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'मैं जिंदा हूं' 2025 के चुनाव से पहले फिर एक्टिव हुईं पुष्पम प्रिया चौधरी, बिहार की जनता के नाम लिखी चिट्ठी - Pushpam Priya Choudhary Letter

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 27, 2024, 9:57 AM IST

Updated : Aug 27, 2024, 11:12 AM IST

Pushpam Priya Choudhary : बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों की तैयारियां शुरू हो गई है. इस बीच 2020 के चुनाव में मैदान में उतरी द प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी भी अपनी तैयारी में जुट गई हैं. इसी कड़ी में उन्होंने बिहार की जनता के नाम एक चिट्ठी लिखी है और कहा है कि हमेशा याद रखिए- मैं ज़िंदा हूं. Time brings victory. जीत समय पर होती है.

पुष्पम प्रिया चौधरी
पुष्पम प्रिया चौधरी (social media X)

पटना: 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में दमखम दिखाने वाली प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी एक बार फिर से एक्टिव हो गई हैं. 2025 के चुनाव में अभी समय है, लेकिन उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर बिहार की जनता के नाम एक चिट्ठी पोस्ट करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है. पुष्पम प्रिया चौधरी ने इस चिट्ठी के जरिए प्रदेश की सियासत पर हमला किया. पुष्पम प्रिया चौधरी की यह चिट्ठी हजार शब्दों से ज्यादा की है, जिसे उन्होंने सोमवार को अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट किया है.

पुष्पम प्रिया ने चिट्ठी में क्या लिखा: सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि पिछले कुछ दिनों से कई बार मैंने आप सब को ये चिट्ठी लिखने का सोचा. 8 मार्च 2020 को जब आपने मेरा नाम पहली बार सुना था तब भी विरोधियों के शब्दों में उस “करोड़ों के विज्ञापन” का ध्येय मात्र एक ही था. शहरों एवं दूर गांव में बैठे आप तक, देश-विदेश में काम कर रहे अपने बिहारी भाई-बहनों तक, अपने हाथ से लिखी अपनी बात पहुंचाना. आज उस दिन को चार साल हुए.

द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख
द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख (ETV Bharat)

"राजनीति में यह एक छोटा समय है. इन चार सालों में मेरे जीवन में और आपके जीवन में भी कई परिवर्तन आए होंगे, लेकिन दो चीजें जो नहीं बदली वो है बिहार की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था और इस व्यवस्था को बदलने का मेरा संकल्प. साल 2019 में मैंने एक ऐसा निर्णय लिया था जिसने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया. बिहार की कभी नहीं बदलने वाली सड़ी व्यवस्था को हमेशा के लिए बदलने के लिए अपना सब कुछ छोड़ना. इस देश की राजनीति के गटर में घुसने के लिए व्यक्तिगत जीवन की तिलांजलि."- पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लूरल्स पार्टी

2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं
2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं (ETV Bharat)

'राजनीति मेरे लिए कोई बैक-अप प्लान बी नहीं': उन्होंने अपने पोस्ट में आगे लिखा है कि औरों की तरह बिहार और राजनीति मेरे लिए कोई बैक-अप प्लान बी न था और न है. बनना कुछ और हो, नहीं बन पाए तो चलो बाप की राजनीति वाला धंधा कर लेते हैं या कहीं से टिकट खरीद के फिट हो जाते हैं. या किसी पार्टी में पट नहीं रहा ‘गोटी सेट नहीं हो पा रहा’ तो चलो बिहार के लोगों को गांधी और अंबेडकर का पोस्टर लगा कर झांसा देते हैं, बिहार के लोग तो “झांसे में आते ही है.”

