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मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी कर रहे हैं पॉक्सो पीड़िताओं की पहचान उजागर, इन्हें संवेदनशील बनने की जरूरत-हाईकोर्ट - Rajasthan High Court - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने सजा स्थगित करने के एक प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी पॉक्सो पीड़िताओं की पहचान उजागर कर देते हैं.

POCSO VICTIMS,  REVEALING IDENTITY POCSO VICTIMS
राजस्थान हाईकोर्ट.
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 10, 2024, 8:20 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अपराधों से जुडे़ कई मामलों में पुलिस और मजिस्ट्रेट पीड़िताओं का नाम सार्वजनिक कर देते हैं, जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध भी है. अदालत का मानना है कि पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को इसके लिए संवेदनशील बनने की जरूरत है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में उचित आदेश जारी करने के लिए प्रकरण को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने के लिए आदेश की कॉपी रजिस्ट्रार जनरल को भेजी है.

वहीं, अदालत ने अतिरिक्त मुख्य गृह सचिव और डीजीपी को कहा है कि पुलिस अनुसंधान के दौरान ऐसी पीड़िताओं की पहचान गुप्त रखने के लिए पुलिस अकादमी के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाएं. जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश रोहित बैरवा के सजा स्थगित करने के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए दिए. अदालत ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि ऐसे मामलों में पीड़ितों की पहचान गुप्त करने के लिए तय कानूनी प्रावधानों की पालना नहीं की जा रही है. इस मामले में भी पुलिस और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयानों के दौरान पीड़िता का नाम गुप्त नहीं रखा गया.

पढ़ेंः नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की कोशिश, एक को 20 साल तो दूसरे को आजीवन कारावास की सजा - Bharatpur POCSO Court

जांच अधिकारी के साथ-साथ न्यायिक मजिस्ट्रेट भी इस संबंध में कानून के बाध्यकारी प्रावधानों को लागू करने में असफल हुए हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 228-क के तहत ऐसे अपराध के लिए दो साल तक की सजा का प्रावधान भी है. मामले के अनुसार याचिकाकर्ता को पॉक्सो मामले में डीएनए रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत ने सजा सुनाई थी. जिसे याचिकाकर्ता की ओर से कह कहते हुए चुनौती दी गई कि पीड़िता ने अपने प्रति-परीक्षण में दुष्कर्म से इनकार किया था. इसके अलावा उसके परिजनों के बयान भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं थे, इसलिए हाईकोर्ट में अपील के निस्तारण तक उसकी सजा को स्थगित की जाए. सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि संबंधित जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट ने दस्तावेजों में कई स्थान पर पीड़िता का नाम सार्वजनिक कर रखा है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अपराधों से जुडे़ कई मामलों में पुलिस और मजिस्ट्रेट पीड़िताओं का नाम सार्वजनिक कर देते हैं, जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध भी है. अदालत का मानना है कि पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को इसके लिए संवेदनशील बनने की जरूरत है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में उचित आदेश जारी करने के लिए प्रकरण को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने के लिए आदेश की कॉपी रजिस्ट्रार जनरल को भेजी है.

वहीं, अदालत ने अतिरिक्त मुख्य गृह सचिव और डीजीपी को कहा है कि पुलिस अनुसंधान के दौरान ऐसी पीड़िताओं की पहचान गुप्त रखने के लिए पुलिस अकादमी के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाएं. जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश रोहित बैरवा के सजा स्थगित करने के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए दिए. अदालत ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि ऐसे मामलों में पीड़ितों की पहचान गुप्त करने के लिए तय कानूनी प्रावधानों की पालना नहीं की जा रही है. इस मामले में भी पुलिस और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयानों के दौरान पीड़िता का नाम गुप्त नहीं रखा गया.

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जांच अधिकारी के साथ-साथ न्यायिक मजिस्ट्रेट भी इस संबंध में कानून के बाध्यकारी प्रावधानों को लागू करने में असफल हुए हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 228-क के तहत ऐसे अपराध के लिए दो साल तक की सजा का प्रावधान भी है. मामले के अनुसार याचिकाकर्ता को पॉक्सो मामले में डीएनए रिपोर्ट के आधार पर निचली अदालत ने सजा सुनाई थी. जिसे याचिकाकर्ता की ओर से कह कहते हुए चुनौती दी गई कि पीड़िता ने अपने प्रति-परीक्षण में दुष्कर्म से इनकार किया था. इसके अलावा उसके परिजनों के बयान भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं थे, इसलिए हाईकोर्ट में अपील के निस्तारण तक उसकी सजा को स्थगित की जाए. सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि संबंधित जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट ने दस्तावेजों में कई स्थान पर पीड़िता का नाम सार्वजनिक कर रखा है.

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