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सलूड़-डुंग्रा गांव में रम्माण मेले का समापन, मुखौटा नृत्य ने मोहा दर्शकों का मन - ramman mukhota mela

World Heritage Ramman Fair जोशीमठ के सलूड़-डुंग्रा गांव में विश्व धरोहर रम्माण मेला आयोजित किया गया. मेले में राम-लक्ष्मण जन्म, राम-लक्ष्मण का जनकपुरी में भ्रमण जैसी घटनाओं को मुखौटा नृत्य के जरिये पेश किया गया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 25, 2024, 10:50 PM IST

Updated : Apr 25, 2024, 10:59 PM IST

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सलूड़-डुंग्रा गांव में रम्माण मेले का आयोजन

थराली: जोशीमठ के सलूड-डुंग्रा गांव में विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर रम्माण मेले का आज आयोजन किया गया. मेले में भूमि क्षेत्रपाल की पूजा-अर्चना, 18 पत्तर का नृत्य, 18 तालों पर राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान का नृत्य किया गया. सलूड गांव में दूर-दूर के क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु रम्माण मेला देखने पहुंचे हैं.

रम्माण को विश्व धरोहर का दर्जा: बता दें कि हर साल जोशीमठ विकासखंड के सलूड़ गांव में आठवीं शताब्दी से चली आ रही रम्माण(रामायण)मेले का आयोजन ग्रामीण बड़ी धूमधाम से करते हैं. इस दौरान कलाकारों द्वारा रामायण का मंचन कर मुखोटा नृत्य मूक रहकर किया जाता है. बताया जाता है कि सबसे पहले आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रम्माण का आयोजन किया था. तब से ग्रामीण आज तक विधि-विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. मेले की मान्यता और मुखोटा नृत्य को देखकर वर्ष 2009 में यूनेस्को द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर भी घोषित किया गया है. 7 जोड़ों ने पारंपरिक ढोल-दमाऊ की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य ने सबको रोमांचित किया. अंत में भूमि क्षेत्रपाल देवता अवतरित होकर 1 वर्ष तक के लिए अपने मूल स्थान पर विराजित हो गए.

रम्माण मेले की विशेषता: रम्माण मेले की खास बात यह है कि इसमें सम्पूर्ण रामायण को संक्षिप्त रुप को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. राम-लक्ष्मण-सीता-हनुमान पारम्परिक श्रृगांर एवं वेशभूषा में पूरे दिन 18 अलग अलग धुन और तालों पर नृत्य करते हैं. रम्माण नृत्य के जरिए से रामायण की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे राम-लक्ष्मण जन्म, राम-लक्ष्मण का जनकपुरी में भ्रमण, सीता स्वयंवर, राम-लक्ष्मण-सीता का वन गमन, स्वर्ण बध, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन तथा राजतिलक के जैसी घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है.

रम्माण मेले का मुखौटा नृत्य सबसे विशिष्ट: रम्माण के संयोजक डॉ. कुशल सिंह भंडारी ने बताया कि सलूड़-डुंग्रा का रम्माण मेला इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां का मुखौटा नृत्य सबसे विशिष्ट है और संस्कृति से जुड़ा है. ये मेला सबको जोड़ने के साथ-साथ परंपरा को जीवित रखे हुए है. वहीं, रंगकर्मी डॉ. दाता राम पुरोहित ने कहा कि सलूड़-डुंग्रा की रम्माण वैदिक संस्कृति से जुड़ी और रामायण काल की घटनाओं को मूर्त रूप देती सांस्कृतिक कला है. उन्होंने कहा कि हजारों की संख्या में सलूड़-डुंग्रा की रम्माण में शामिल श्रद्धालुओं के कारण ही ये रम्माण विश्व की सांस्कृतिक धरोहर है.

उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की विधाएं मौजूद : रंगकर्मी डॉ. दाता राम पुरोहित ने कहा कि उत्तराखंड का जिक्र वैदिक काल से होता आ रहा है, इसलिए आज भी उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की सैकड़ों विधाएं मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि कई लोगों के अथक प्रयासों और दृढ़ निश्चय द्वारा कई विधाओं के संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किए गए हैं. ये काम उत्तराखंड की लोक संस्कृति से रूबरू कराते हैं. ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक रम्माण है.