'बिहार मेरे लिए उपहास का विषय नहीं': मेरे लिए राजनीति झांसा देने वाला जाल नहीं, आदर्शों के लिए है - आइडियोलॉजी. कभी जिसका बहुत भारी मतलब होता था, अब तो जनता भी भूल चुकी है कि राजनीति में आदर्श भी कुछ होता है. बिहार की जनता मेरे लिए झांसे में आने वाले लोग नहीं है. ये वो लोग हैं जिनको मैंने अपनी आंखों से छोटी-छोटी चीजों के लिए जूझते देखा है, बिना किसी कारण के दूसरे राज्य में डंडे से मार खाते देखा है. बिहार मेरे लिए उपहास का विषय नहीं बल्कि वो एंपायर, वो साम्राज्य है जिसका परचम पूरी दुनिया में लहराया करता था.

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से की पढ़ाई
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से की पढ़ाई (ETV Bharat)

'ईश्वर की अपनी योजना होती है': बिहार वो सब्जेक्ट है जिसका यूनान की लेखनी में जिक्र पढ़कर मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था और आज की डेवलपमेंट संबंधित रिपोर्ट्स में बिहार के आंकड़े देख कर सर शर्म से झुक जाता था. बिहार मेरे लिए एक कॉलिंग, राजनीति एक कॉलिंग है. इसकी वजह मात्र ये नहीं कि मैंने अपना अधिकांश जीवन बिहार में बिताया है, बिहार को करीब से देखा है, बिहार में काम किया है, बाहर रहकर एक बिहारी की पीड़ा का अनुभव किया है, बल्कि आध्यात्मिक कारण कुछ और ही होगा. बिहार मेरे लिए खुद से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण क्यों है वो मेरे भी समझ से परे है, पर सत्य यही है. ईश्वर की अपनी योजना होती है.

'..क्योंकि हर बिहारी बिहार है': बिहार मेरे लिए सर्वोपरि है एक बिहारी से भी अधिक बड़ा, ज्यादा ऊंचा क्योंकि हर बिहारी बिहार है. यूरिपडीज़ की The Bacchae की एक पंक्ति मेरे दिमाग पर छप गयी थी “ten thousand men posses ten thousand hopes”. बिहार मेरे लिए तेरह करोड़ आशा है. किसी समाज के समूह से बड़ा हर व्यक्ति चाहे उसके पास कुर्सी ना हो, मोबाइल में कुर्सी वालों के नम्बर ना हों, बल्कि भले ही मोबाइल रखने की क्षमता ही ना हो या बिहार का फेवरेट शब्द “औक़ात” ना हो.

जेडीयू के पूर्व MLC विनोद चौधरी की बेटी हैं पुष्पम प्रिया
जेडीयू के पूर्व MLC विनोद चौधरी की बेटी हैं पुष्पम प्रिया (ETV Bharat)

“सीधे मुख्यमंत्री बन जाइएगा?”: हर व्यक्ति को वो institution देना जो उसे एक सम्मान की ज़िंदगी दे “औक़ात” दे और वो समग्र इंस्टीट्यूशन बिहार जैसी सड़ी व्यवस्था में अब एक प्रतिबद्ध मुख्यमंत्री ही ला सकता है. इसलिए बिना किसी ड्रामे-दिखावे के उस अखबारी विज्ञापन में लिखा था “मुख्यमंत्री उम्मीदवार" और ये बात कई लोगों को बहुत खटकी “सीधे मुख्यमंत्री बन जाइएगा?”

'घाघ बन के ऊपर पहुंचिए तो ठीक है?': नकली नेताओं, नकली नेता-आकांक्षियों, मीडिया के कुछ लोगों, और कुछ आम लोगों को भी ये बात खटकी थी. ये सोच कर मुझे आज भी दो वजह से बहुत हंसी आती है. हम ड्रामा, झूठ और पाखंड के कितने आदी हो गए हैं. इसी झूठ, ड्रामा और फ़्रॉड ने बिहार को बर्बाद किया है. जो लोग राजनीति में नाच-कूद रहे होते हैं, बड़े-बड़े महापुरुषों का मुंह लगा के वो क्या मसीहा बनने आते हैं? या ऐसा है कि जब तक बोलिए नहीं तब तक ठीक है. घाघ बन के ऊपर पहुंचिए तो ठीक है? या परेशानी ये है कि एक स्त्री जब तक राजनीति में बाप की या पति की, या दोनों की, टोकेन है तब तक ठीक है? ये खुद और खुद-से कैसे बन जाएगी?

