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बिना मान्यता MBBS कराने वाले सिंघानिया विश्वविद्यालय के प्रकरण में बहस पूरी, फैसला सुरक्षित - Rajasthan High Court

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 13, 2024, 9:35 PM IST

बिना मान्यता एमबीबीएस कराने वाले सिंघानिया विश्वविद्यालय मामले में हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित कर लिया है.

राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jaipur (File Photo))

जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने नेशनल मेडिकल काउंसिल से मान्यता लिए बिना ही एमबीबीएस कराने वाले सिंघानिया विश्वविद्यालय से जुड़े मामले में सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश सिंघानिया यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस करने वाली रंजना जांगड़ा व अन्य की याचिकाओं पर दिए. अदालती आदेश के पालन में एसीएस उच्च शिक्षा रिकॉर्ड सहित अदालत में पेश हुए, जिस पर अदालत ने रिकार्ड रजिस्ट्रार न्यायिक के पास भेजते हुए इसका परीक्षण करने की मंशा जताई.

सुनवाई के दौरान आरएमसी की ओर से कहा कि उन्होंने गलती से याचिकाकर्ताओं से फीस ले ली थी और उन्हें इंटरव्यू के लिए बुला लिया था. इसके लिए आरएमसी ने अदालत में खेद प्रकट कर कहा कि एनएमसी एक्ट के तहत मान्यता लिए बिना एमबीबीएस कोर्स को मंजूरी नहीं दे सकते. यूनिवर्सिटी की दलील थी कि ऐसी कई अन्य यूनिवर्सिटी भी हैं जो बिना मान्यता और कानूनी प्रावधानों के बिना ही कोर्स चला रही हैं.

पढ़ें. NMC से मान्यता लिए बिना MBBS कराने वाली सिंघानिया विवि पर कार्रवाई क्यों नहीं की: हाईकोर्ट - Rajasthan High Court

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सुनील कुमार सिंगोदिया का कहना था कि उन्होंने नीट के जरिए ही यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था और वे मेडिकल कोर्स करने के भी पात्र थे. उनकी ओर से प्रवेश लेने में कोई दुर्भावना व अनियमितताएं नहीं की गई है. 18-20 साल के छात्र-छात्राओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्हें यूनिवर्सिटियों से जुड़े तकनीकी व कानूनी प्रावधानों की भी जानकारी हो. ऐसे में उनकी एमबीबीएस की डिग्री को वैध करार देते हुए आरएमसी में उनका रजिस्ट्रेशन करवाया जाए. अदालत ने फैसला बाद में सुनाया जाना तय किया है.

जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने नेशनल मेडिकल काउंसिल से मान्यता लिए बिना ही एमबीबीएस कराने वाले सिंघानिया विश्वविद्यालय से जुड़े मामले में सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश सिंघानिया यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस करने वाली रंजना जांगड़ा व अन्य की याचिकाओं पर दिए. अदालती आदेश के पालन में एसीएस उच्च शिक्षा रिकॉर्ड सहित अदालत में पेश हुए, जिस पर अदालत ने रिकार्ड रजिस्ट्रार न्यायिक के पास भेजते हुए इसका परीक्षण करने की मंशा जताई.

सुनवाई के दौरान आरएमसी की ओर से कहा कि उन्होंने गलती से याचिकाकर्ताओं से फीस ले ली थी और उन्हें इंटरव्यू के लिए बुला लिया था. इसके लिए आरएमसी ने अदालत में खेद प्रकट कर कहा कि एनएमसी एक्ट के तहत मान्यता लिए बिना एमबीबीएस कोर्स को मंजूरी नहीं दे सकते. यूनिवर्सिटी की दलील थी कि ऐसी कई अन्य यूनिवर्सिटी भी हैं जो बिना मान्यता और कानूनी प्रावधानों के बिना ही कोर्स चला रही हैं.

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याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सुनील कुमार सिंगोदिया का कहना था कि उन्होंने नीट के जरिए ही यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया था और वे मेडिकल कोर्स करने के भी पात्र थे. उनकी ओर से प्रवेश लेने में कोई दुर्भावना व अनियमितताएं नहीं की गई है. 18-20 साल के छात्र-छात्राओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्हें यूनिवर्सिटियों से जुड़े तकनीकी व कानूनी प्रावधानों की भी जानकारी हो. ऐसे में उनकी एमबीबीएस की डिग्री को वैध करार देते हुए आरएमसी में उनका रजिस्ट्रेशन करवाया जाए. अदालत ने फैसला बाद में सुनाया जाना तय किया है.

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