को मिले. देर शाम से ठंड बढ़ने के बाद से ही लोगों की आवाजाही अब कम होने लगी है. देहरादून आईएसबीटी के अंदर मौजूद वेटिंग रूम में भी हमें दो-तीन लोग ऐसे मिले जो कि वहां पर रात बिता रहे थे. इसी बीच उन्होंने बताया कि उन्हें रैन बसेरे की जानकारी नहीं थी कि आसपास में सरकारी रैन बसेरा है. बहरहाल जिला प्रशासन द्वारा रैन बसेरे तो बनाए गए हैं, लेकिन उनको लेकर गरीबों को कोई जानकारी और जागरूकता नहीं है.

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कपड़े जलाते नजर आए मजदूर: पहाड़ी जनपदों में रात में न्यूनतम तापमान नीचे जाने की कगार पर है. ऐसे में निम्न वर्ग के लोगों के लिए यह दौर बेहद मुश्किल भरा है. ऐसे में क्या कुछ व्यवस्था गरीब तबके के लोगों के लिए की जा रही हैं और रैन बसेरों के क्या कुछ हालात हैं. इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की. हमने सबसे पहले देहरादून घंटाघर का रुख किया. घंटाघर शहर का सबसे व्यस्ततम चौक है. यहां पर मजदूर खड़े होते हैं और देर रात तक मजदूर काम के लिए राह देखते हैं. ऐसे में यहां पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे ठंड से बचने के लिए मजदूर कपड़े जलाते नजर आए.

घंटाघर में अलाव की नहीं व्यवस्था: मजदूरों ने कहा कि जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा उनके लिए अलाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे वो कूड़ा या फिर दुकानों से निकलने वाले कपड़े को जलाकर अलाव जलाते हैं. उन्होंने बताया कि 7 बजे के आसपास अलाव के लिए लकड़ियां पुलिस चौकी के पास डाली जाती हैं, लेकिन जहां पर आम मजदूर होते हैं, वहां पर अलाव की व्यवस्था नहीं की गई है.

त में ठिठुर रहे खुले में रहने को मजबूर लोग (VIDEO-ETV Bharat)

खुले में रात गुजारने को मजबूर लोग: मजदूर ने बताया कि वह इस कड़ाके की सर्दी में इसलिए खुले में रहने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि हाल ही में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के चलते काठ बांग्ला क्षेत्र में उसका घर तोड़ दिया गया और उसके बाद उसके पास कोई छत नहीं है. उन्होंने कहा कि रैन बसेरे में उनकी एंट्री नहीं है, क्योंकि उनके पास लोकल आईडी है.

दुकानों के सामने सो रहे लोग: वहीं एक बुजुर्ग ने बताया कि जब घंटाघर में दुकानें बंद हो जाती हैं, तो उन दुकानों के शटर के आगे सोते हैं और सुबह दुकान खुलने से पहले उठ जाते हैं. वह दिल्ली शामली के निवासी हैं और देहरादून शादी इवेंट्स में काम करने के लिए आए हैं, लेकिन इस कड़ाके की सर्दी में वह खुले में रात गुजारने के लिए मजबूर हैं.

गरीबों को 10 रुपए में मिल रहा बेड: घंटाघर के पास मौजूद एक प्राइवेट रैन बसेरा जो चक्ख़ू मोहल्ला में मौजूद है, यहां पर ₹10 प्रति बिस्तर के हिसाब से गरीब लोगों को बेड दिया जाता है. 100 लोगों की कैपेसिटी वाले इस रैन बसेरे में इन दिनों खूब भीड़ देखने को मिल रही है.

सरकारी रैन बसेरों में नहीं पहुंच रहे लोग: देहरादून में जिला प्रशासन और नगर निगम द्वारा चार रैन बसेरे संचालित किए जा रहे हैं. इनमें से एक प्राइवेट घंटाघर के पास मौजूद है. वहीं पटेल नगर आईएसबीटी ट्रांसपोर्ट नगर और रायपुर में नगर निगम के खुद के रैन बसेरे रहे हैं, जहां पर बिना किसी शुल्क के असहाय व्यक्ति और निर्धन व्यक्तियों के रुकने की पूरी व्यवस्थाएं की गई हैं. पटेलनगर रैन बसेरा का जब दौरा किया गया, तो यहां पर हमें बहुत कम लोग देखने को मिले. हालांकि व्यवस्था यहां पर अच्छी थी. पटेल नगर रैन बसेरे में महिलाओं के लिए भी अलग से कमरे बनाए गए थे. हालांकि यहां पर आने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है. इसके अलावा आईएसबीटी ट्रांसपोर्ट नगर और रायपुर में मौजूद रैन बेसेरों में भी यही हालात हैं.

ISBT पर शाम को ठंड बढ़ते ही घटने लगी आवाजाही: आईएसबीटी चौक पर लोगों की आवाजाही ठीक-ठाक मिली और यहां पर अलाव की भी हमें व्यवस्था देखने को मिली, लेकिन आईएसबीटी बस स्टेशन के अंदर लोग बहुत कम देखने को मिले. देर शाम से ठंड बढ़ने के बाद से ही लोगों की आवाजाही अब कम होने लगी है. देहरादून आईएसबीटी के अंदर मौजूद वेटिंग रूम में भी हमें दो-तीन लोग ऐसे मिले जो कि वहां पर रात बिता रहे थे. इसी बीच उन्होंने बताया कि उन्हें रैन बसेरे की जानकारी नहीं थी कि आसपास में सरकारी रैन बसेरा है. बहरहाल जिला प्रशासन द्वारा रैन बसेरे तो बनाए गए हैं, लेकिन उनको लेकर गरीबों को कोई जानकारी और जागरूकता नहीं है.

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