'मुख्यमंत्री का पद भगवान का पद नहीं लगता': मुझे मुख्यमंत्री का पद भगवान का पद नहीं लगता, मात्र एक पद है, हां एक शक्तिशाली पद है जिसपर इन्स्टिट्यूशन बनाने के लिए बैठना जरूरी है और उस पद पर उसे ही बैठना चाहिए जिसे इन्स्टिट्यूशन बदलने आता हो, उसकी समझ हो, पढ़ाई हो. जैसे इलाज उसी को करना चाहिए जो डॉक्टर हो. एक्टर एक्टिंग कर सकता है, क्रिकेटर क्रिकेट खेल सकता है और फ़्रॉड ड्रामा कर सकता है, पर व्यवस्था वही बदल सकता है जिसके पास व्यवस्था बनाने का स्किल-सेट हो, संविधान वही बना सकता है जो संविधान बनाने की समझ रखता हो, सबसे बड़ी बात "नीति और नीयत " हो.

'पिछले चार साल में राजनीति का स्तर और गिरा': मैं बिना इरादे और बिना स्किल के नेताओं को नेता नहीं मानती और वो जो आज तक नेता जैसा कोई काम भी नहीं कर सके. बिहार को इसलिए सच बोलने वाला नेता चाहिए और 2020 में आप लोगों में लाखों ने मेरे आने पर मेरा साथ दिया और ये संकेत दिए कि आप लोग भी यही मानते हैं. राजनीति का स्तर बहुत गिरा तो था ही पर पिछले चार साल में बिहार की राजनीति का स्तर और गिरता जा रहा.

'मात्र 24 घंटों में आप मुझे जान गए':प्लुरल्स पार्टी का नाम प्लुरल्स इसलिए नहीं रखा क्योंकि विरोधियों के शब्दों में “मैं विदेशी हूं, और मुझे बिहार के बारे में मालूम नहीं”. मुझसे ज़्यादा बिहार को कोई नहीं जानता इसलिए मात्र 24 घंटों में आप मुझे जान गए थे. इसलिए पहली बार बिहार में नयी तरह की राजनीति की शुरुआत हुई और सब विकास की बातें करने लगे. दूसरी पार्टियों ने हमारा टैग लाइन तक कॉपी कर के अपने पोस्टर पर लिख लिया “ना जाति ना धर्म”, लेकिन ओरिजिनल किसी कारण से ओरिजिनल होता है और शेर का बस खाल ओढ़ लेने से सियार शेर नहीं बन जाता.

'गंभीर मुद्दे भी हल्के बन गये': पिछले चार वर्षों में लोगों ने बस वही किया, उसी स्टाइल में किया जो प्लुरल्स ने 2020 में किया. वही बातें जो हमने कही थी, लाइन बाई लाइन, “नयी राजनीतिक पीढ़ी बना रहे”, “आंदोलन कर रहे”, “बिहार का विकास कर रहे”, और इतनी बेशर्मी से कि गंभीर मुद्दे भी हल्के बन गये. मुद्दे तो मुद्दे, कुछ लोग तो कपड़ा भी सफेद से काला पहन के घूमने लगे! प्लुरल्स पार्टी के शायद ही कोई सदस्य होंगे जिनको लोगों ने अपनी-अपनी पार्टी में शामिल करने की कोशिश नहीं की और कुछ लोग इधर-उधर गए भी, जो बिहार को नहीं बल्कि अपने को बदलने की जल्दी में रहे होंगे.

