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Rajasthan: उपचुनाव में चलता है सहानुभूति का दांव, इस बार सात में से दो सीटों पर दिख रही है छाप

उपचुनाव में भाजपा ने सलूंबर और कांग्रेस ने रामगढ़ में सहानुभूति कार्ड खेला है. मौजूदा विधायकों के निधन से ये दोनों सीट खाली है .

rajasthan assembly by elections 2024
rajasthan assembly by elections 2024 (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 5, 2024, 1:20 PM IST

जयपुर. राजस्थान में बीते सालों में हुए उपचुनाव में सहानुभूति कार्ड खूब चला और कमोबेश दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने हिसाब से इस कार्ड का इस्तेमाल किया है. बात अगर बीते एक दशक में 15 सीटों पर हुए उपचुनाव की करें तो इनमें 5 उपचुनाव विधायकों के निधन के कारण खाली हुई सीट पर हुए हैं. भाजपा और कांग्रेस ने दिवंगत नेताओं की पत्नी, बेटा और बेटी को टिकट दिया और जीत भी दर्ज की. इस बार प्रदेश में सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने एक-एक सीट पर सहानुभूति कार्ड खेला है.

अब देखना यह दिलचस्प होगा कि जनता दिवंगत नेताओं के परिजनों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करती है या मुख्य चुनाव के नतीजों से उलट जनादेश देती है. इस बार भाजपा ने उदयपुर जिले की सलूंबर सीट पर दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी को चुनावी मैदान में उतारकर सहानुभूति कार्ड खेला है. जबकि कांग्रेस ने रामगढ़ (अलवर) सीट पर दिवंगत विधायक जुबैर खान के बेटे आर्यन खान को चुनावी मैदान में उतारा है. यह दोनों ही सीट ऐसी हैं. जो मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं. जबकि बाकि पांच सीट देवली-उनियारा, दौसा, चौरासी, झुंझुनूं और खींवसर के विधायक सांसद बन गए. इसलिए वहां उपचुनाव हो रहे हैं.

पढ़ें: Rajasthan: रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव: प्रचार पकड़ने लगा जोर, दीपावली पर खूब हुई राम-राम, अब जुटेंगे बड़े नेता

दस साल में इस तरह चला सहानुभूति का दांव : आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 से अब तक प्रदेश में 15 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इनमें से पांच सीट ऐसी हैं. जो विधायकों के निधन के कारण खाली हुई. इनमें सुजानगढ़, राजसमंद, वल्लभनगर, सहाड़ा और सरदारशहर की सीट शामिल है. इन सभी सीटों पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय 2020 से 2021 के बीच उप चुनाव हुए. तब कांग्रेस ने सुजानगढ़, वल्लभनगर, सहाड़ा और सरदारशहर में व भाजपा ने राजसमंद में दिवंगत नेताओं के परिजनों को टिकट दिया और जीत दर्ज की.

पहले यहां नेताओं के निधन से हुए उपचुनाव :-

  • सहाड़ा (भीलवाड़ा) सीट पर विधायक कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद कांग्रेस ने पत्नी गायत्री देवी को टिकट दिया और चुनाव जीता.
  • सुजानगढ़ (चूरू) सीट पर विधायक भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद कांग्रेस ने बेटे मनोज मेघवाल को टिकट दिया. उन्होंने जीत दर्ज की.
  • वल्लभनगर सीट पर गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद कांग्रेस ने पत्नी प्रीति शक्तावत को टिकट दिया. जिन्होंने जीत हासिल की.
  • सरदारशहर सीट पर भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद कांग्रेस ने बेटे अनिल शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा. उनहोने जीत दर्ज की.
  • किरण माहेश्वरी के निधन से खाली हुई राजसमंद सीट पर भाजपा ने उनकी बेटी दीप्ती माहेश्वरी को उपचुनाव लड़वाया. जिन्होंने जीत दर्ज की.

करणपुर में जनता ने मंत्री को हराया : साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान श्रीकरणपुर में कांग्रेस प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर का निधन हो गया था. इससे वहां चुनाव स्थगित कर दिया गया. बाद में इस सीट पर कांग्रेस ने गुरमीत सिंह कुन्नर के बेटे रूपेंद्र सिंह कुन्नर को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि उनके सामने चुनाव लड़ रहे सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को भाजपा ने बिना चुनाव जीते ही मंत्री बना दिया. हालांकि, जनता की सहानुभूति रूपेंद्र सिंह कुन्नर को मिली और वे चुनाव जीत गए. चुनाव हारने पर सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को मंत्री पद छोड़ना पड़ा.

