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हाईकोर्ट ने पूछा, अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में परिवाद पेश करने के बजाए एफआईआर दर्ज क्यों की? जारी किए नोटिस - Rajasthan High Court

राजस्थान हाईकोर्ट ने अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में एसीएस गृह समेत अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने पूछा है कि परिवाद पेश होने का प्रावधान होने के बाद भी एफआईआर दर्ज क्यों की गई.

HIGH COURT ISSUED NOTICE,  NOTICE TO ACS HOME
राजस्थान हाईकोर्ट. (ETV Bharat jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 24, 2024, 9:40 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में एसीएस गृह, एसीएस चिकित्सा शिक्षा डॉ. रश्मि गुप्ता, समुचित प्राधिकारी चिकित्सा शिक्षा और गोपाल ढाका एसीपी गांधीनगर सहित अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त श्रीमन लाल मीणा को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने इनसे पूछा है कि अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में अदालत में परिवाद पेश होने का प्रावधान होने के बावजूद एफआईआर दर्ज क्यों की गई?. जस्टिस नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश डॉ. संदीप गुप्ता की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता हेमंत नाहटा और रिपुदमन सिंह ने कहा कि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में न तो एफआईआर दर्ज हो सकती है और न ही पुलिस अपने स्तर पर गिरफ्तारी कर सकती है. यहां तक की पुलिस को आरोप पत्र भी पेश करने का अधिकार नहीं है. प्रकरण में सीधे अदालत में परिवाद पेश होने का प्रावधान होने के कारण इस मामले में निचली अदालत में परिवाद पेश किया जाना चाहिए था, लेकिन मेडिकल शिक्षा विभाग के साथ षडयंत्र रचकर पुलिस ने आईपीसी की धाराओं में मामला दर्ज कर गिरफ्तारियां की हैं. याचिका में यह भी कहा गया कि प्रत्यारोपण कराने वाले बांग्लादेशी नागरिकों ने समस्त दस्तावेज अपने देश में बनाकर भारत के ढाका स्थित उच्चायोग से मेडिकल वीसा लिया था.

पढ़ेंः अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में आरोपी की जमानत अर्जी खारिज - Special court for ACB

वहां की सरकार और उच्चायोग ने इसके लिए एनओसी भी जारी की थी. इसके अलावा तीन साल में किए गए हर किडनी प्रत्यारोपण की सूचना फोर्टिंस अस्पताल ने निरंतर सरकार को दी थी. इसी मामले में गुरुग्राम में पहले से ही एफआईआर दर्ज है. एफआईआर लिखाने वाले डॉ. रश्मि गुप्ता ने टोहो एक्ट के तहत स्वयं परिवाद दर्ज नहीं कर आईपीसी की धाराओं में एफआईआर कराई, जबकि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में कह चुका है कि ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा लागू नहीं होती. वहीं विदेशी नागरिकों के मामले में एसएमएस अस्पताल की एनओसी का कोई महत्व नहीं है. याचिका में गुहार की गई है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया जाए और उसे हिरासत में रखने की अवधि का प्रतिदिन दस लाख रुपए के हिसाब से हर्जाना दिलाया जाए. जिसकी वसूली उसे झूठा फंसाने वाले पुलिस अधिकारी और डॉ रश्मि गुप्ता के खाते से की जाए. इस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में एसीएस गृह, एसीएस चिकित्सा शिक्षा डॉ. रश्मि गुप्ता, समुचित प्राधिकारी चिकित्सा शिक्षा और गोपाल ढाका एसीपी गांधीनगर सहित अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त श्रीमन लाल मीणा को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने इनसे पूछा है कि अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में अदालत में परिवाद पेश होने का प्रावधान होने के बावजूद एफआईआर दर्ज क्यों की गई?. जस्टिस नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश डॉ. संदीप गुप्ता की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता हेमंत नाहटा और रिपुदमन सिंह ने कहा कि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में न तो एफआईआर दर्ज हो सकती है और न ही पुलिस अपने स्तर पर गिरफ्तारी कर सकती है. यहां तक की पुलिस को आरोप पत्र भी पेश करने का अधिकार नहीं है. प्रकरण में सीधे अदालत में परिवाद पेश होने का प्रावधान होने के कारण इस मामले में निचली अदालत में परिवाद पेश किया जाना चाहिए था, लेकिन मेडिकल शिक्षा विभाग के साथ षडयंत्र रचकर पुलिस ने आईपीसी की धाराओं में मामला दर्ज कर गिरफ्तारियां की हैं. याचिका में यह भी कहा गया कि प्रत्यारोपण कराने वाले बांग्लादेशी नागरिकों ने समस्त दस्तावेज अपने देश में बनाकर भारत के ढाका स्थित उच्चायोग से मेडिकल वीसा लिया था.

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वहां की सरकार और उच्चायोग ने इसके लिए एनओसी भी जारी की थी. इसके अलावा तीन साल में किए गए हर किडनी प्रत्यारोपण की सूचना फोर्टिंस अस्पताल ने निरंतर सरकार को दी थी. इसी मामले में गुरुग्राम में पहले से ही एफआईआर दर्ज है. एफआईआर लिखाने वाले डॉ. रश्मि गुप्ता ने टोहो एक्ट के तहत स्वयं परिवाद दर्ज नहीं कर आईपीसी की धाराओं में एफआईआर कराई, जबकि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में कह चुका है कि ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा लागू नहीं होती. वहीं विदेशी नागरिकों के मामले में एसएमएस अस्पताल की एनओसी का कोई महत्व नहीं है. याचिका में गुहार की गई है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया जाए और उसे हिरासत में रखने की अवधि का प्रतिदिन दस लाख रुपए के हिसाब से हर्जाना दिलाया जाए. जिसकी वसूली उसे झूठा फंसाने वाले पुलिस अधिकारी और डॉ रश्मि गुप्ता के खाते से की जाए. इस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

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