'मैं जिंदा हूं': जनता आपसे बेहतर राजनीति की अपेक्षा करती है, ये वो लोग हैं जो चुप हैं पर देख रहे हैं. ऊंची आवाज वाले लोगों के शोर में जो आवाज दब जाती है आप उनकी आवाज है. उनके बीच में रहिए जिनके पास बिहार में क्या हो रहा ये पता लगाने की भी फुर्सत नहीं, जो पूरा घर-बार पीछे छोड़ आज भी मजदूरी करने जा रहे, जिनके पास आज भी एक बित्ता भर जमीन नहीं, जो अच्छे इलाज के अभाव में वक्त से पहले गुजर जा रहे हैं, जिनके बच्चे शौक से नहीं बल्कि अभाव की वजह से नहीं पढ़ पा रहे हैं. उनके लिए, उनके प्रतिनिधित्व के लिए, उनकी सरकार बनाने के लिए, उनका मुख्यमंत्री बनने के लिए- हमेशा याद रखिए- मैं जिंदा हूं. Time brings victory. जीत समय पर होती है.

कौन हैं पुष्पम प्रिया चौधरी: द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी हैं. जेडीयू के पूर्व MLC विनोद चौधरी की बेटी हैं. 2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं थी. 2020 में बिहार की दो विधानसभा सीट से उन्होंने चुनाव लड़ा था. पुष्पम प्रिया इन दोनों सीटों पर पीछे रहीं और हार गईं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने पढ़ाई की है.

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पटना: 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में दमखम दिखाने वाली प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी एक बार फिर से एक्टिव हो गई हैं. 2025 के चुनाव में अभी समय है, लेकिन उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर बिहार की जनता के नाम एक चिट्ठी पोस्ट करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है. पुष्पम प्रिया चौधरी ने इस चिट्ठी के जरिए प्रदेश की सियासत पर हमला किया. पुष्पम प्रिया चौधरी की यह चिट्ठी हजार शब्दों से ज्यादा की है, जिसे उन्होंने सोमवार को अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट किया है.

पुष्पम प्रिया ने चिट्ठी में क्या लिखा: सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि पिछले कुछ दिनों से कई बार मैंने आप सब को ये चिट्ठी लिखने का सोचा. 8 मार्च 2020 को जब आपने मेरा नाम पहली बार सुना था तब भी विरोधियों के शब्दों में उस “करोड़ों के विज्ञापन” का ध्येय मात्र एक ही था. शहरों एवं दूर गांव में बैठे आप तक, देश-विदेश में काम कर रहे अपने बिहारी भाई-बहनों तक, अपने हाथ से लिखी अपनी बात पहुंचाना. आज उस दिन को चार साल हुए.

द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख
द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख (ETV Bharat)

"राजनीति में यह एक छोटा समय है. इन चार सालों में मेरे जीवन में और आपके जीवन में भी कई परिवर्तन आए होंगे, लेकिन दो चीजें जो नहीं बदली वो है बिहार की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था और इस व्यवस्था को बदलने का मेरा संकल्प. साल 2019 में मैंने एक ऐसा निर्णय लिया था जिसने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया. बिहार की कभी नहीं बदलने वाली सड़ी व्यवस्था को हमेशा के लिए बदलने के लिए अपना सब कुछ छोड़ना. इस देश की राजनीति के गटर में घुसने के लिए व्यक्तिगत जीवन की तिलांजलि."- पुष्पम प्रिया चौधरी, अध्यक्ष, प्लूरल्स पार्टी

2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं
2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं (ETV Bharat)

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'बिहार मेरे लिए उपहास का विषय नहीं': मेरे लिए राजनीति झांसा देने वाला जाल नहीं, आदर्शों के लिए है - आइडियोलॉजी. कभी जिसका बहुत भारी मतलब होता था, अब तो जनता भी भूल चुकी है कि राजनीति में आदर्श भी कुछ होता है. बिहार की जनता मेरे लिए झांसे में आने वाले लोग नहीं है. ये वो लोग हैं जिनको मैंने अपनी आंखों से छोटी-छोटी चीजों के लिए जूझते देखा है, बिना किसी कारण के दूसरे राज्य में डंडे से मार खाते देखा है. बिहार मेरे लिए उपहास का विषय नहीं बल्कि वो एंपायर, वो साम्राज्य है जिसका परचम पूरी दुनिया में लहराया करता था.