पढ़ें: Rajasthan: भाजपा नेता सिर्फ चुनाव के समय ही शक्ल दिखाते हैं, बाद में जनता उन्हें ढूंढते रहती है- जितेंद्र सिंह

अब कांग्रेस की राह पर चल रही भाजपा : इधर, टिकट वितरण में परिवारवाद के आरोपों को लेकर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है कि कांग्रेस शुरू से ही नेताओं के परिजनों को टिकट देती आई है. जबकि भाजपा ने राजसमंद को छोड़कर बीते उपचुनाव में किसी भी सीट से नेताओं के परिजनों को टिकट नहीं दिया. लेकिन अब दौसा सीट से डॉ. किरोड़ीलाल मीना ने भाई जगमोहन मीना का टिकट परिवारवाद का सबसे बड़ा उदहारण है.

जयपुर. राजस्थान में बीते सालों में हुए उपचुनाव में सहानुभूति कार्ड खूब चला और कमोबेश दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने हिसाब से इस कार्ड का इस्तेमाल किया है. बात अगर बीते एक दशक में 15 सीटों पर हुए उपचुनाव की करें तो इनमें 5 उपचुनाव विधायकों के निधन के कारण खाली हुई सीट पर हुए हैं. भाजपा और कांग्रेस ने दिवंगत नेताओं की पत्नी, बेटा और बेटी को टिकट दिया और जीत भी दर्ज की. इस बार प्रदेश में सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने एक-एक सीट पर सहानुभूति कार्ड खेला है.

अब देखना यह दिलचस्प होगा कि जनता दिवंगत नेताओं के परिजनों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करती है या मुख्य चुनाव के नतीजों से उलट जनादेश देती है. इस बार भाजपा ने उदयपुर जिले की सलूंबर सीट पर दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी को चुनावी मैदान में उतारकर सहानुभूति कार्ड खेला है. जबकि कांग्रेस ने रामगढ़ (अलवर) सीट पर दिवंगत विधायक जुबैर खान के बेटे आर्यन खान को चुनावी मैदान में उतारा है. यह दोनों ही सीट ऐसी हैं. जो मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं. जबकि बाकि पांच सीट देवली-उनियारा, दौसा, चौरासी, झुंझुनूं और खींवसर के विधायक सांसद बन गए. इसलिए वहां उपचुनाव हो रहे हैं.

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दस साल में इस तरह चला सहानुभूति का दांव : आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 से अब तक प्रदेश में 15 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इनमें से पांच सीट ऐसी हैं. जो विधायकों के निधन के कारण खाली हुई. इनमें सुजानगढ़, राजसमंद, वल्लभनगर, सहाड़ा और सरदारशहर की सीट शामिल है. इन सभी सीटों पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय 2020 से 2021 के बीच उप चुनाव हुए. तब कांग्रेस ने सुजानगढ़, वल्लभनगर, सहाड़ा और सरदारशहर में व भाजपा ने राजसमंद में दिवंगत नेताओं के परिजनों को टिकट दिया और जीत दर्ज की.

पहले यहां नेताओं के निधन से हुए उपचुनाव :-

  • सहाड़ा (भीलवाड़ा) सीट पर विधायक कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद कांग्रेस ने पत्नी गायत्री देवी को टिकट दिया और चुनाव जीता.
  • सुजानगढ़ (चूरू) सीट पर विधायक भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद कांग्रेस ने बेटे मनोज मेघवाल को टिकट दिया. उन्होंने जीत दर्ज की.
  • वल्लभनगर सीट पर गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद कांग्रेस ने पत्नी प्रीति शक्तावत को टिकट दिया. जिन्होंने जीत हासिल की.
  • सरदारशहर सीट पर भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद कांग्रेस ने बेटे अनिल शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा. उनहोने जीत दर्ज की.
  • किरण माहेश्वरी के निधन से खाली हुई राजसमंद सीट पर भाजपा ने उनकी बेटी दीप्ती माहेश्वरी को उपचुनाव लड़वाया. जिन्होंने जीत दर्ज की.

करणपुर में जनता ने मंत्री को हराया : साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान श्रीकरणपुर में कांग्रेस प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर का निधन हो गया था. इससे वहां चुनाव स्थगित कर दिया गया. बाद में इस सीट पर कांग्रेस ने गुरमीत सिंह कुन्नर के बेटे रूपेंद्र सिंह कुन्नर को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि उनके सामने चुनाव लड़ रहे सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को भाजपा ने बिना चुनाव जीते ही मंत्री बना दिया. हालांकि, जनता की सहानुभूति रूपेंद्र सिंह कुन्नर को मिली और वे चुनाव जीत गए. चुनाव हारने पर सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को मंत्री पद छोड़ना पड़ा.

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अब कांग्रेस की राह पर चल रही भाजपा : इधर, टिकट वितरण में परिवारवाद के आरोपों को लेकर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है कि कांग्रेस शुरू से ही नेताओं के परिजनों को टिकट देती आई है. जबकि भाजपा ने राजसमंद को छोड़कर बीते उपचुनाव में किसी भी सीट से नेताओं के परिजनों को टिकट नहीं दिया. लेकिन अब दौसा सीट से डॉ. किरोड़ीलाल मीना ने भाई जगमोहन मीना का टिकट परिवारवाद का सबसे बड़ा उदहारण है.

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