जयपुर: राजस्थान हाई कोर्ट ने डीजीपी से पूछा है कि बेचान एग्रीमेंट, कॉन्ट्रैक्ट और कमर्शियल ट्रांजेक्शन केसों में प्रारंभिक जांच किए बिना एफआईआर कैसे दर्ज होती है और इनमें अनुसंधान करने की क्या प्रैक्टिस होती है. ये केसेज सिविल प्रकृति के माने जाते हैं, लेकिन सिविल व आपराधिक प्रकृति के मामलों के बीच में एक पतली लाइन होती है. ऐसे में इन केसों में किस तरह से अनुसंधान किया जाता है. वहीं, डीजीपी से यह भी कहा है कि वे एसपी स्तर के अफसरों से 15 दिनों में यह विश्लेषण कराए कि यह केसेज किस प्रकृति के हैं.
जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश गुरुवार को जमीन विवाद व सिविल विवाद से जुडी 25 याचिकाओं पर दिए. अदालत ने सीनियर एडवोकेट वीआर बाजवा व अधिवक्ता नितिन जैन को मामले में न्यायमित्र भी नियुक्त किया है. अदालत ने कहा कि आगामी सुनवाई पर पुलिस कमिश्नर को बुलाया जाएगा. सुनवाई के दौरान डीजीपी यूआर साहू उपस्थित हुए. डीजीपी की ओर से कहा कि जो मामले कोर्ट में दायर परिवाद पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश के साथ आते हैं. उनमें पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ती है.
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हालांकि, अब नए आपराधिक कानून में इस संबंध में सिस्टम आया है और इसका विश्लेषण करवाएंगे. जिस पर अदालत ने उन्हें कहा कि वे एसपी स्तर के पुलिस अफसर से इन केसेज को दिखाए कि क्या ये सिविल प्रकृति के हैं या आपराधिक प्रकृति के हैं.