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राष्ट्रीय मरु अभयारण्य के संरक्षण मामले में हाईकोर्ट ने लगाया स्टे, राज्य सरकार को नोटिस जारी - Rajasthan High Court

राजस्थान हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मरु अभयारण्य के संरक्षण को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर राज्य सरकार, जैसलमेर कलेक्टर एवं डीएनपी डीएफओ से जवाब तलब किया. इसके बाद कोर्ट ने स्टे का आदेश जारी कर दिया है.

राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jodhpur (File Photo))
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 24, 2024, 1:06 PM IST

Updated : Sep 24, 2024, 1:32 PM IST

जैसलमेर : राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने 11 अगस्त 2023 को राष्ट्रीय मरु अभयारण्य के संरक्षण के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर राज्य सरकार, जैसलमेर कलेक्टर और डीएनपी डीएफओ से जवाब तलब किया है. इसके बाद कोर्ट ने स्टे का आदेश जारी कर दिया है. याचिकाकर्ता हेमसिंह राठौड़ की ओर से अधिवक्ता मानस रणछोड़ खत्री ने पैरवी करते हुए राष्ट्रीय मरु अभयारण्य जैसलमेर के संरक्षण के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 एवं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने की याचिका पेश की गई थी. न्यायालय ने स्टे का आदेश देने के साथ ही सरकार को पाबंद किया है.

याचिका में न्यायालय के समक्ष यह आग्रह किया गया है कि राष्ट्रीय मरु अभयारण्य जैसलमेर भारत का एकमात्र उद्यान एवं अभयारण्य है, जिसमें मरुस्थलीय वन्य जीव, प्राणी व प्रजातियां पाई जाती हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार विभिन्न प्रकार के कीड़े, उभयचर,सरीसृप, पक्षियों एवं जानवरों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, जो अब विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी हैं. इनमें राज्य पक्षी गोडावण, गहरे पीले रंग का गरुड़, छाबेदार गरुड़, बाज शामिल हैं. अधिवक्ता ने बहस करते हुए यह बताया कि केंद्र सरकार की ओर से वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सूची संख्या 1 में मरुस्थलीय वन्य जीव की कई प्रजातियों को क्रिटिकल एंडेंजर्ड स्पीसीज़ (गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियां) की श्रेणी में शामिल किया गया है. इसमें राज्य पक्षी गोडावण भी शामिल है. इसे संरक्षित किए जाने के लिए तुरंत प्रभाव से आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में यह प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी. मरुस्थलीय वन्यजीव पर्यावरण को ऐसा नुकसान पहुंचेगा, जिसकी पूर्ति किया जाना संभव नहीं होगा.

याचिकाकर्ता हेमसिंह राठौड़ (ETV Bharat Jaisalmer)

पढे़ं. सरिस्का टाइगर रिजर्व का दायरा बढ़ाने की कवायद, बाघों के बीच खत्म होगी टैरिटरी की जंग, कई बार हो चुका संघर्ष - Sariska Tiger Reserve

1980 में अधिसूचना जारी डीएनपी किया घोषित : राष्ट्रीय मरु अभ्यारण को राजपत्र में प्रकाशित किए जाने की अधिसूचना 6 अगस्त 1980 में राज्य सरकार की ओर से प्रकाशित की गई. इसमें जैसलमेर के 34 गांव जिनका क्षेत्रफल 1 हजार 946 वर्ग किलोमीटर और बाड़मेर के 39 राजस्व गांवों को मिलाकर कुल क्षेत्रफल 3 हजार 162 वर्ग किलोमीटर अधिसूचित है. अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद 19-5-1981 को लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को राष्ट्रीय मरु उद्यान घोषित करने की अधिसूचना जारी की गई. इसका प्रमुख कारण राज्य पक्षी गोडावण का संरक्षण है, लेकिन सरकार राज्य पक्षी गोडावण एवं अन्य जीव प्रजातियों का संरक्षण करने में विफल रही है. इस स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे भारत में अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान के पास बफर जोन यानी इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है.

इंस्टीट्यूट ने 157 किमी का भेजा प्रस्ताव : वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने गत 10 सितंबर 2018 को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे वन्य जीवों का सर्वे कर प्रजनन क्षेत्र, उड़ान क्षेत्र व प्रवास एवं भौगोलिक दशा को ध्यान में रखते हुए 157 किलोमीटर का इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने का प्रस्ताव भेजा है. प्रस्तावित इको सेंसेटिव जोन का क्षेत्र सम, सलखा, कुछड़ी, हाबुर, मोकला, नाचना, लोहारकी से रामदेवरा की ओर फैला हुआ है, जिसमें पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज शामिल नहीं है. इस प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए सरकार धनाढ्य, राजनीतिक एवं वाणिज्य रूप से प्रबल और असामाजिक पर्यावरण विरोधी तत्वों के दबाव में आकर कार्रवाई नहीं की है. वहीं, वन विभाग के शासन सचिव की ओर से राज्य सरकार के आला अधिकारियों की मिलीभगत से पुनः विचार कर नया प्रस्ताव पारित करने के आदेश प्रसारित किए. इसके बाद अभयारण्य की वर्तमान सीमा से लगते हुए 1 किलोमीटर चौड़े इको सेंसेटिव जोन का नया प्रस्ताव तैयार किया गया है, जो वन्य जीव प्रजातियों के संरक्षण के लिए किसी भी रूप में सहायता प्रदान नहीं करता है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी एमके रणजीतसिंह की ओर से प्रस्तुत याचिका पर कमेटी का गठन करते हुए रिपोर्ट न्यायालय पेश करने का आदेश पारित किया है.

