प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि लोक निर्माण विभाग किसी भी कंपनी को जो सड़कों के निर्माण कार्य में लगी है, उसे अनिश्चितकालीन स्थायी रूप से ब्लैक लिस्ट नहीं कर सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सर्राफ एवं न्यायमूर्ति वीसी दीक्षित की खंडपीठ ने मेसर्स एम आई कंस्ट्रक्शन व कई अन्य ब्लैक लिस्ट की गई कम्पनियों की याचिका पर दिया है.
इन कम्पनियों को गलत सूचना देने के आरोप में ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था. बाद में इसी कारण उनका चरित्र प्रमाण पत्र भी निरस्त कर दिया गया था. लोक निर्माण विभाग के 29 दिसम्बर 2023 एवं 24 जनवरी 2024 के आदेशों को याचिका में चुनौती दी गई थी. इन आदेशों से याची कंपनियों पहले छह माह तक और बाद में स्थायी तौर पर को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था.
हाईकोर्ट ने ब्लैक लिस्ट के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि विभागीय आदेश अर्द्ध न्यायिक आदेश है. इस प्रकार का आदेश कैजुअल तरीके से नहीं किया जाना चाहिए. कोर्ट ने आदेश रद्द करते हुए लोक निर्माण विभाग को नया कारण बताओ नोटिस जारी कर आगे की कार्रवाई करने की छूट दी है.
विकसित भारत के लिए रूल ऑफ लॉ जरूरी: जस्टिस सूर्यकांत
प्रयागराज: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि विकसित भारत के लिए रूल ऑफ लॉ की गारंटी आवश्यक है. ड्रमंड रोड स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट के सम्मेलन हाल में शनिवार को यहां पं कन्हैयालाल लाल मिश्र मेमोरियल कमेटी की ‘न्यायिक प्रणाली के समक्ष वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता और गुंजाइश विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि ज्युडीशियल सिस्टम को भी अस्पतालों के रूप में काम करना होगा.
जैसे अस्पतालों में फर्स्ट एड के साथ इलाज की सुविधा होती है, वैसे ही न्याय पालिका काम करे. जजों की संख्या के साथ क्वालिटी का होना जरूरी है. सबकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए. इसके लिए बेंच और बार जब कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे, तभी संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा होगी और विकसित भारत का सपना साकार होगा.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि हमारा कर्तव्य राष्ट्र व समाज के प्रति होना चाहिए. क्वालिटी जजेज की आवश्यकता हमेशा से रही है और इसके लिए सभी स्टेक होल्डर को सहभागिता करनी होगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने कहा कि थोड़े से बदलाव से आशा के अनुरूप परिणाम निकल सकते हैं. उन्होंने हाईकोर्ट कोलेजियम को तीन की जगह पांच सदस्यीय बनाने का सुझाव दिया. कहा कि न्याय में देरी न्याय से इनकार है. जजों और मूलभूत सुविधाओं की कमी इसके आड़े आ रही है. सिस्टम में छोटे सुधार की आवश्यकता है.ऐसे लोग नियुक्त हों जो संवैधानिक दायित्व निभा सकें.
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