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रायसेन दुर्ग का तिलिस्मी पारस पत्थर, जिसे छूते ही लोहा बन जाता था सोना, जानें क्यों राजा ने फेंक दिया था ये पत्थर - Paras Patthar of Raisen Durg - PARAS PATTHAR OF RAISEN DURG

भोपाल से 45 किलोमीटर दूर रायसेन किले के पारस पत्थर की कहानी सुनकर आज भी लोग हैरान रह जाते हैं. क्या सचमुच ऐसी पत्थर था जिस पर धातु छूने मात्र से सोने की बन जाती थी? आइए जानते हैं.

PARAS PATTHAR OF RAISEN DURG FORT MP
रायसेन दुर्ग का तिलिस्मी पारस पत्थर (Etv Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 20, 2024, 8:35 AM IST

रायसेन दुर्ग का तिलिस्मी पारस पत्थर (Etv Bharat)

रायसेन. इतिहास की कहानियां बताती हैं कि भारत के हजारों प्राचीन किलों में से एक रायसेन दुर्ग पर कभी पारस पत्थर हुआ करता था. किसी भी धातु के संपर्क में लाने मात्र से ही वह उस धातु को सोने मे बादल देता था. यह बात कितनी सही है, इसकी तलाश में हम मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से तकरीबन 45 किलोमीटर का सफर करते हुऐ रायसेन पहुंचे. यहां ऊंचे पहाड़ों पर शान से खड़ा है 1100 साल पुराना रायसेन किला.

तालब में फेंका गया था पारस पत्थर

रायसेन के इस किले पर पहुंचकर हमने देखा कि किले के चारों और 4 से 5 फिट मोटी पत्थरों और चट्टानों की लम्बी दीवार थी जो उस ज़माने में किले की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी. किले मे प्रवेश करने के हमें तीन रास्तों का मालूम चला जो क्रमशः पूर्वी पश्चिम और मध्य में बने हुऐ थे. इन रास्तों पर बड़े-बड़े दरवाजे दिखाई दिए जिनमें पहरेदारों के रहने का भी इंतज़ाम था. किले के मध्य बने हुऐ रानी महल के पास हमें एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया. इसी शिव मंदिर के पीछे वो तालाब है, जिसमें पारस पत्थर फेंका गया था. कहा जाता है कि राजा ने दुश्मनों से पारस पत्थर की रक्षा करते हुए उसे इसी तालाब में फेंक दिया था. इस तालाब को मदगान के नाम से जाना जाता है.

रहस्य बनकर रह गया पारस पत्थर

10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बने इस किले पर कई राजाओं ने आक्रमण किया! किले की मोटी दीवारों ने बुलंदी के साथ अनगिनत तोप के गोलों को झेलते हुऐ किले को सुरक्षित रखा पर बताया जाता है कि 1543 में शेरशाह सूरी ने गोंड राजा पूरणमल शाह से कब्जा कर इस किले को हथिया लिया था. उसी समय गोंड राजा ने अपने पास रखे पारस पत्थर को मदगान नाम के इस जल सरोवर में कहीं छिपा दिया था. तब से यह पारस पत्थर एक रहस्य बन कर रह गया. जानकार बताते हैं कि पारस पत्थर की खोजबीन में कई लोगों ने चोरी छुपे तालाब में खुदाई करने की भी कोशिश की पर किसी के हाथ वह तिलिस्मी पारस पत्थर नहीं लगा.

पारस पत्थर को लेकर ये कहते हैं लोग

रायसेन जिले के रहने वाले बलदेव सिंह चंदेल पारस पत्थर के होने का दावा करते हुए कहते हैं, ' यह हमने आपने बुजुर्गो से सुना है की इस किले पर पारस पत्थर हुआ करता था. जब विदेशी लोगों ने यहां आक्रमण किया तब राजा ने पारस पत्थर बावड़ी में फेक दिया था. सच्चाई है की जो भी पारस पत्थर होता है उसमें दैवीय शक्ति होती है. उसे अगर आप लोहे से लगा देंगे तो वह भी सोना बना जाता है.'

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रायसेन में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ. जय प्रकाश किरार की सड़क दुर्घटना में मौत, शिवराज सिंह ने जताया दुख

मनीष कहते हैं, 'पारस पत्थर कोई दैवीय पत्थर रहा होगा जो आशीर्वाद के रूप में राजा महाराजाओं को मिला होगा. लेकिन आज की स्थिति में वह नहीं है. हर जगह पारस पत्थर होने की कहानी देखने को मिलती है, पर मेरा मानना है कि अब पारस पत्थर नहीं है. अगर वह होता तो किसी न किसी म्यूजियम में रखा होता.'