जैसलमेर : राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने 11 अगस्त 2023 को राष्ट्रीय मरु अभयारण्य के संरक्षण के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर राज्य सरकार, जैसलमेर कलेक्टर और डीएनपी डीएफओ से जवाब तलब किया है. इसके बाद कोर्ट ने स्टे का आदेश जारी कर दिया है. याचिकाकर्ता हेमसिंह राठौड़ की ओर से अधिवक्ता मानस रणछोड़ खत्री ने पैरवी करते हुए राष्ट्रीय मरु अभयारण्य जैसलमेर के संरक्षण के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 एवं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने की याचिका पेश की गई थी. न्यायालय ने स्टे का आदेश देने के साथ ही सरकार को पाबंद किया है.

याचिका में न्यायालय के समक्ष यह आग्रह किया गया है कि राष्ट्रीय मरु अभयारण्य जैसलमेर भारत का एकमात्र उद्यान एवं अभयारण्य है, जिसमें मरुस्थलीय वन्य जीव, प्राणी व प्रजातियां पाई जाती हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार विभिन्न प्रकार के कीड़े, उभयचर,सरीसृप, पक्षियों एवं जानवरों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, जो अब विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी हैं. इनमें राज्य पक्षी गोडावण, गहरे पीले रंग का गरुड़, छाबेदार गरुड़, बाज शामिल हैं. अधिवक्ता ने बहस करते हुए यह बताया कि केंद्र सरकार की ओर से वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सूची संख्या 1 में मरुस्थलीय वन्य जीव की कई प्रजातियों को क्रिटिकल एंडेंजर्ड स्पीसीज़ (गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियां) की श्रेणी में शामिल किया गया है. इसमें राज्य पक्षी गोडावण भी शामिल है. इसे संरक्षित किए जाने के लिए तुरंत प्रभाव से आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में यह प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी. मरुस्थलीय वन्यजीव पर्यावरण को ऐसा नुकसान पहुंचेगा, जिसकी पूर्ति किया जाना संभव नहीं होगा.

याचिकाकर्ता हेमसिंह राठौड़ (ETV Bharat Jaisalmer)

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1980 में अधिसूचना जारी डीएनपी किया घोषित : राष्ट्रीय मरु अभ्यारण को राजपत्र में प्रकाशित किए जाने की अधिसूचना 6 अगस्त 1980 में राज्य सरकार की ओर से प्रकाशित की गई. इसमें जैसलमेर के 34 गांव जिनका क्षेत्रफल 1 हजार 946 वर्ग किलोमीटर और बाड़मेर के 39 राजस्व गांवों को मिलाकर कुल क्षेत्रफल 3 हजार 162 वर्ग किलोमीटर अधिसूचित है. अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद 19-5-1981 को लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को राष्ट्रीय मरु उद्यान घोषित करने की अधिसूचना जारी की गई. इसका प्रमुख कारण राज्य पक्षी गोडावण का संरक्षण है, लेकिन सरकार राज्य पक्षी गोडावण एवं अन्य जीव प्रजातियों का संरक्षण करने में विफल रही है. इस स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे भारत में अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान के पास बफर जोन यानी इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है.

इंस्टीट्यूट ने 157 किमी का भेजा प्रस्ताव : वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने गत 10 सितंबर 2018 को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे वन्य जीवों का सर्वे कर प्रजनन क्षेत्र, उड़ान क्षेत्र व प्रवास एवं भौगोलिक दशा को ध्यान में रखते हुए 157 किलोमीटर का इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने का प्रस्ताव भेजा है. प्रस्तावित इको सेंसेटिव जोन का क्षेत्र सम, सलखा, कुछड़ी, हाबुर, मोकला, नाचना, लोहारकी से रामदेवरा की ओर फैला हुआ है, जिसमें पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज शामिल नहीं है. इस प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए सरकार धनाढ्य, राजनीतिक एवं वाणिज्य रूप से प्रबल और असामाजिक पर्यावरण विरोधी तत्वों के दबाव में आकर कार्रवाई नहीं की है. वहीं, वन विभाग के शासन सचिव की ओर से राज्य सरकार के आला अधिकारियों की मिलीभगत से पुनः विचार कर नया प्रस्ताव पारित करने के आदेश प्रसारित किए. इसके बाद अभयारण्य की वर्तमान सीमा से लगते हुए 1 किलोमीटर चौड़े इको सेंसेटिव जोन का नया प्रस्ताव तैयार किया गया है, जो वन्य जीव प्रजातियों के संरक्षण के लिए किसी भी रूप में सहायता प्रदान नहीं करता है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी एमके रणजीतसिंह की ओर से प्रस्तुत याचिका पर कमेटी का गठन करते हुए रिपोर्ट न्यायालय पेश करने का आदेश पारित किया है.

Last Updated : Sep 24, 2024, 1:32 PM IST
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