राजगढ़. लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मध्यप्रदेश की 9 सीटों पर वोटिंग हुई. जिसमें राजगढ़ सीट भी शामिल है. राजगढ़ के अलावा बैतूल, सागर, विदिशा, गुना, ग्वालियर, भिंड, मुरैना और भोपाल में भी वोटिंग हुई. मध्यप्रदेश की चर्चित सीटों में राजगढ़ सीट का भी नाम है क्योंकि यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है. वहीं इस चुनाव को दिग्विजय सिंह का आखिरी चुनाव भी कहा जा रहा है. राजगढ़ में सबसे तेज मतदान के कई मायने भी निकाले जा रहे हैं.
राजगढ़ सीट पर अबतक क्या हुआ?
- राजगढ़ में दोपहर 3 बजे तक 63.69 प्रतिशत मतदान
- राजगढ़ में दोपहर 1 बजे तक 52.60 प्रतिशत मतदान
- राजगढ़ में सुबह 11 बजे तक 34.81 प्रतिशत मतदान
- राजगढ़ में सुबह 9 बजे तक 16.57 प्रतिशत मतदान
दो बार सांसद रह चुके हैं दिग्विजय
प्रदेश के सीएम बनने से पूर्व दिग्विजय सिंह यहां से दो बार सांसद भी रह चुके हैं, और तभी से राजगढ़ दिग्विजय सिंह का गढ़ कहलाता है. ऐसे में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की 29 सीटों में से 28 सीटों पर कब्ज़ा जमाने वाली भारतीय जनता पार्टी, जहां अबकी बार 400 पार जैसे नारों के साथ मैदान में उतरी है, तो वहीं कांग्रेस अपनों के मैदान छोड़कर भागने से चिंतित है. पार्टी में बचे हुए लोग किसी भी तरह से अपनी प्रतिष्ठा बचाने में लगे हैं, हालांकि इस सीट पर कांटे की टक्कर नजर आती है.
क्या दिग्गी का तिलिस्म तोड़ पाएंगे नागर?
मध्यप्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा ने तीसरी बार रोडमल नागर को लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा है, जो दो बार सांसद भी रह चुके हैं. नागर का मुकाबला 33 साल के एक लम्बे अरसे के बाद लोकसभा चुनाव में उतरे दिग्विजय सिंह से होगा. राजगढ़ को दिग्विजय सिंह का गढ़ कहा जाता है, ऐसे में देखना ये होगा कि क्या मोदी लहर में भाजपा के रोडमल नागर दिग्विजय सिंह का तिलिस्म तोड़ पाएंगे? या फिर दिग्विजय अपनी जमीनी पकड़ कायम रखते हुए इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब होंगे.
सालों रहा राजगढ़ सीट पर कांग्रेस का कब्जा
इससे पहले राजगढ़ सीट को कांग्रेस की पारंपरिक सीट माना जाता था क्योंकि 1952 से कांग्रेस ने इस सीट पर 9 बार जीत दर्ज की थी. भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनसंघ ने भी इस सीट पर 6 बार जीत का परचम लहराया. दो बार इस सीट को जनता पार्टी के प्रत्याशी ने जीता जबकि एक बार एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी इस सीट को जीतकर सबको चौंका दिया था. बात करें दिग्विजय सिंह की तो उन्होंने इस सीट को 1994 में छोड़ा था. इसके बाद दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह ने इस सीट को कभी कांग्रेसी और कभी बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीता. 2009 में जब लक्ष्मण सिंह बीजेपी से यहां उतरे तो कांग्रेस के नारायण सिंह अम्बाले ने उन्हें हरा दिया था. 2014 से इस सीट से बीजेपी के रोडमल नागर ही जीतते आए हैं.