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'..क्योंकि हर बिहारी बिहार है': बिहार मेरे लिए सर्वोपरि है एक बिहारी से भी अधिक बड़ा, ज्यादा ऊंचा क्योंकि हर बिहारी बिहार है. यूरिपडीज़ की The Bacchae की एक पंक्ति मेरे दिमाग पर छप गयी थी “ten thousand men posses ten thousand hopes”. बिहार मेरे लिए तेरह करोड़ आशा है. किसी समाज के समूह से बड़ा हर व्यक्ति चाहे उसके पास कुर्सी ना हो, मोबाइल में कुर्सी वालों के नम्बर ना हों, बल्कि भले ही मोबाइल रखने की क्षमता ही ना हो या बिहार का फेवरेट शब्द “औक़ात” ना हो.

जेडीयू के पूर्व MLC विनोद चौधरी की बेटी हैं पुष्पम प्रिया
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“सीधे मुख्यमंत्री बन जाइएगा?”: हर व्यक्ति को वो institution देना जो उसे एक सम्मान की ज़िंदगी दे “औक़ात” दे और वो समग्र इंस्टीट्यूशन बिहार जैसी सड़ी व्यवस्था में अब एक प्रतिबद्ध मुख्यमंत्री ही ला सकता है. इसलिए बिना किसी ड्रामे-दिखावे के उस अखबारी विज्ञापन में लिखा था “मुख्यमंत्री उम्मीदवार" और ये बात कई लोगों को बहुत खटकी “सीधे मुख्यमंत्री बन जाइएगा?”

'घाघ बन के ऊपर पहुंचिए तो ठीक है?': नकली नेताओं, नकली नेता-आकांक्षियों, मीडिया के कुछ लोगों, और कुछ आम लोगों को भी ये बात खटकी थी. ये सोच कर मुझे आज भी दो वजह से बहुत हंसी आती है. हम ड्रामा, झूठ और पाखंड के कितने आदी हो गए हैं. इसी झूठ, ड्रामा और फ़्रॉड ने बिहार को बर्बाद किया है. जो लोग राजनीति में नाच-कूद रहे होते हैं, बड़े-बड़े महापुरुषों का मुंह लगा के वो क्या मसीहा बनने आते हैं? या ऐसा है कि जब तक बोलिए नहीं तब तक ठीक है. घाघ बन के ऊपर पहुंचिए तो ठीक है? या परेशानी ये है कि एक स्त्री जब तक राजनीति में बाप की या पति की, या दोनों की, टोकेन है तब तक ठीक है? ये खुद और खुद-से कैसे बन जाएगी?

'मुख्यमंत्री का पद भगवान का पद नहीं लगता': मुझे मुख्यमंत्री का पद भगवान का पद नहीं लगता, मात्र एक पद है, हां एक शक्तिशाली पद है जिसपर इन्स्टिट्यूशन बनाने के लिए बैठना जरूरी है और उस पद पर उसे ही बैठना चाहिए जिसे इन्स्टिट्यूशन बदलने आता हो, उसकी समझ हो, पढ़ाई हो. जैसे इलाज उसी को करना चाहिए जो डॉक्टर हो. एक्टर एक्टिंग कर सकता है, क्रिकेटर क्रिकेट खेल सकता है और फ़्रॉड ड्रामा कर सकता है, पर व्यवस्था वही बदल सकता है जिसके पास व्यवस्था बनाने का स्किल-सेट हो, संविधान वही बना सकता है जो संविधान बनाने की समझ रखता हो, सबसे बड़ी बात "नीति और नीयत " हो.

