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इस मंदिर में पूजा करने आता था लंकापति रावण; भगवान राम के साथ होती है दशानन की पूजा

सारस्वत समाज के लोग रावण के पुतला दहन का करते हैं विरोध

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

मथुरा के इस मंदिर में रावण की होती है पूजा.
मथुरा के इस मंदिर में रावण की होती है पूजा. (Photo Credit; ETV Bharat)

मथुरा: दशहरे में रावण के पुतले के दहन की परंपरा सदियों पुरानी है. असत्य पर सत्य की जीत के पर्व विजयादशमी पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन कर लोग उत्सव मनाते हैं. लेकिन रावण का प्रकांड विद्वान भी माना गया है. साथ ही वह भगवान राम की ही तरह शिव का अनन्य भक्त था. मथुरा में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां राम और रावण दोनों की पूजा होती है. इस मंदिर में रावण की प्रतिमा भी स्थापित है, जो भगवान राम की मूर्ति के बगल ही है. श्रद्धालु दोनों की पूजा करते हैं. मान्यता है कि रावण इसी जगह पर शिव की अराधना करने आता था. उनका मानना है कि भगवान राम भी रावण की विद्वता का आदर करते थे, इसलिए रावण का पुतला दहन नहीं किया जाना चाहिए. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में.

मथुरा के इस मंदिर में रावण की होती है पूजा. (Video Credit; ETV Bharat)

रावण की पूजा, दहन का विरोध

मथुरा के लक्ष्मीनगर में यह अनोखा मंदिर बना हुआ है. यमुना नदी के किनारे बने इस शिव मंदिर में भगवान राम के साथ रावण की भी प्रतिमा है. मंदिर में राम और रावण की शिव अराधना की मुद्रा में प्रतिमा है. जिसकी श्रद्धालु पूजा करते हैं. बताते हैं कि यह मंदिर बना और ढाई साल पहले रावण की प्रतिमा यहां स्थापित की गई. हर साल दशहरे पर जब लोग रावण के पुतले का दहन करते हैं तो यहां लोग पूजा करते हैं. विजयदशमी के दिन लंकेश्वर भक्त मंडल समिति लंकापति रावण की विधि विधान से पूजा कर महा आरती करती है. समिति रावण के पुतले के दहन का विरोध भी करती है.

रावण का मथुरा से नाता

मान्यता है कि त्रेता युग में लंकापति रावण का रिश्ता मथुरा जो कि तब मधुपुरा के नाम से जाना जाता था, यहां रावण की बहन कुंभिनी का विवाह मधु राक्षस के साथ मधुपुरा में हुआ था. अपनी बहन से मिलने के लिए लंकापति रावण मधुपुरा आता रहता था. यमुना नदी के किनारे ही प्राचीन शिव मंदिर में आराधना रावण करता था. इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.

पुतला दहन का इसलिए विरोध

यहां सारस्वत समाज के लोग रावण के पुतले के दहन का विरोध करते हैं. मान्यता है कि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान और वेदों का ज्ञाता था. भगवान शिव की आराधना करता था, रावण की शिव के प्रति भक्ति और वेदों का ज्ञाता होने के बाद महा शक्तियों का समावेश देखकर भगवान राम ने कहा था कि इस संसार में रावण के बराबर कोई विद्वान इस धरती पर कोई नहीं होगा. हिंदू संस्कृति के अनुसार मृत व्यक्ति का एक बार ही पुतला जलाया जाता है, न कि बार-बार. यहां लोगों का कहना कि हर साल विजयदशमी पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो कि अनुचित है.

लंकेश भक्त मंडल समिति के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने बताया कि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान चारों वेदों का ज्ञाता था. भगवान राम ने भी उसकी विद्वता मानी थी. रावण भगवान शिव की आराधना करता था. त्रेता युग में यमुना नदी के किनारे प्राचीन शिव मंदिर, जो आज भी है, इस मंदिर में आकर शिव की आराधना करता था. मथुरा में दशानंद रावण की बहन कुम्भनी का विवाह मधु राक्षस के साथ हुआ था इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.

