रतलाम: किसी जमाने में गानों की रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो केवल माया नगरी मुंबई और कुछ बड़े शहरों में ही उपलब्ध होते थे. लेकिन अब आपको मध्य प्रदेश के दूरस्थ आदिवासी अंचल में स्टूडियो मिल जाएंगे. इसी तरह का एक स्टूडियो रतलाम में भी है, जहां एक झोपड़ी नुमा घर में आधुनिक रिकॉर्डिंग उपकरणों से सजाकर रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनाया गया है, जिसे लोग तंबूरा स्टूडियो के नाम से जानते हैं. यहां रिकॉर्डिंग करने के लिए एमपी और राजस्थान के कलाकार पहुंचते हैं. तंबूरा स्टूडियो को कांगसी गांव के आदिवासी युवक दीपक चरपोटा ने बनाया है. दीपक खुद एक लोक कलाकार हैं, जो पहले मजदूरी करते थे.
6 साल में तैयार किया स्टूडियो
दरअसल, रतलाम जिले के कांगसी गांव के गरीब आदिवासी परिवार से आने वाले दीपक चरपोटा ने मेहनत और मजदूरी करके 6 साल में यह तंबूरा स्टूडियो स्थापित किया है. इसका एक-एक सामान दीपक ने पाई-पाई जोड़कर खरीदा और खुद इंस्टॉल किया है. कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि आज तंबूरा स्टूडियो मालवा-निमाड़ सहित एमपी और राजस्थान में प्रसिद्ध हो रहा है. आसपास के लोक कलाकार यहां आकर अपने गानों और एलबम की रिकॉर्डिंग करवा रहे हैं, जिससे दीपक को अच्छी आमदनी मिलने लगी है.
जानिए तंबूरा स्टूडियो की कहानी
रतलाम जिले के शिवगढ़ के पास स्थित कांगसी गांव में एक कच्चे-पक्के झोपड़ी नुमा घर में यह स्टूडियो बनाया गया है. यहां पहली बार पहुंचने वाले लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि इतने छोटे गांव में एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो मौजूद है. झोपड़ी के अंदर एक ऐसा स्टूडियो है, जैसे माया नगरी मुंबई या बड़े शहरों में होते हैं. यहां बकायदा लोकगीतों, आदिवासी कलाकारों के म्यूजिक एलबम और बड़े लोक कलाकारों के गानों की रिकॉर्डिंग होती है.
इस तरह हुई स्टूडियो बनाने की शुरुआत
तंबूरा स्टूडियो के संस्थापक दीपक चरपोटा ने बताया, '' यह इतना आसान भी नहीं था. मैं एक गरीब परिवार से आता हूं और अपने लोकगीतों की रिकॉर्डिंग के लिए एक बार मैं इंदौर के एक प्रोफेशनल स्टूडियो में गया था, लेकिन रिकॉर्डिंग की कीमत सुनकर मैं वापस अपने गांव लौट आया. इसके बाद घर पर ही स्टूडियो तैयार करने के बारे में सोंचने लगा, लेकिन इतना बजट नहीं था. फिर 2018-19 से ही मैंने मजदूरी कर रुपए जोड़ना शुरू किया. एक-एक कर स्टूडियो के लिए सामान खरीदना शुरू किया. मैं खुद भजन भी गाता हूं. भजन प्रोग्राम और अन्य कार्यक्रमों से मिली राशि को भी मैंने स्टूडियो बनाने में खर्च किया.'' लगभग 6 साल की कड़ी मेहनत से दीपक ने तंबूरा स्टूडियो तैयार कर लिया है. खास बात यह भी है कि दीपक ने सारे इक्विपमेंट खुद ही इंस्टॉल किए है.
अब स्टूडियो से कर रहे हैं अच्छी कमाई
दीपक चारपोटा की इस अथक मेहनत की सराहना पद्मश्री प्रहलाद टिपानिया ने भी की है. दीपक के इस तंबूरा स्टूडियो में रिकॉर्डिंग के लिए अब कई कलाकार पहुंचने लगे हैं. लोक कलाकार रामलाल राजोरिया, देवीदास जी बैरागी, नेहा डावर और नरसिंह डोडियार जैसे प्रसिद्ध कलाकार यहां रिकॉर्डिंग कर चुके हैं. हालांकि, दीपक स्थानीय कलाकारों को निशुल्क सुविधा उपलब्ध करवाते हैं. दीपक के मुताबिक, कलाकार रिकॉर्डिंग के लिए बिना मांगे फीस देते हैं. इस तरह उनकी आमदनी अब बढ़ने लगी है. तंबूरा स्टूडियो और दीपक चरपोटा ऑफिशियल नाम से यूट्यूब चैनल से भी दीपक को अब आमदनी होने लगी है.
- मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाके के क्रिकेटरों का दुनिया में जलवा, वीनू मांकड़ ट्रॉफी में मचाई तबाही
- कबाड़ से जुगाड़ देख राज्यपाल भी चमके, आदिवासियों के हो गए मुरीद, बना दी ऐसी-ऐसी चीजें
क्षेत्र में प्रसिद्ध हो रहा है तंबूरा स्टूडियो
दीपक चरपोटा का कहना है कि आसपास के स्थानीय लोक कलाकारों के लिए तंबूरा स्टूडियो के द्वार हमेशा खुले हैं. इसका उद्देश्य स्थानीय कलाकारों की प्रतिभा को प्लेटफॉर्म उपलब्ध करवाना है. बहरहाल एक आदिवासी कलाकार ने रुपए और संसाधनों के अभाव के बावजूद अपने सपने को कड़ी मेहनत और लगन के साथ पूरा किया है. आज तंबूरा स्टूडियो आसपास के शहर में ही नहीं बल्कि एमपी और राजस्थान में प्रसिद्ध हो रहा है.