जयपुर: राजस्थान में सात सीटों पर प्रचार का शोर आज सोमवार को थम गया है. अब बड़ी-बड़ी सभाओं और भारी भरकम लवाजमे के साथ प्रत्याशी और पार्टियां चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगी. अगले एक दिन प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाताओं की मान-मनुहार करेंगे. उसके अगले दिन 13 नवंबर को मतदान होगा. भाजपा और कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत आदिवासी पार्टी के अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. जहां तक प्रचार अभियान की बात है. कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा पूरी तरह नदारद रहे.
प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पांच सीटों पर दमखम दिखाया तो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने चार सीटों पर पार्टी के प्रचार अभियान को धार दी. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दौसा और देवली-उनियारा में प्रत्याशियों की नामांकन सभा के बाद प्रचार में नजर नहीं आए. इस बीच चौरासी और झुंझुनू की दो सीटें ऐसी भी रही, जहां कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता प्रचार करने नहीं पहुंचा.
डोटासरा ने इन सीटों की की चुनावी सभाएं: पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दौसा में दीनदयाल बैरवा और देवली-उनियारा में केसी मीणा की नामांकन सभा को संबोधित करने पहुंचे थे. इसके बाद 8 से 10 नवंबर तक फिर से चुनावी अभियान पर निकले. इस दौरान उन्होंने रामगढ़ में पार्टी प्रत्याशी आर्यन जुबैर खान, दौसा में दीनदयाल बैरवा, खींवसर में डॉ. रतन चौधरी और सलूंबर में रेशमा मीणा के समर्थन में चुनावी सभाएं की. इस दौरान उन्होंने सरकार को घेरा और कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए समर्थन जुटाया.
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दौसा और देवली में नामांकन भरवाने पहुंचे गहलोत: पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस पूरे उपचुनाव में दौसा और देवली-उनियारा में प्रत्याशियों की नामांकन सभा में ही पहुंचे. इस दौरान प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी उनके साथ थे. इसके बाद वे उपचुनाव वाली एक भी सीट पर पार्टी प्रत्याशियों का प्रचार करने नहीं पहुंचे. हालांकि, उनके पास महाराष्ट्र चुनाव में मुंबई और कोंकण रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का भी जिम्मा है. ऐसे में पिछले दिनों वे महाराष्ट्र में ज्यादा व्यस्त दिखे.
पायलट दो बार दौसा, एक बार देवली-रामगढ़ गए: सचिन पायलट ने दो बार दौसा में, एक बार रामगढ़ में और एक बार देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में सभाओं को संबोधित किया. इस बीच उन्होंने वायनाड उपचुनाव में प्रियंका गांधी के लिए भी चुनावी जनसंपर्क में हिस्सा लिया. इसके साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी उपचुनाव वाली सीटों पर जनसंपर्क किया. सचिन पायलट के पास भी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का जिम्मा है.
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रामगढ़ में सक्रिय रहे जूली और जितेंद्र सिंह: दौसा और देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों की नामांकन सभा के बाद से नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का ध्यान लगातार अलवर जिले की रामगढ़ सीट पर केंद्रित रहा. इसके चलते वे बाकी सीटों पर चुनावी अभियान से दूर नजर आए. इसी तरह भंवर जितेंद्र सिंह भी लगातार रामगढ़ सीट पर ही सक्रिय दिखे. इन दोनों नेताओं में रामगढ़ में आर्यन खान के नामांकन से लेकर चुनावी कार्यालय के उद्घाटन तक में सक्रिय भागीदारी निभाई. कई गांव-कस्बों में चुनावी सभाएं भी की.
नजर नहीं आए प्रदेश प्रभारी रंधावा: राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी उपचुनाव के दौरान नजर नहीं आए. हालांकि, एआईसीसी ने स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की थी. उसमें रंधावा का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन उनकी पत्नी पंजाब की डेरा बाबा नानक सीट से उपचुनाव लड़ रही हैं. ऐसे में वे ज्यादा समय वहीं व्यस्त रहे और प्रदेश की एक भी सीट पर उपचुनाव के दौरान सभा या जनसंपर्क में नहीं पहुंचे.
केंद्रीय नेतृत्व ने भी किया किनारा: राजस्थान में सात सीटों पर उपचुनाव के लिए जो स्टार प्रचारकों की सूची जारी हुई थी. उसमें गांधी परिवार के किसी भी सदस्य का नाम नहीं है न ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का इसमें नाम था. ऐसे में संभावना यही जताई जा रही थी कि उपचुनाव के बीच केंद्रीय नेतृत्व की सभा राजस्थान में शायद ही हो. हुआ भी यही, सात में से एक भी सीट पर मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल या प्रियंका सभा करने नहीं आईं. हालांकि, सोनिया गांधी राजस्थान से ही राज्यसभा सदस्य है.
एकजुटता के दावों को लगा झटका: उपचुनाव में कांग्रेस के प्रचार अभियान को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि चुनाव से पहले कांग्रेस नेता एकजुटता के तमाम दावे कर रहे थे, लेकिन वे दावे उपचुनाव के प्रचार अभियान में धरातल पर उतरते नहीं दिखे. प्रचार का शोर-शराबा अब थम गया है. बूथ मैनेजमेंट पर कांग्रेस कितना काम कर पाएगी. इसी से सीटों पर नतीजे तय होंगे. उनका मानना है कि जिन चार सीटों पर पहले कांग्रेस काबिज थी. उन्हें बचाए रखने की चुनौती भी पार्टी के सामने है.