'पिछले चार साल में राजनीति का स्तर और गिरा': मैं बिना इरादे और बिना स्किल के नेताओं को नेता नहीं मानती और वो जो आज तक नेता जैसा कोई काम भी नहीं कर सके. बिहार को इसलिए सच बोलने वाला नेता चाहिए और 2020 में आप लोगों में लाखों ने मेरे आने पर मेरा साथ दिया और ये संकेत दिए कि आप लोग भी यही मानते हैं. राजनीति का स्तर बहुत गिरा तो था ही पर पिछले चार साल में बिहार की राजनीति का स्तर और गिरता जा रहा.

'मात्र 24 घंटों में आप मुझे जान गए':प्लुरल्स पार्टी का नाम प्लुरल्स इसलिए नहीं रखा क्योंकि विरोधियों के शब्दों में “मैं विदेशी हूं, और मुझे बिहार के बारे में मालूम नहीं”. मुझसे ज़्यादा बिहार को कोई नहीं जानता इसलिए मात्र 24 घंटों में आप मुझे जान गए थे. इसलिए पहली बार बिहार में नयी तरह की राजनीति की शुरुआत हुई और सब विकास की बातें करने लगे. दूसरी पार्टियों ने हमारा टैग लाइन तक कॉपी कर के अपने पोस्टर पर लिख लिया “ना जाति ना धर्म”, लेकिन ओरिजिनल किसी कारण से ओरिजिनल होता है और शेर का बस खाल ओढ़ लेने से सियार शेर नहीं बन जाता.

'गंभीर मुद्दे भी हल्के बन गये': पिछले चार वर्षों में लोगों ने बस वही किया, उसी स्टाइल में किया जो प्लुरल्स ने 2020 में किया. वही बातें जो हमने कही थी, लाइन बाई लाइन, “नयी राजनीतिक पीढ़ी बना रहे”, “आंदोलन कर रहे”, “बिहार का विकास कर रहे”, और इतनी बेशर्मी से कि गंभीर मुद्दे भी हल्के बन गये. मुद्दे तो मुद्दे, कुछ लोग तो कपड़ा भी सफेद से काला पहन के घूमने लगे! प्लुरल्स पार्टी के शायद ही कोई सदस्य होंगे जिनको लोगों ने अपनी-अपनी पार्टी में शामिल करने की कोशिश नहीं की और कुछ लोग इधर-उधर गए भी, जो बिहार को नहीं बल्कि अपने को बदलने की जल्दी में रहे होंगे.

'मैं जिंदा हूं': जनता आपसे बेहतर राजनीति की अपेक्षा करती है, ये वो लोग हैं जो चुप हैं पर देख रहे हैं. ऊंची आवाज वाले लोगों के शोर में जो आवाज दब जाती है आप उनकी आवाज है. उनके बीच में रहिए जिनके पास बिहार में क्या हो रहा ये पता लगाने की भी फुर्सत नहीं, जो पूरा घर-बार पीछे छोड़ आज भी मजदूरी करने जा रहे, जिनके पास आज भी एक बित्ता भर जमीन नहीं, जो अच्छे इलाज के अभाव में वक्त से पहले गुजर जा रहे हैं, जिनके बच्चे शौक से नहीं बल्कि अभाव की वजह से नहीं पढ़ पा रहे हैं. उनके लिए, उनके प्रतिनिधित्व के लिए, उनकी सरकार बनाने के लिए, उनका मुख्यमंत्री बनने के लिए- हमेशा याद रखिए- मैं जिंदा हूं. Time brings victory. जीत समय पर होती है.

कौन हैं पुष्पम प्रिया चौधरी: द प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी हैं. जेडीयू के पूर्व MLC विनोद चौधरी की बेटी हैं. 2020 में विज्ञापन देकर सीएम पद के लिए चुनाव में उतरीं थी. 2020 में बिहार की दो विधानसभा सीट से उन्होंने चुनाव लड़ा था. पुष्पम प्रिया इन दोनों सीटों पर पीछे रहीं और हार गईं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने पढ़ाई की है.

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Last Updated : Aug 27, 2024, 11:12 AM IST
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