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पॉक्सो कोर्ट के जज दें स्पष्टीकरण, जमानत पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के बयानों पर क्यों नहीं किया विचार:कोर्ट - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट के जमानत पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के बयानों पर विचार नहीं करने पर नाराजगी जताई है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 6, 2024, 8:51 PM IST

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ के पॉक्सो कोर्ट क्रम-1 के पीठासीन अधिकारी से पूछा है कि जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के 164 के बयानों में आरोपी खिलाफ बयान नहीं के तथ्य पर विचार क्यों नहीं किया गया. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि निचली अदालत न्यायिक व्यवस्था की नींव है. वहीं निचली अदालत की ओर से इस तरह जमानत मामलों की सुनवाई करना देश में सर्वोपरि पवित्र न्यायिक कार्य की विफलता को दर्शाता है. अदालत ने कहा कि निचली अदालतों की ओर से जमानत प्रार्थना पत्रों पर ऐसा रुख रखने से हाईकोर्ट में मुकदमों का भार बढ़ रहा है. एनसीआरबी के दिसंबर, 2023 के आंकड़ों के अनुसार देश में 5.73 लाख कैदी जेल में बंद हैं और इनमें से 4.34 लाख विचाराधीन कैदी हैं.

पढ़ें: पॉक्सो का आरोपी डॉक्टर की लापरवाही के चलते बरी, विभागीय जांच के आदेश

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा हो, वहां अदालतों को अधिक सजग रहना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में कह चुका है कि निचली अदालतों को उचित मामलों में जमानत देने में झिझक नहीं रखनी चाहिए. आपराधिक मामलों में पीड़ित के 164 के बयान महत्वपूर्ण होते हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. अदालत ने कहा कि यह समझ के परे है कि इस केस में कोर्ट ने पीड़िता के 164 के बयानों की अनदेखी कैसे कर दी, जबकि वह मुख्य गवाह होती है.

पढ़ें: नाबालिग से दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त को सुनाई 20 साल की सजा - Jaipur POCSO court

जमानत याचिका में अधिवक्ता लखन सिंह जादौन ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ झालावाड़ सदर थाने में अपहरण का मामला दर्ज हुआ था. वहीं पुलिस ने उसे फंसाते हुए दुष्कर्म और पॉक्सो कानून में आरोप पत्र पेश कर दिया. जबकि पीड़िता की ओर से गत 28 मई को दिए अपने 164 के बयान में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाना तो दूर, उसका नाम तक नहीं लिया.

पढ़ें: नाबालिग का अपहरण करके दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त को 20 साल काठोर कारवास की सजा - Case of rape and kidnapping in Deeg

वहीं इस तथ्य की अनदेखी करते हुए पॉक्सो कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी को गत 30 अगस्त को खारिज कर दिया. याचिका में कहा गया कि वह 1 जून, 2024 से जेल में बंद है. ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जाए. वहीं राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया, लेकिन पीड़िता के बयानों को लेकर वह अदालत को संतुष्ठ नहीं कर सके. इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश देते हुए संबंधित कोर्ट के जज से इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण देने को कहा है.

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ के पॉक्सो कोर्ट क्रम-1 के पीठासीन अधिकारी से पूछा है कि जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के 164 के बयानों में आरोपी खिलाफ बयान नहीं के तथ्य पर विचार क्यों नहीं किया गया. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि निचली अदालत न्यायिक व्यवस्था की नींव है. वहीं निचली अदालत की ओर से इस तरह जमानत मामलों की सुनवाई करना देश में सर्वोपरि पवित्र न्यायिक कार्य की विफलता को दर्शाता है. अदालत ने कहा कि निचली अदालतों की ओर से जमानत प्रार्थना पत्रों पर ऐसा रुख रखने से हाईकोर्ट में मुकदमों का भार बढ़ रहा है. एनसीआरबी के दिसंबर, 2023 के आंकड़ों के अनुसार देश में 5.73 लाख कैदी जेल में बंद हैं और इनमें से 4.34 लाख विचाराधीन कैदी हैं.

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कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा हो, वहां अदालतों को अधिक सजग रहना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में कह चुका है कि निचली अदालतों को उचित मामलों में जमानत देने में झिझक नहीं रखनी चाहिए. आपराधिक मामलों में पीड़ित के 164 के बयान महत्वपूर्ण होते हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. अदालत ने कहा कि यह समझ के परे है कि इस केस में कोर्ट ने पीड़िता के 164 के बयानों की अनदेखी कैसे कर दी, जबकि वह मुख्य गवाह होती है.

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जमानत याचिका में अधिवक्ता लखन सिंह जादौन ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ झालावाड़ सदर थाने में अपहरण का मामला दर्ज हुआ था. वहीं पुलिस ने उसे फंसाते हुए दुष्कर्म और पॉक्सो कानून में आरोप पत्र पेश कर दिया. जबकि पीड़िता की ओर से गत 28 मई को दिए अपने 164 के बयान में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाना तो दूर, उसका नाम तक नहीं लिया.

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वहीं इस तथ्य की अनदेखी करते हुए पॉक्सो कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी को गत 30 अगस्त को खारिज कर दिया. याचिका में कहा गया कि वह 1 जून, 2024 से जेल में बंद है. ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जाए. वहीं राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया, लेकिन पीड़िता के बयानों को लेकर वह अदालत को संतुष्ठ नहीं कर सके. इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश देते हुए संबंधित कोर्ट के जज से इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण देने को कहा है.

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