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रेलवे ने 900 कोच में बायो टॉयलेट किया इंस्टॉल, यात्रियों को मिलेगी बदबू से निजात

Railways installed bio toilet in bilaspur: बिलासपुर जोन में रेलवे ने 900 कोच में बायो टॉयलेट इंस्टॉल किया है. इससे रेलवे ट्रैक के साथ पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा. साथ ही इससे यात्रियों को बदबू से निजात मिलेगी.

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 1, 2024, 8:30 PM IST

Railways installed bio toilet in bilaspur
रेलवे ने 900 कोच में बायो टॉयलेट किया इंस्टॉल
बिलासपुर जोन में रेलवे ने 900 कोच में बायो टॉयलेट इंस्टॉल

बिलासपुर: पर्यावरण संरक्षण को लेकर रेलवे ने खास पहल की है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन के सभी 900 कोचों में बायो टॉयलेट की सौगात दे रहा है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने अपने सभी 900 पारंपरिक शौचालययुक्त यात्री कोचों में बायो टॉयलेट लगा लिया है. स्टेशन परिसर, प्लेटफॉर्म, गाड़ी और रेलवे ट्रैक को गंदगी से मुक्त रखने के साथ ही वातावरण को साफ रखने के लिए रेलवे ने ये पहल की है.

पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान: दरअसल, भारतीय रेलवे और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की ओर से संयुक्त रूप से विकसित बायो टॉयलेट पर्यावरण के अनुकूल है. इसमें मानव अवशिष्ट 6 से 8 घंटे में पानी और गैस में तब्दील होकर वातावरण में मिल जाता है. इससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं होता. इसमें सीधे टैंक से किसी भी प्रकार के अवशिष्ट का डिस्चार्ज बाहर पर्यावरण में नहीं होता है, जिससे स्टेशन और पटरी के आस-पास सफाई बनी रहती है.

रेलवे ट्रैक रहेगा साफ: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने पर्यावरण मित्र बनकर पर्यावरण संरक्षण के साथ ही इसे बढ़ावा देने का काम किया है. इससे पर्यावरण को भी लाभ होगा और यात्रियों को भी कोच में टॉयलेट की बदबू से छुटकारा मिलेगा. रेलवे के द्वारा बायो टॉयलेट लगाने के बाद ट्रैक पर होने वाली गंदगी में तकरीबन 80 से 90 फीसद की कमी आ गई है.

इस बायो टॉयलेट से न केवल पर्यावरण को बल्कि यात्रियों को भी फायदा हो रहा है. इसमें जो पहले का सिस्टम था वो नॉर्मल टॉयलेट में हुआ करता था. इसमें वेस्ट ट्रैक पर गिरते थे. इससे ट्रैक के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होता था. बायो टॉयलेट लगाने से मानव मल को खत्म किया जाता है. साथ ही इसमें मीथेन गैस बनने के बाद इसे वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है. जो वेस्ट है वह पानी बनकर पाइप के माध्यम से बाहर निकलता है, जो पहले पर्यावरण और ट्रैक को नुकसान नहीं होने देता. इसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत तैयार किया गया है. आरडीएसओ, रेलवे और डीआरडीओ तीनों ने मिलकर इसे तैयार किया है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में लगभग 900 यात्री कोच में इसे इंस्टॉल किया गया है. -साकेत रंजन, सीपीआरओ, एसईसीआर, बिलासपुर जोन

जानिए क्या है बायो टॉयलेट के फायदे:

  1. रेलवे ट्रैक पर गंदगी नहीं होगी. पटरियों के लोहे को भी नुकसान नहीं होगा.
  2. वैक्यूम आधारित बायो टॉयलेट में फ्लश से पानी की बचत होगी.
  3. स्टेशनों पर बदबू रहित स्वच्छ वातवरण सहित कई बीमारियों की रोकथाम की दिशा में अच्छी पहल है.
  4. स्टेशनों पर मच्छर, कॉकरोच और चूहों की संख्या में कमी आएगी.
  5. पटरियों की सफाई आसानी से होगी.

जानिए कब आएगी बायो टॉयलेट में समस्या: बायोटैंक के सही तरीके से काम करते रहने के लिए रेल प्रशासन ने यात्रियों से अनुरोध किया है कि इस तरह के टॉयलेट में चाय के कप, पानी की बोतल, गुटका पाउच, पॉलीथीन, डायपर ना डाले. इनको डालने पर बायो टॉयलेट जाम हो जाएगा. जाम होने पर यह सुचारू रूप से काम नहीं कर पाएगा. इससे ओवर फ्लो होकर गंदगी बाहर आ जाती है. ऐसी अवस्था में यात्रियो को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. टॉयलेट का सिस्टम इससे खराब हो जाता है. यह काम करना बंद कर देता है. साथ ही बायो टॉयलेट उपयोग के बाद फ्लैश करना बेहद जरूरी होता है. ताकि मल टॉयलेट में सके और इसके डिस्पोज की प्रक्रिया शुरू हो जाए.

