जयपुर: इस मानसून सीजन के ढाई महीने के दौरान जयपुर में 1040 मिली मीटर बारिश हो चुकी है. दशकों तक जयपुर की प्यास बुझाने वाले रामगढ़ बांध में इस दौरान फिर मायूसी देखने को मिल रही है. एक तरफ झमाझम बारिश के दौर के चलते करीब-करीब सभी बांधों में पानी की आवक जारी है, दूसरी ओर जयपुर की वर्षों तक प्यास बुझाने वाला रामगढ़ बांध अब भी प्यासा है.
इतिहासकार और जयपुर के आसपास के क्षेत्र में परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण को लेकर काम कर रहे जितेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि बरसा तो खूब बरसा, लेकिन रामगढ़ बांध पानी को तरसा. जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि साल 2005 के बाद हर साल बरसात में रामगढ़ बांध एक-एक बूंद पानी के लिए मोहताज दिखता है. 1970 की बाढ़ का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि इसी रामगढ़ बांध पर तब 6 फीट की चादर चली थी.
वहीं, 1981 की वार्ड में लगातार 20 दिनों तक बांध ओवरफ्लो होकर बहता रहा था. बांध का जलस्तर इतना ऊपर था कि 1982 में एशियन गेम्स की नौकायन प्रतियोगिता भी यही आयोजित की गई थी. जितेंद्र सिंह कहते हैं कि रामगढ़ बांध पर जयपुर की पेयजल को लेकर इतनी निर्भरता है कि अगर आज बीसलपुर का आसरा नहीं होता तो जयपुर में रेलगाड़ी से पानी लाकर लोगों की प्यास बुझानी पड़ती. 1931 में इस बांध से जयपुर में पानी की सप्लाई शुरू हुई थी. तत्कालीन महाराजा मानसिंह ने तब जमवा रामगढ़ से जयपुर तक 17 इंच चौड़ी पाइपलाइन पेयजल सप्लाई के लिए भिजवाई थी. महाराजा मानसिंह का सपना था कि जयपुर की जनता कभी प्यासी नहीं रहे.
बांध की राह में 600 से ज्यादा अतिक्रमण : जितेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक हाई कोर्ट की कमेटी ने रामगढ़ बांध तक पानी लाने वाले रास्ते में 600 से ज्यादा अतिक्रमण चिह्नित किए थे. शेखावत बताते हैं कि रामगढ़ बांध तक पानी पहुंचाने वाली मुख्य बाणगंगा नदी एक दौर में साल भर बहा करती थी. इसमें आसपास की चार तहसील जमवारामगढ़, शाहपुरा, बैराठ और आमेर के कई नाले भी बाणगंगा के जरिए रामगढ़ बांध तक पानी पहुंचाने थे. ताला गांव से निकलने वाली ताला नदी भी सालों से सूखी पड़ी है. जितेंद्र सिंह के मुताबिक कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण और फार्म हाउस इस बांध की सबसे बड़ी बदहाली की तस्वीर है. अब लोगों की लापरवाही के कारण यह बांध आज बदहाली का शिकार हो चुका है. एक वक्त था जब रामगढ़ बांध से रोजाना 60 लाख गैलन पानी की सप्लाई होती थी.
बांध की मजबूती आज भी मिसाल : रामगढ़ बांध का इतिहास 125 साल से भी ज्यादा पुराना है. इतिहासकार जितेंद्र सिंह के मुताबिक बांध के निर्माण के दौरान रियासत काल में भरतपुर ने इस पर ऐतराज जताया था. भरतपुर रियासत को डर था कि अगर बांध टूटा, तो फिर इसके बहाव में जयपुर से 200 किलोमीटर की दूरी पर बसे भरतपुर शहर और आसपास की आबादी भी डूब जाएगी. ऐसे में बांध के इंजीनियर कर्नल जैकब और बांध के निर्माण की देखरेख करने वाले लालचंद मिस्त्री ने ना सिर्फ भरतपुर को इस बांध के टिकाऊ होने का भरोसा दिलाया, बल्कि ऐसा बांध तैयार किया कि सवा सौ साल बाद भी वह अपनी मजबूती के लिए मिसाल बना हुआ है. कहते हैं कि भरतपुर रियासत को जयपुर से बाकायदा लिखित में बांध की मजबूती को लेकर वादा किया गया था.