क्या है हकीकत?

बहरहाल, पारस पत्थर की कहानियों में कितनी सच्चाई है यह कह पाना संभव नहीं है. पारस पत्थर में विश्वास करने वाले लोग पारस पत्थर के होने का आज भी दावा करते हैं, तो वहीं पारस पत्थर पर विश्वास न रखने वाले लोग इसे महज दंत कथाएं बोलकर नकार देते हैं. हकीकत क्या है यह तो वक्त बताएगा

रायसेन दुर्ग का तिलिस्मी पारस पत्थर (Etv Bharat)

रायसेन. इतिहास की कहानियां बताती हैं कि भारत के हजारों प्राचीन किलों में से एक रायसेन दुर्ग पर कभी पारस पत्थर हुआ करता था. किसी भी धातु के संपर्क में लाने मात्र से ही वह उस धातु को सोने मे बादल देता था. यह बात कितनी सही है, इसकी तलाश में हम मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से तकरीबन 45 किलोमीटर का सफर करते हुऐ रायसेन पहुंचे. यहां ऊंचे पहाड़ों पर शान से खड़ा है 1100 साल पुराना रायसेन किला.

तालब में फेंका गया था पारस पत्थर

रायसेन के इस किले पर पहुंचकर हमने देखा कि किले के चारों और 4 से 5 फिट मोटी पत्थरों और चट्टानों की लम्बी दीवार थी जो उस ज़माने में किले की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी. किले मे प्रवेश करने के हमें तीन रास्तों का मालूम चला जो क्रमशः पूर्वी पश्चिम और मध्य में बने हुऐ थे. इन रास्तों पर बड़े-बड़े दरवाजे दिखाई दिए जिनमें पहरेदारों के रहने का भी इंतज़ाम था. किले के मध्य बने हुऐ रानी महल के पास हमें एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया. इसी शिव मंदिर के पीछे वो तालाब है, जिसमें पारस पत्थर फेंका गया था. कहा जाता है कि राजा ने दुश्मनों से पारस पत्थर की रक्षा करते हुए उसे इसी तालाब में फेंक दिया था. इस तालाब को मदगान के नाम से जाना जाता है.

रहस्य बनकर रह गया पारस पत्थर

10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बने इस किले पर कई राजाओं ने आक्रमण किया! किले की मोटी दीवारों ने बुलंदी के साथ अनगिनत तोप के गोलों को झेलते हुऐ किले को सुरक्षित रखा पर बताया जाता है कि 1543 में शेरशाह सूरी ने गोंड राजा पूरणमल शाह से कब्जा कर इस किले को हथिया लिया था. उसी समय गोंड राजा ने अपने पास रखे पारस पत्थर को मदगान नाम के इस जल सरोवर में कहीं छिपा दिया था. तब से यह पारस पत्थर एक रहस्य बन कर रह गया. जानकार बताते हैं कि पारस पत्थर की खोजबीन में कई लोगों ने चोरी छुपे तालाब में खुदाई करने की भी कोशिश की पर किसी के हाथ वह तिलिस्मी पारस पत्थर नहीं लगा.

पारस पत्थर को लेकर ये कहते हैं लोग

रायसेन जिले के रहने वाले बलदेव सिंह चंदेल पारस पत्थर के होने का दावा करते हुए कहते हैं, ' यह हमने आपने बुजुर्गो से सुना है की इस किले पर पारस पत्थर हुआ करता था. जब विदेशी लोगों ने यहां आक्रमण किया तब राजा ने पारस पत्थर बावड़ी में फेक दिया था. सच्चाई है की जो भी पारस पत्थर होता है उसमें दैवीय शक्ति होती है. उसे अगर आप लोहे से लगा देंगे तो वह भी सोना बना जाता है.'

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मनीष कहते हैं, 'पारस पत्थर कोई दैवीय पत्थर रहा होगा जो आशीर्वाद के रूप में राजा महाराजाओं को मिला होगा. लेकिन आज की स्थिति में वह नहीं है. हर जगह पारस पत्थर होने की कहानी देखने को मिलती है, पर मेरा मानना है कि अब पारस पत्थर नहीं है. अगर वह होता तो किसी न किसी म्यूजियम में रखा होता.'

क्या है हकीकत?

बहरहाल, पारस पत्थर की कहानियों में कितनी सच्चाई है यह कह पाना संभव नहीं है. पारस पत्थर में विश्वास करने वाले लोग पारस पत्थर के होने का आज भी दावा करते हैं, तो वहीं पारस पत्थर पर विश्वास न रखने वाले लोग इसे महज दंत कथाएं बोलकर नकार देते हैं. हकीकत क्या है यह तो वक्त बताएगा

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