झुंझुनू : विधानसभा उपचुनाव में अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने की जोर आजमाइश करते हुए सांसद और शेखावाटी के दिग्गज जाट नेता बृजेंद्र ओला झुंझुनू के शाहनूर पहाड़ी इलाके में जन प्रचार अभियान में शिरकत करते हुए नजर आए. कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक और अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच सांसद ओला अपने प्रत्याशी बेटे अमित ओला के लिए जन समर्थन को भरोसे में लेते हुए दिखे. यह चुनाव ओला परिवार के लिए बीते चुनावों जितना आसान नहीं दिख रहा है. एकजुट सत्ता पक्ष और परिवारवाद के आरोपी के बीच रवायतों में शामिल वोट बैंक में सेंध का खतरा झुंझुनू की इस राजनीतिक विरासत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. त्रिकोणीय माना जा रहा मुकाबला देखते हुए पूरा ओला परिवार तीन पीढ़ियों के संघर्ष को जनता के सामने बयां कर रहा है.
परिवारवाद को लेकर बैकफुट पर ओला : पहले शीशराम बोला फिर पुत्र विजेंद्र ओला, इसके बाद ओला की पुत्रवधू राजबाला ओला और फिर इनके पौत्र अमित ओला और पौत्र वधु आकांक्षा ओला लगातार चुनाव मैदान में हैं. भारतीय जनता पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह गुढ़ा इस पारिवारिक विरासत को चुनौती देते हुए उपचुनाव में अपने जीत की जगह को तलाश रहे हैं. बेटे के खिलाफ परिवारवाद के आरोपी को लेकर सांसद ओला का कहना है कि विरोधियों को परिवारवाद या तो गांधी परिवार में नजर आता है या फिर ओला परिवार के अंदर दिखता है. बृजेंद्र ओला भाजपा के हरियाणा से जुड़े नेताओं को लेकर कहते हैं कि वहां क्या हो रहा है? केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और उनके बेटे किस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं? भाजपा को आरोप लगाने से पहले दौसा के टिकट पर भी गौर करना चाहिए.
मन में शंका, जुबान पर जीत का दावा : झुंझुनू की जनसभाओं में सांसद ओला इस बात का जिक्र भी करते हैं कि उन्होंने विधायक का पद छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के चुनावी नारे अबकी बार 400 पर को चुनौती देने के लिए लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने का फैसला लिया था. उनके परिवार ने झुंझुनू को नई दिशा दी है. वह अपनी इस राजनीतिक विरासत के दम पर झुंझुनू को आगे बढ़ाना चाहते हैं. उन्होंने इस जीत का दावा किया है.
कच्ची सेना या पक्की सेना, जनता मुश्किल में : झुंझुनू में वोट मांगते हुए ओला परिवार नरेंद्र मोदी सरकार के रुख को भी लेकर सवाल लगातार खड़े कर रहा है. उनका कहना है कि किसान की आय न तो दोगुना हुई और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की गई. इंसाफ मांगने वाले किसानों को भी आंदोलन के दौरान दिल्ली के रास्ते में सड़कों पर किलों को रोपकर उनकी आवाज दबा दी गई. इसके साथ ही अग्निवीर योजना का जिक्र करते हुए ओला कहते हैं कि अब लोग पूछते हैं कि कच्ची सेना में हो या पक्की सेना में. 17 साल का युवा नौकरी चढ़ता है और 21 साल की उम्र में रिटायर होकर घर आ जाता है. अब न तो उसके पेंशन की व्यवस्था है और न ही शहादत के बाद कोई पैकेज.