जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ के पॉक्सो कोर्ट क्रम-1 के पीठासीन अधिकारी से पूछा है कि जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के 164 के बयानों में आरोपी खिलाफ बयान नहीं के तथ्य पर विचार क्यों नहीं किया गया. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि निचली अदालत न्यायिक व्यवस्था की नींव है. वहीं निचली अदालत की ओर से इस तरह जमानत मामलों की सुनवाई करना देश में सर्वोपरि पवित्र न्यायिक कार्य की विफलता को दर्शाता है. अदालत ने कहा कि निचली अदालतों की ओर से जमानत प्रार्थना पत्रों पर ऐसा रुख रखने से हाईकोर्ट में मुकदमों का भार बढ़ रहा है. एनसीआरबी के दिसंबर, 2023 के आंकड़ों के अनुसार देश में 5.73 लाख कैदी जेल में बंद हैं और इनमें से 4.34 लाख विचाराधीन कैदी हैं.
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कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा हो, वहां अदालतों को अधिक सजग रहना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में कह चुका है कि निचली अदालतों को उचित मामलों में जमानत देने में झिझक नहीं रखनी चाहिए. आपराधिक मामलों में पीड़ित के 164 के बयान महत्वपूर्ण होते हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. अदालत ने कहा कि यह समझ के परे है कि इस केस में कोर्ट ने पीड़िता के 164 के बयानों की अनदेखी कैसे कर दी, जबकि वह मुख्य गवाह होती है.
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जमानत याचिका में अधिवक्ता लखन सिंह जादौन ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ झालावाड़ सदर थाने में अपहरण का मामला दर्ज हुआ था. वहीं पुलिस ने उसे फंसाते हुए दुष्कर्म और पॉक्सो कानून में आरोप पत्र पेश कर दिया. जबकि पीड़िता की ओर से गत 28 मई को दिए अपने 164 के बयान में याचिकाकर्ता पर आरोप लगाना तो दूर, उसका नाम तक नहीं लिया.
वहीं इस तथ्य की अनदेखी करते हुए पॉक्सो कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी को गत 30 अगस्त को खारिज कर दिया. याचिका में कहा गया कि वह 1 जून, 2024 से जेल में बंद है. ऐसे में उसे जमानत पर रिहा किया जाए. वहीं राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया, लेकिन पीड़िता के बयानों को लेकर वह अदालत को संतुष्ठ नहीं कर सके. इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश देते हुए संबंधित कोर्ट के जज से इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण देने को कहा है.