रांची: सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण को लेकर बहुमत से बड़ा फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा दिया जा सकता है और उसका उपवर्गीकरण किया जा सकता है. जस्टिस गवई ने ओबीसी आरक्षण की तरह SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर बनाने की भी बात कही है. ईटीवी भारत ने भारत ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर झारखंड विधानसभा के विधायकों की राय जानने की कोशिश की तो ज्यादातर विधायकों ने कहा कि इस पर विस्तृत चर्चा किए जाने की जरूरत है.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण को लेकर दिए फैसले पर अपनी बात रखते हुए कांग्रेस की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा इसमें दो मुख्य बातें हैं. पहला सब कैटेगरी का, हम भी चाहते हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति के सभी लोगों की सरकारी नौकरियों और अन्य जगहों पर पर्याप्त भागीदारी हो. उन्होंने कहा कि झारखंड में ही 32 जनजाति निवास करती है, उन सभी का विकास हो इसके लिए जरूरी है कि उनमें उप वर्गीकरण कर सबको मौका दिया जाए. लेकिन फैसले में जहां तक क्रीमीलेयर की बात है उससे वह असहमत हैं.
विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि मेरे जेब में पैसे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हमें छुआछूत और भेदभाव नहीं सहना पड़ता है. आज भी समाज में भेदभाव है. कांग्रेस विधायक ने कहा कि इस मुद्दे पर यह मेरा पहला पॉइंट ऑफ व्यू है और इसपर चर्चा होनी चाहिए.
आरक्षण से मेरे जीवन में बदलाव हुआ है तो अब मेरे बाद वालों को मौका मिलना ही चाहिएः समरीलाल
ईटीवी भारत ने अनुसूचित जाति समाज से आनेवाले दो भाजपा विधायकों से भी सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले पर बात की. विधायक रामकिशुन दास ने कहा कि फैसले की पूरी जानकारी लेने के बाद अपनी राय रखेंगे. वहीं विधायक समरीलाल ने बिहार में पहले से दलित-महादलित का कांसेप्ट लागू होने का जिक्र करते हुए कहा कि हमारा तो पहले से यह मानना है कि आरक्षण का लाभ सबसे ज्यादा जरूरतमंद को सबसे पहले मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से यह पता चलेगा कि आरक्षण से हमारा कितना विकास हुआ है और अगर हमारे जीवन में बदलाव हुआ है तो फिर मेरे बाद वाले लोगों को मौका मिलना ही चाहिए.
वहीं आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है. आने वाले दिनों में यह प्रस्ताव सदन के पटल पर आएगा तो जरूर इस पर चर्चा होगी.
क्या था 01 अगस्त 2024 को दिया सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने 01 अगस्त 2024 को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए ई.वी. चिन्नैया मामले में 2004 के फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि अनुसूचित जाति-जनजाति में उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने नए फैसले में कहा है कि यह स्वीकार्य है और यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है. इसके अलावा, न्यायमूर्ति गवई ने प्रस्ताव दिया कि राज्यों को एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक अभ्यास करना चाहिए ताकि उन्हें आरक्षण के लाभों से बाहर रखा जा सके.
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