जयपुर. 'तकनीकी विकास ने मनुष्य को पंगू बना दिया है.' ये कहना है राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचार्य का. रविवार को राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के समापन अवसर पर अपने संबोधन के दौरान गोविंदाचार्य ने देश की परिस्थितियों पर विचार रखते हुए ये बातें कहीं. साथ ही देश के सामान्य आदमी का आह्वान करते हुए उन्हें गोपालन और प्राकृतिक खेती पर ध्यान देने की अपील दी.
धैर्य, परिश्रम और सही दिशा में कार्य कुशलता जरूरी : राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का रविवार को समापन हुआ. प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न मुद्दों पर चिंतन करते हुए भविष्यगामी आंदोलन की सक्रियता के बीज बोए गए. राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि संगठन को सफल बनाने के लिए धैर्य, परिश्रम और सही दिशा में कार्य कुशलता जरूरी है, जबकि संवाद का विशेष हुनर होना चाहिए. ये शब्द छोटा है, लेकिन ये वार्तालाप का विशेष शास्त्र है. उन्होंने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध और 1947 की आजादी के बाद के भारत की ही नहीं विश्व की कार्यशैली में परिवर्तन आया है. बाजारवादी भावना हावी होने लगी है. जहां 5000 सालों का बदलाव, पिछले 500 सालों में देखा, उनसे प्रबल बदलाव इन 50 सालों में देखने को मिला है. वर्तमान में हमने जो 20 साल का बदलाव देखा है, उसने तो पराकाष्ठा पार कर दी है.
पहलू और परिणाम की चिंता करने की आवश्यकता : उन्होंने कहा कि जमीनों के खरीदने का उद्देश्य ही बदल गया है. खरीदार ये सोचता है कि भविष्य में भाव बढ़ेगा तो जीवन शैली में एक नया बदलाव आएगा, लेकिन इन सभी के पीछे छिपी हुई समस्याओं को देखना भूल गए हैं. आने वाली समस्याओं के कारण स्वरूप, पहलू और परिणाम की भी चिंता करने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत परस्त-गरीब परस्त नीतियां ही देश के संपूर्ण विकास का सूचक है. इस दौरान गोविंदाचार्य ने आह्वान करते हुए कहा कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और अन्याय को रोकना चाहिए. बेरोजगारी वृद्धि की रोकथाम के लिए कार्य करने चाहिए. जानवरों की उपयोगिता को समझना चाहिए.
उन्होंने कहा कि शास्त्रों का महत्व देने के साथ ही श्रम को महत्व देना चाहिए. तकनीकी विकास ने मनुष्य को पंगू बना दिया है. देश का सामान्य आदमी गोपालन और प्राकृतिक खेती पर ध्यान दें. इससे हवा और पानी भी शुद्ध होगी. इस दौरान उन्होंने पदमश्री सुंडाराम कुमावत और लक्ष्मण सिंह लापोड़िया की ओर से किए गए कार्य स्थलों को नए तीर्थ और इन्हें नए देवता कहकर उद्बोधित किया. साथ ही सभी से कामना की कि इन विभितियों ने जिन क्षेत्रों में काम किया है उन क्षेत्रों की यात्रा करें, वहां से सीखें और अपने जीवन में उतारें.