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बिलासपुर जोन में रेलवे ने 900 कोच में बायो टॉयलेट इंस्टॉल

बिलासपुर: पर्यावरण संरक्षण को लेकर रेलवे ने खास पहल की है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन के सभी 900 कोचों में बायो टॉयलेट की सौगात दे रहा है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने अपने सभी 900 पारंपरिक शौचालययुक्त यात्री कोचों में बायो टॉयलेट लगा लिया है. स्टेशन परिसर, प्लेटफॉर्म, गाड़ी और रेलवे ट्रैक को गंदगी से मुक्त रखने के साथ ही वातावरण को साफ रखने के लिए रेलवे ने ये पहल की है.

पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान: दरअसल, भारतीय रेलवे और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की ओर से संयुक्त रूप से विकसित बायो टॉयलेट पर्यावरण के अनुकूल है. इसमें मानव अवशिष्ट 6 से 8 घंटे में पानी और गैस में तब्दील होकर वातावरण में मिल जाता है. इससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं होता. इसमें सीधे टैंक से किसी भी प्रकार के अवशिष्ट का डिस्चार्ज बाहर पर्यावरण में नहीं होता है, जिससे स्टेशन और पटरी के आस-पास सफाई बनी रहती है.

रेलवे ट्रैक रहेगा साफ: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने पर्यावरण मित्र बनकर पर्यावरण संरक्षण के साथ ही इसे बढ़ावा देने का काम किया है. इससे पर्यावरण को भी लाभ होगा और यात्रियों को भी कोच में टॉयलेट की बदबू से छुटकारा मिलेगा. रेलवे के द्वारा बायो टॉयलेट लगाने के बाद ट्रैक पर होने वाली गंदगी में तकरीबन 80 से 90 फीसद की कमी आ गई है.

इस बायो टॉयलेट से न केवल पर्यावरण को बल्कि यात्रियों को भी फायदा हो रहा है. इसमें जो पहले का सिस्टम था वो नॉर्मल टॉयलेट में हुआ करता था. इसमें वेस्ट ट्रैक पर गिरते थे. इससे ट्रैक के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होता था. बायो टॉयलेट लगाने से मानव मल को खत्म किया जाता है. साथ ही इसमें मीथेन गैस बनने के बाद इसे वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है. जो वेस्ट है वह पानी बनकर पाइप के माध्यम से बाहर निकलता है, जो पहले पर्यावरण और ट्रैक को नुकसान नहीं होने देता. इसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत तैयार किया गया है. आरडीएसओ, रेलवे और डीआरडीओ तीनों ने मिलकर इसे तैयार किया है. दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में लगभग 900 यात्री कोच में इसे इंस्टॉल किया गया है. -साकेत रंजन, सीपीआरओ, एसईसीआर, बिलासपुर जोन

जानिए क्या है बायो टॉयलेट के फायदे:

  1. रेलवे ट्रैक पर गंदगी नहीं होगी. पटरियों के लोहे को भी नुकसान नहीं होगा.
  2. वैक्यूम आधारित बायो टॉयलेट में फ्लश से पानी की बचत होगी.
  3. स्टेशनों पर बदबू रहित स्वच्छ वातवरण सहित कई बीमारियों की रोकथाम की दिशा में अच्छी पहल है.
  4. स्टेशनों पर मच्छर, कॉकरोच और चूहों की संख्या में कमी आएगी.
  5. पटरियों की सफाई आसानी से होगी.

जानिए कब आएगी बायो टॉयलेट में समस्या: बायोटैंक के सही तरीके से काम करते रहने के लिए रेल प्रशासन ने यात्रियों से अनुरोध किया है कि इस तरह के टॉयलेट में चाय के कप, पानी की बोतल, गुटका पाउच, पॉलीथीन, डायपर ना डाले. इनको डालने पर बायो टॉयलेट जाम हो जाएगा. जाम होने पर यह सुचारू रूप से काम नहीं कर पाएगा. इससे ओवर फ्लो होकर गंदगी बाहर आ जाती है. ऐसी अवस्था में यात्रियो को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. टॉयलेट का सिस्टम इससे खराब हो जाता है. यह काम करना बंद कर देता है. साथ ही बायो टॉयलेट उपयोग के बाद फ्लैश करना बेहद जरूरी होता है. ताकि मल टॉयलेट में सके और इसके डिस्पोज की प्रक्रिया शुरू हो जाए.

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