रांची: देश समेत पूरे झारखंड में हाड़ कंपा देने वाली ठंड पड़ रही है. इस बीच रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के चलते रांची के बिरसा चौक पर रहने वाले 205 परिवारों के घर उजड़ गए हैं. नतीजतन, सभी को टेंट और आग के सहारे ये सर्द रातें गुजारनी पड़ रही हैं.
रात काटना हुआ मुश्किल
जब तक अलाव जलता है, तब तक नींद आती है, लेकिन जैसे ही अलाव बुझता है, नींद फिर टूट जाती है और फिर ठंड के कारण नींद नहीं आती. अपना दर्द बयां कर रही दुलारी देवी पिछले 44 वर्षों से वहां मकान बनाकर रह रही थीं, लेकिन चूंकि जमीन रेलवे की थी, इसलिए रेलवे ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत दुलारी देवी जैसे 204 परिवारों के मकानों पर बुलडोजर चला दिया. जिन लोगों के मकान तोड़े गए हैं, वे बताते हैं कि वे इस जमीन पर तब रहने आए थे, जब यहां जंगल हुआ करता था. उस समय किसी को पता नहीं था कि यह जमीन रेलवे की है. तब से उन्होंने यहां अपनी झुग्गी-झोपड़ी डाल ली और रहने लगे.
44 सालों से रह रहे थे कई परिवार
हाड़ कंपा देने वाली ठंड में रेलवे द्वारा चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान के कारण 204 परिवारों के मकान उजड़ गए हैं और अब वे सड़क पर आ गए हैं. जिन लोगों के मकान तोड़े गए हैं, वे बताते हैं कि वे बिरसा चौक के पास अपनी झुग्गी-झोपड़ी बनाकर पिछले 44 वर्षों से रह रहे थे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे कहां जाएं और क्या करें.
अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत बिरसा चौक के पास जिन लोगों के घर तोड़े गए हैं, उनमें से अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूर हैं. वे प्रतिदिन मेहनत करके अपना घर चलाते थे. इसी मेहनत के बल पर उन्होंने कुछ ईंट जोड़कर एक अस्थायी छत बनाई थी. जिसमें उनके सपने साकार हो रहे थे और बच्चे पढ़ाई कर रहे थे. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है, सब कुछ बर्बाद हो गया है.
चुनाव में किया गया इस्तेमाल
जिन लोगों के घर तोड़े गए हैं, उनमें से कई लोग अपने शहर लौटने की तैयारी कर रहे हैं, जबकि कुछ को उम्मीद है कि सरकार की ओर से उन्हें कुछ मदद मिलेगी. जिन लोगों के घर तोड़े गए हैं, उन्होंने सरकार पर भी उंगली उठाई है. उनका कहना है कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले अधिकांश परिवारों ने अबुवा आवास के लिए आवेदन किया था. चुनाव से पहले उनसे कहा गया था कि सभी को जल्द से जल्द अबुवा आवास मिल जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, इसके विपरीत चुनाव खत्म होते ही उन्हें बेदखल कर दिया गया.
किराए का घर लेने का भी नहीं दिया गया मौका
65 वर्षीय बुजुर्ग महिला कुसुम देवी ने बताया कि वे पिछले 45 वर्षों से इस जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रही थीं. लेकिन अचानक सब कुछ तबाह हो गया, इतना भी समय नहीं दिया गया कि वे किराए का मकान ले सकें. एक तरफ सरकार गरीबों को बसा रही है, वहीं जिला प्रशासन उन्हें बेदखल करने में लगा है. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले दिनेश का घर भी बुलडोजर से ढहा दिया गया है.
दिनेश का कहना है कि वह पुरुष हैं और बाहर रह सकते हैं, लेकिन महिलाएं इस स्थिति में कैसे रहेंगी, यह बहुत मुश्किल सवाल है. दिनेश के मुताबिक पहले रेलवे प्रशासन ने कहा था कि वे 15 दिन का समय देंगे, लेकिन अचानक बुलडोजर आया और उनके घरों को ढहाकर चला गया.
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