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आरपीएस को महिला के साथ स्वीमिंग पूल का अश्लील वीडियो वायरल होने के आधार पर किया था बर्खास्त, हाईकोर्ट ने बहाली के दिए आदेश

बर्खास्त चल रहे आरपीएस हीरालाल सैनी को राजस्थान हाइकोर्ट से राहत मिली है. कोर्ट ने सैनी को बहाल करने के आदेश दिए हैं.

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 2 hours ago

Rajasthan High Court Order
राजस्थान हाइकोर्ट (Photo ETV Bharat Jaipur)

जयपुर: राज्य सरकार ने महिला कांस्टेबल के साथ स्वीमिंग पूल का अश्लील वीडियो जारी होने के बाद आरपीएस हीरालाल सैनी को एक अक्टूबर, 2021 को बर्खास्त कर दिया था. राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार के इस आदेश को रद्द कर दिया है.इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को तीन माह में वेतन और समस्त परिलाभ के साथ पुन: समान पद पर सेवा में लेने को कहा है. अदालत ने राज्य सरकार को छूट दी है कि वह याचिकाकर्ता को जारी की गई चार्जशीट के आधार पर जांच कर सकता है.

जस्टिस गणेश राम मीणा की एकलपीठ ने यह आदेश हीरालाल सैनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी कर्मचारी के खिलाफ तभी कार्रवाई की जा सकती है, जब कर्मचारी को सुनवाई का मौका मिले और उस पर लगाए गए आरोप साबित हो जाए. कर्मचारी के खिलाफ नियमित जांच से यह कहते हुए छूट नहीं दी जा सकती कि उसके कृत्य से समाज और विभाग पर प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा. इस दलील को स्वीकार कर लिया जाए तो एसीबी केस में रंगे हाथों गिरफ्तार होने वाले कर्मचारी विभाग की छवि खराब करते हैं, जबकि उन मामलों में सरकार आपराधिक प्रकरण के निपटारे का इंतजार करती है. नियमित जांच से छूट देते हुए कर्मचारी को बर्खास्त करने का प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होता है.

पढ़ें: निलंबित डीएसपी हीरालाल सैनी और महिला कांस्टेबल बर्खास्त, राज्यपाल की मंजूरी के बाद डीओपी ने जारी किए आदेश

याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर ने अदालत को बताया कि वर्ष 2021 में याचिकाकर्ता और एक महिला पुलिसकर्मी का स्वीमिंग पूल का अश्लील वीडियो वायरल हुआ था. इसमें महिला का छह साल का बेटा भी दिखाई दे रहा था.इसके बाद राज्य सरकार ने एक अक्टूबर, 2021 को याचिकाकर्ता को आरोप पत्र दिया और बिना जांच व सुनवाई का मौका दिए इसी दिन उसे बर्खास्त कर दिया, जबकि बिना जांच बर्खास्त करने का प्रावधान उन मामलों में ही लागू होता है, जिनमें जांच करना ही संभव नहीं हो. यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति से जुड़ा था और उसमें जांच की जा सकती थी, इसलिए उसे बर्खास्त करने के आदेश को रद्द किया जाए.

इस प्रकरण में राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को महिला पुलिसकर्मी और उसके छह साल के बेटे के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा गया था.घटना न केवल नैतिकता के खिलाफ थी, बल्कि पुलिस की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही थी. याचिकाकर्ता पर लगे आरोप इतने गंभीर थे कि उसे बिना विभागीय जांच किए बर्खास्त किया जाना जरूरी था.दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया.

जयपुर: राज्य सरकार ने महिला कांस्टेबल के साथ स्वीमिंग पूल का अश्लील वीडियो जारी होने के बाद आरपीएस हीरालाल सैनी को एक अक्टूबर, 2021 को बर्खास्त कर दिया था. राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार के इस आदेश को रद्द कर दिया है.इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को तीन माह में वेतन और समस्त परिलाभ के साथ पुन: समान पद पर सेवा में लेने को कहा है. अदालत ने राज्य सरकार को छूट दी है कि वह याचिकाकर्ता को जारी की गई चार्जशीट के आधार पर जांच कर सकता है.

जस्टिस गणेश राम मीणा की एकलपीठ ने यह आदेश हीरालाल सैनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी कर्मचारी के खिलाफ तभी कार्रवाई की जा सकती है, जब कर्मचारी को सुनवाई का मौका मिले और उस पर लगाए गए आरोप साबित हो जाए. कर्मचारी के खिलाफ नियमित जांच से यह कहते हुए छूट नहीं दी जा सकती कि उसके कृत्य से समाज और विभाग पर प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा. इस दलील को स्वीकार कर लिया जाए तो एसीबी केस में रंगे हाथों गिरफ्तार होने वाले कर्मचारी विभाग की छवि खराब करते हैं, जबकि उन मामलों में सरकार आपराधिक प्रकरण के निपटारे का इंतजार करती है. नियमित जांच से छूट देते हुए कर्मचारी को बर्खास्त करने का प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होता है.

पढ़ें: निलंबित डीएसपी हीरालाल सैनी और महिला कांस्टेबल बर्खास्त, राज्यपाल की मंजूरी के बाद डीओपी ने जारी किए आदेश

याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर ने अदालत को बताया कि वर्ष 2021 में याचिकाकर्ता और एक महिला पुलिसकर्मी का स्वीमिंग पूल का अश्लील वीडियो वायरल हुआ था. इसमें महिला का छह साल का बेटा भी दिखाई दे रहा था.इसके बाद राज्य सरकार ने एक अक्टूबर, 2021 को याचिकाकर्ता को आरोप पत्र दिया और बिना जांच व सुनवाई का मौका दिए इसी दिन उसे बर्खास्त कर दिया, जबकि बिना जांच बर्खास्त करने का प्रावधान उन मामलों में ही लागू होता है, जिनमें जांच करना ही संभव नहीं हो. यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति से जुड़ा था और उसमें जांच की जा सकती थी, इसलिए उसे बर्खास्त करने के आदेश को रद्द किया जाए.

इस प्रकरण में राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को महिला पुलिसकर्मी और उसके छह साल के बेटे के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा गया था.घटना न केवल नैतिकता के खिलाफ थी, बल्कि पुलिस की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही थी. याचिकाकर्ता पर लगे आरोप इतने गंभीर थे कि उसे बिना विभागीय जांच किए बर्खास्त किया जाना जरूरी था.दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया.

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