जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम को आदेश दिए हैं कि किसी स्ट्रीट वेंडर की ओर से पहचान पत्र की शर्त और स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट की अवहेलना व अतिक्रमण करने पर ही कार्रवाई की जाए. वहीं, अदालत ने माना कि अतिक्रमण विरोधी अभियान में वकीलों को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश पिपुल्स ग्रीन असंगठित श्रमिक यूनियन की जनहित याचिका पर दिए.
अदालत ने कहा कि यह बडे़ आश्चर्य की बात है कि एकलपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया गया कि अतिक्रमण को हटाने के लिए बार एसोसिएशन पुलिस का सहयोग करेगी. वहीं, बार एसोसिएशन की ओर से क्षेत्रवार वकीलों की सूची भी अदालत में पेश की गई. अदालत ने कहा कि एकलपीठ ने केवल स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लिया था और कोई आदेश पारित नहीं किया था. जनहित याचिका में कहा गया कि गत 12 मार्च को जस्टिस समीर जैन ने आवासीय फ्लैट में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित होने और सार्वजनिक पार्किंग पर अवैध कब्जे से जुड़ी खबर पर स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लिया था.
इसके साथ ही एकलपीठ ने अधिकारियों और वकीलों के साथ सुनवाई की थी, लेकिन नगर निगम, ग्रेटर ने स्ट्रीट वेंडर्स पर कार्रवाई कर दी, जबकि उनके पास नगर निगम की ओर से दिए गए आई कार्ड भी थे. पीआईएल में कहा गया कि स्ट्रीट वेंडर्स के संबंध में प्रसंज्ञान नहीं लिया गया था. इसके बावजूद भी उन पर कार्रवाई की गई. वहीं, स्वायत्त शासन विभाग की ओर से एएजी ने कहा कि वे सुनिश्चित करेंगे कि एकलपीठ के आदेश का दुरुपयोग नहीं किया जाए. इसके अलावा उन्हें जवाब पेश करने के समय दिया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए अतिक्रमण विरोधी अभियान में वकीलों को शामिल करने से इनकार कर दिया है.