सहायक नदियां भी हो चुकी है मृतप्राय : रामगढ़ बांंध में पानी पहुंचाने वाली नदियां खुद अपने अस्तित्व को तलाश रही हैं. बांध को भरने वाली मुख्य बाण गंगा नदी में इस बरसात में पानी नहीं आया. जबकि बाण गंगा की सहायक नदी माधोवेणी और ताला नदी में पानी की आवक तो हुई, लेकिन यह पानी बांध तक नहीं पहुंच सका. इसके अलावा भोजपुरा और धलेर गांव से गुजर रहे सहायक नालों में करीब 20 साल बाद पानी आया, लेकिन इस पानी के रास्ते में भी इतनी रुकावटें आईं कि रामगढ़ बांध को इंतजार ही रह गया.
सरकार की कमेटी ने किया था दौरा : इस बार भी पानी नहीं पहुंचने के बाद रामगढ़ का जिक्र जयपुर की हर जुबान पर था. प्रशासनिक महकमा कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण मानने को तैयार तक नहीं था, तो बांध तक पानी पहुंचाने की राह में रोड़ा हर बार चर्चा का मुद्दा बनता है. ऐसे में बीते महीने जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत के निर्देश पर कलेक्टर की ओर से गठित कमेटी ने कैचमेंट एरिया का दौरा किया था, लेकिन वह भी कागजी खानापूर्ति बनकर रह गया. जल संसाधन मंत्री ने चार विभागों की जॉइंट टीम बनाकर सर्वे कराने के लिए कहा था. इसके साथ ही समिति की तरफ से रामगढ़ बांध क्षेत्र में निर्माण से संबंधित जल संसाधन विभाग से राजस्व विभाग, जेडीए सहित सभी संस्थाओं को जारी अनापत्ति प्रमाण पत्रों (NOC) की जांच करना तय किया गया था, लेकिन यह काम भी अभी आगे नहीं बढ़ सका है.
कागजों में बांध को पुनर्जीवित करने के प्रयास : पिछली सरकार के दौरान रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने के लिए एक योजना पर चर्चा की गई थी. इस योजना में ईसरदा बांध के पानी से रामगढ़ बांध को भरने की प्लानिंग की गई थी. प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले डीपीआर मंजूरी के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के पास फाइल तो गई, लेकिन वह अभी तक पेंडिंग है. इस प्रोजेक्ट के तहत बांधों को जोड़ने की योजना के तहत पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के अधिकारियों ने कानोता बांध का दौरा किया था, तो यह तस्वीर सामने आई कि यहां आस-पास के इलाके में गंदे पानी की आवक होती है और ईसरदा से आने वाला पानी साफ होगा. हालांकि, मौजूदा सरकार में इस प्रोजेक्ट पर कोई चर्चा नहीं हो रही है.
इतिहास के झरोखे में रामगढ़ बांध : रियासत कालीन रामगढ़ बांध का विस्तार 15.5 वर्ग किलोमीटर में फैला है. जिसका शिलान्यास महाराजा माधोसिंह ने 30 दिसम्बर 1897 को किया था और यह 1903 में बनकर हुआ था. तब इसके निर्माण पर 5 लाख 84 हजार 593 रुपये खर्च हुए थे. इसकी भराव क्षमता 65 फीट है. बांध का कैचमेंट एरिया 759 वर्ग किलोमीटर है. इसमें कुल पानी की भराव क्षमता 75 मिलियन क्यूबिक मीटर है. सूखने से पहले यह बांध जयपुर की करीब 30 लाख की आबादी की प्यास बुझाता था.