यह भी पढ़ें : यूपी का अक्षरधाम: गुजरात-दिल्ली जैसा सुंदर, 22 करोड़ से बनेगा बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट

मथुरा: दशहरे में रावण के पुतले के दहन की परंपरा सदियों पुरानी है. असत्य पर सत्य की जीत के पर्व विजयादशमी पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन कर लोग उत्सव मनाते हैं. लेकिन रावण का प्रकांड विद्वान भी माना गया है. साथ ही वह भगवान राम की ही तरह शिव का अनन्य भक्त था. मथुरा में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां राम और रावण दोनों की पूजा होती है. इस मंदिर में रावण की प्रतिमा भी स्थापित है, जो भगवान राम की मूर्ति के बगल ही है. श्रद्धालु दोनों की पूजा करते हैं. मान्यता है कि रावण इसी जगह पर शिव की अराधना करने आता था. उनका मानना है कि भगवान राम भी रावण की विद्वता का आदर करते थे, इसलिए रावण का पुतला दहन नहीं किया जाना चाहिए. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में.

मथुरा के इस मंदिर में रावण की होती है पूजा. (Video Credit; ETV Bharat)

रावण की पूजा, दहन का विरोध

मथुरा के लक्ष्मीनगर में यह अनोखा मंदिर बना हुआ है. यमुना नदी के किनारे बने इस शिव मंदिर में भगवान राम के साथ रावण की भी प्रतिमा है. मंदिर में राम और रावण की शिव अराधना की मुद्रा में प्रतिमा है. जिसकी श्रद्धालु पूजा करते हैं. बताते हैं कि यह मंदिर बना और ढाई साल पहले रावण की प्रतिमा यहां स्थापित की गई. हर साल दशहरे पर जब लोग रावण के पुतले का दहन करते हैं तो यहां लोग पूजा करते हैं. विजयदशमी के दिन लंकेश्वर भक्त मंडल समिति लंकापति रावण की विधि विधान से पूजा कर महा आरती करती है. समिति रावण के पुतले के दहन का विरोध भी करती है.

रावण का मथुरा से नाता

मान्यता है कि त्रेता युग में लंकापति रावण का रिश्ता मथुरा जो कि तब मधुपुरा के नाम से जाना जाता था, यहां रावण की बहन कुंभिनी का विवाह मधु राक्षस के साथ मधुपुरा में हुआ था. अपनी बहन से मिलने के लिए लंकापति रावण मधुपुरा आता रहता था. यमुना नदी के किनारे ही प्राचीन शिव मंदिर में आराधना रावण करता था. इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.

पुतला दहन का इसलिए विरोध

यहां सारस्वत समाज के लोग रावण के पुतले के दहन का विरोध करते हैं. मान्यता है कि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान और वेदों का ज्ञाता था. भगवान शिव की आराधना करता था, रावण की शिव के प्रति भक्ति और वेदों का ज्ञाता होने के बाद महा शक्तियों का समावेश देखकर भगवान राम ने कहा था कि इस संसार में रावण के बराबर कोई विद्वान इस धरती पर कोई नहीं होगा. हिंदू संस्कृति के अनुसार मृत व्यक्ति का एक बार ही पुतला जलाया जाता है, न कि बार-बार. यहां लोगों का कहना कि हर साल विजयदशमी पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो कि अनुचित है.

लंकेश भक्त मंडल समिति के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने बताया कि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान चारों वेदों का ज्ञाता था. भगवान राम ने भी उसकी विद्वता मानी थी. रावण भगवान शिव की आराधना करता था. त्रेता युग में यमुना नदी के किनारे प्राचीन शिव मंदिर, जो आज भी है, इस मंदिर में आकर शिव की आराधना करता था. मथुरा में दशानंद रावण की बहन कुम्भनी का विवाह मधु राक्षस के साथ हुआ था इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.

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