राजगढ़। मुस्लिम धर्म का अनुसरण करने वाले मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा सोमवार को ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व मनाया जा रहा है. जिसकी तैयारियां मुस्लिमों द्वारा पूर्व से कर ली गई है. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज़ अदा करने के बाद जानवरों की कुर्बानी देते है. कुर्बानी को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. जिसमें से एक हिस्सा कुर्बानी करने वाले का होता है. वहीं दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों को बांटा जाता है. जबकि कुर्बानी को तीसरे हिस्से को गरीबों के लिए निकाला जाता है. दरअसल, कुर्बानी के बारे में आलिम (इस्लाम के विद्वान) सुलेमान साहब ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया है, उन्होंने ईद उल अजहा के बारे में भी सरल शब्दों में समझाया है.
आदम और इस्माइल के जमाने से दी जा रही कुर्बानी
आलिम सुलेमान ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताते है कि "पैगंबर साहब का कथन है कि, कुर्बानी के लिए जो जानवर जिबाह किया जाता है. उसके करने वाले को इस जानवर के बदन पर जितने बाल होते है उनके बराबर नेकियां मिलती हैं. ये सिलसिला आज से शुरू नहीं हुआ है, बल्कि आदम और इस्माइल जो की अल्लाह के पैगंबर है. उनके जमाने से चली आ रही है."
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सभी को कुर्बानी देने वाला होना चाहिए
आलिम सुलेमा कुर्बानी के पैगाम के बारे में बताते हुए कहते है कि दुनिया के हर एक इंसान को कुर्बानी देने वाला होना चाहिए. पैगम्बर साहब का कथन है कि इंसानियत के लिए बेहतर इंसान वो है, जो सबके लिए फायदा पहुंचाने वाला हो. यदि हमारे पड़ोस में कोई व्यक्ति बीमार है तो हम अपने पैसे की कुर्बानी वह भी दे सकते हैं. किसी की किसी भी तरह से मदद करना ये भी एक कुर्बानी होती है. ईद उल अजहा का मकसद भी यही है कि हम कुर्बानी देने वाले बने और हमारे दिल के अंदर अल्लाह का डर पैदा हो. हम अच्छे आमाल (पुण्य के कार्य) के साथ जिंदगी बशर करने वाले बने.