रामनगर: उत्तराखंड में एक स्कूल ऐसा भी है जो पांच साल श्मशान में संचालित हुआ. श्मशान में संचालित इस स्कूल में छात्रों को संस्कृत के साथ ही संस्कृति का क्षान दिया जाता था. ये स्कूल रामनगर में स्थित था. 1983 के बाद पांच सालों तक इस स्कूल ने संघर्ष किया. संस्कृत भाषा को जिंदा रखने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए इसे चलाने वाले लोगों ने जी तोड़ मेहनत की. जिसके बाद इस स्कूल के जमीन आवंटित की गई. रामनगर संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य डीसी हरबोला और उनके साथियों ने इस स्कूल की शुरुआत की थी.
1983 में संस्कृत स्कूल रामनगर की हुई शुरुआत : संस्कृत स्कूल रामनगर के प्राचार्य डीसी हरबोला ने बताया कि 1983 में संस्कृत विद्यालय के लिए कोई भी भूमि नहीं मिली थी और संस्कृत विद्यालय की शुरुआत भी करनी थी. जिससे उन्होंने समाज के लोगों द्वारा रामनगर के शमसान घाट में संस्कृत विद्यालय की शुरुआत की और 5 साल तक वहां विद्यालय चलाया. उन्होंने बताया कि उस वक्त लगभग रोजाना ही ऐसा दौर आता था, जब बच्चे पढ़ते थे और बगल में चिताएं जलती थी. उन्होंने कहा कि शमशान घाट में ही हमें कमरे भी दिए गए थे, जहां पर हमारे बच्चे रहते थे.
एक ही दिन में कई चिताएं जलती देखते थे बच्चे: डीसी हरबोला ने बताया कि बहुत बार एक ही दिन में कई चिताएं जलती थी, जिससे हमारा और बच्चों का मन भी अजीब हो जाता था और कई दिनों तक भोजन नहीं बना पाते थे. ऐसे में बच्चों को शमशान घाट से बाहर लाकर भोजन कराया जाता था. उन्होंने कहा कि 1989 में श्री नागा बाबा मंदिर समिति द्वारा संस्कृत विद्यालय के लिए जमीन दान में दी गई और फिर शहर के गड़मान्य लोगों की मदद से यहां पर विद्यालय का निर्माण हुआ.
श्मशान घाट जाने में डरते हैं लोग: रामनगर के सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा ने बताया कि लोग श्मशान घाट जाने में डरते थे, लेकिन उस समय श्मशान घाट में संस्कृत विद्यालय संचालित होता था. ऐसे में यह द्रश्य बड़ा रोचक और डरावना होता था.
संस्कृत स्कूल रामनगर में 73 से ज्यादा बच्चे कर रहे पढ़ाई: शिक्षक मोहित बाबू शर्मा ने बताया कि यहां पर संस्कृत की पढ़ाई पूरे नियमों और संस्कारों के साथ कराई जाती है. उन्होंने कहा कि आज हमारे विद्यालय में 73 से ज्यादा बच्चे छठवीं से 12वीं तक पढ़ाई कर रहे हैं. हमारे विद्यालय में अल्मोड़ा, नैनीताल, काशीपुर और जसपुर क्षेत्रों के विद्यार्थी छात्रावास में रहकर संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
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