जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ ने एक याचिका पर महत्वपूर्ण आदेश में बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, "सुलभ न्याय के लिए बनाई गई विधिक प्रक्रियाएं सारभूत न्याय प्राप्ति के मार्ग में बाधा नहीं हो सकती हैं." कोर्ट ने याचिकाकर्ता प्रियंका पाठक को सूची में चयनितों द्वारा ज्वाइन नहीं करने से रिक्त रहे पद पर नियुक्ति देने के निर्देश दिए हैं.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुशील विश्नोई ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के लिए आवेदन किया था. आरपीएससी की ओर से 16 पदों के लिए विज्ञप्ति थी. ऐसे में याचिकाकर्ता का प्रतीक्षा सूची में एक नम्बर पर नाम था. इस बीच याचिकाकर्ता को पता चला कि 16 चयनितों मे से एक अलका जैन ने ज्वाइनिंग नहीं की है. ऐसे में याचिकाकर्ता ने अपना नाम प्रतीक्षा सूची में एक नम्बर पर होने पर दावा किया था.
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शिक्षा विभाग की ओर से कहा गया कि इस मामले में प्रतीक्षा सूची के छह माह का नियम है. ऐसे में आरपीएससी द्वारा नाम नहीं भेजे जाने से उनको नियुक्ति नहीं दी जा सकती है. इसके बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. करीब तीन साल तक इस मामले में सुनवाई हुई. सरकार व आरपीएससी की ओर से एडवोकेट विशाल जांगिड़, केएस राजपुरोहित, हेमंत चौधरी ने पक्ष रखा. निदेशालय द्वारा प्रतीक्षा सूची में से नाम मांगे जाने के बावजूद आरपीएससी ने डीओपी सर्कुलर के आधार पर नाम ही नहीं भेजा था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए निर्देश दिए है कि यदि वरिष्ठ अध्यापक अंग्रेजी में नॉन ज्वाइनर्स के पद पर प्रतीक्षा सूची में चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जा सकती है.