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सलूड़-डुंग्रा गांव में रम्माण मेले का आयोजन

थराली: जोशीमठ के सलूड-डुंग्रा गांव में विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर रम्माण मेले का आज आयोजन किया गया. मेले में भूमि क्षेत्रपाल की पूजा-अर्चना, 18 पत्तर का नृत्य, 18 तालों पर राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान का नृत्य किया गया. सलूड गांव में दूर-दूर के क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु रम्माण मेला देखने पहुंचे हैं.

रम्माण को विश्व धरोहर का दर्जा: बता दें कि हर साल जोशीमठ विकासखंड के सलूड़ गांव में आठवीं शताब्दी से चली आ रही रम्माण(रामायण)मेले का आयोजन ग्रामीण बड़ी धूमधाम से करते हैं. इस दौरान कलाकारों द्वारा रामायण का मंचन कर मुखोटा नृत्य मूक रहकर किया जाता है. बताया जाता है कि सबसे पहले आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रम्माण का आयोजन किया था. तब से ग्रामीण आज तक विधि-विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. मेले की मान्यता और मुखोटा नृत्य को देखकर वर्ष 2009 में यूनेस्को द्वारा रम्माण को विश्व धरोहर भी घोषित किया गया है. 7 जोड़ों ने पारंपरिक ढोल-दमाऊ की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य ने सबको रोमांचित किया. अंत में भूमि क्षेत्रपाल देवता अवतरित होकर 1 वर्ष तक के लिए अपने मूल स्थान पर विराजित हो गए.

रम्माण मेले की विशेषता: रम्माण मेले की खास बात यह है कि इसमें सम्पूर्ण रामायण को संक्षिप्त रुप को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. राम-लक्ष्मण-सीता-हनुमान पारम्परिक श्रृगांर एवं वेशभूषा में पूरे दिन 18 अलग अलग धुन और तालों पर नृत्य करते हैं. रम्माण नृत्य के जरिए से रामायण की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे राम-लक्ष्मण जन्म, राम-लक्ष्मण का जनकपुरी में भ्रमण, सीता स्वयंवर, राम-लक्ष्मण-सीता का वन गमन, स्वर्ण बध, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन तथा राजतिलक के जैसी घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है.

रम्माण मेले का मुखौटा नृत्य सबसे विशिष्ट: रम्माण के संयोजक डॉ. कुशल सिंह भंडारी ने बताया कि सलूड़-डुंग्रा का रम्माण मेला इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां का मुखौटा नृत्य सबसे विशिष्ट है और संस्कृति से जुड़ा है. ये मेला सबको जोड़ने के साथ-साथ परंपरा को जीवित रखे हुए है. वहीं, रंगकर्मी डॉ. दाता राम पुरोहित ने कहा कि सलूड़-डुंग्रा की रम्माण वैदिक संस्कृति से जुड़ी और रामायण काल की घटनाओं को मूर्त रूप देती सांस्कृतिक कला है. उन्होंने कहा कि हजारों की संख्या में सलूड़-डुंग्रा की रम्माण में शामिल श्रद्धालुओं के कारण ही ये रम्माण विश्व की सांस्कृतिक धरोहर है.

उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की विधाएं मौजूद : रंगकर्मी डॉ. दाता राम पुरोहित ने कहा कि उत्तराखंड का जिक्र वैदिक काल से होता आ रहा है, इसलिए आज भी उत्तराखंड में रामायण-महाभारत काल की सैकड़ों विधाएं मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि कई लोगों के अथक प्रयासों और दृढ़ निश्चय द्वारा कई विधाओं के संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किए गए हैं. ये काम उत्तराखंड की लोक संस्कृति से रूबरू कराते हैं. ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक रम्माण है.

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Last Updated : Apr 25, 2024, 10:59 PM IST
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