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पुरखौती मुक्तांगन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जानिए क्यों है छत्तीसगढ़ के लिए खास

भारत की राष्ट्रपति द्रौपद्री मुर्मू छत्तीसगढ़ दौरे पर हैं. इसी कड़ी में राष्ट्रपति पुरखौती मुक्तांगन पहुंची थी.आईए जानते हैं इस जगह की खासियत

Know what is Purkhauti Muktangan
पुरखौती मुक्तांगन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 25, 2024, 7:19 PM IST

रायपुर: यदि आपको छत्तीसगढ़ी संस्कृति और आदिवासी परंपरा को करीब से जानना और देखना है तो इसके लिए नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन से बढ़िया जगह दूसरी नहीं है. आप यहां एक ही जगह पर छत्तीसगढ़ के पुरखों की स्मृतियां और निशानियां देख सकते हैं. सारी चीजें एक ही जगह स्थापित करने के कारण इसे एक ही उद्यान यानी पुरखौती मुक्तांगन कहा गया. करीब 200 एकड़ में फैले इस स्थल की प्राकृतिक छटा अनुपम है.यहां पर आपको छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासियों की संस्कृति,सभ्यता,भाषा,शैली,खानपान, वेशभूषा और जनजीवन को जानने का करीब से मौका मिलेगा.

पुरखौती मुक्तांगन में आकर्षण का केंद्र : पुरखौती मुक्तांगन में कृत्रिम झरना, पहाड़, गांव, खेत-खलिहान, आदिवासी जीवन, पारंपरिक नृत्य शैली को प्रस्तुत करतीं प्रतिमाएं लोगों को अपनी ओर खींचती हैं.यहां प्राकृतिक वातावरण और मनमोहक चीजों को आप नजदीक से देख सकते हैं. परिवार के समय अच्छा समय बीताने के लिए पुरखौती मुक्तांगन सबसे अच्छी जगह है.

कब बना पुरखौती मुक्तांगन : छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद 7 नवंबर 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने रायपुर के उपरवारा गांव में संग्रहालय का उद्घाटन किया था. मुक्तांगन कैंपस में छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर का छोटा प्रतिरूप, बस्तर के प्रसिद्ध शक्तिपीठ दंतेश्वरी मंदिर, चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर की पहाड़ी पर स्थित ढोलकल गणेश प्रतिमा, ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का रथ प्रतिरूप भी बनाया गया है. यहां खुले आंगन में करीब पांच एकड़ में आमचो बस्तर यानी हमारा बस्तर है. जहां छत्तीसगढ़ की लोककला, लोकनृत्य की झलक दिखाई गई है. विशेषकर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पंथी नृत्य, आदिवासी नृत्य, सुआ नृत्य, राउत नृत्य,नाचा, गेड़ी नृत्य करते हुए कलाकारों की प्रतिमाएं मन मोह लेती हैं.

छत्तीसगढ़ी हाट,देवगुड़ी : मुक्तांगन परिसर का भव्य प्रवेश द्वार, मड़ियापाट, बैगा चौक, देवगुड़ी, छत्तीसगढ़ हाट गार्डन के बीच फव्वारे, बच्चों के लिए झूले समेत मनोरंजन के अनेक साधन पर्यटकों को लुभाते हैं.

लौह एवं काष्ठ शिल्प का अद्भुत संगम : बस्तर के कलाकारों की ओर से लोहा एवं दूसरी धातुओं के अलावा सागौन, शीशम की लकड़ी से बनाई गई कलाकृतियां और हजारों साल पुरानी भित्ति चित्रकला से मुक्तांगन परिसर की खूबसूरती निखरी है.

राज्य की महत्वाकांक्षी योजना : मुक्तांगन को साल 2020 में राज्य के महत्वाकांक्षी योजना में शामिल किया गया है. मुक्तांगन परिसर का भ्रमण करके संपूर्ण छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अवलोकन किया जा सकता है.साथी ही शहीद वीरनारायण सिंह स्मारक और संग्रहालय का भी निर्माण किया गया है.जिसमें आदिवासी समाज के इतिहास, देश की आजादी में उनका योगदान, लोक कला और छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा गया है.

कितना है प्रवेश शुल्क : मुक्तांगन परिसर देखने के लिए तीन से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए 20 रुपये और 12 वर्ष से अधिक के लिए 30 रुपये शुल्क निर्धारित है.कैमरा शुल्क 100 रुपये और प्री वेडिंग शूटिंग करने के लिए 1500 रुपए लिए जाते हैं. डाक्यूमेंट्री और फिल्म की शूटिंग करने के लिए पांच हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं. राष्ट्रीय पर्व और खास मौकों पर सरकार की ओर से निशुल्क प्रवेश देने की घोषणा भी की जाती है. सप्ताह में एक दिन सोमवार को मुक्तांगन परिसर को बंद रखा जाता है.

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रायपुर: यदि आपको छत्तीसगढ़ी संस्कृति और आदिवासी परंपरा को करीब से जानना और देखना है तो इसके लिए नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन से बढ़िया जगह दूसरी नहीं है. आप यहां एक ही जगह पर छत्तीसगढ़ के पुरखों की स्मृतियां और निशानियां देख सकते हैं. सारी चीजें एक ही जगह स्थापित करने के कारण इसे एक ही उद्यान यानी पुरखौती मुक्तांगन कहा गया. करीब 200 एकड़ में फैले इस स्थल की प्राकृतिक छटा अनुपम है.यहां पर आपको छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासियों की संस्कृति,सभ्यता,भाषा,शैली,खानपान, वेशभूषा और जनजीवन को जानने का करीब से मौका मिलेगा.

पुरखौती मुक्तांगन में आकर्षण का केंद्र : पुरखौती मुक्तांगन में कृत्रिम झरना, पहाड़, गांव, खेत-खलिहान, आदिवासी जीवन, पारंपरिक नृत्य शैली को प्रस्तुत करतीं प्रतिमाएं लोगों को अपनी ओर खींचती हैं.यहां प्राकृतिक वातावरण और मनमोहक चीजों को आप नजदीक से देख सकते हैं. परिवार के समय अच्छा समय बीताने के लिए पुरखौती मुक्तांगन सबसे अच्छी जगह है.

कब बना पुरखौती मुक्तांगन : छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद 7 नवंबर 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने रायपुर के उपरवारा गांव में संग्रहालय का उद्घाटन किया था. मुक्तांगन कैंपस में छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर का छोटा प्रतिरूप, बस्तर के प्रसिद्ध शक्तिपीठ दंतेश्वरी मंदिर, चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर की पहाड़ी पर स्थित ढोलकल गणेश प्रतिमा, ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का रथ प्रतिरूप भी बनाया गया है. यहां खुले आंगन में करीब पांच एकड़ में आमचो बस्तर यानी हमारा बस्तर है. जहां छत्तीसगढ़ की लोककला, लोकनृत्य की झलक दिखाई गई है. विशेषकर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पंथी नृत्य, आदिवासी नृत्य, सुआ नृत्य, राउत नृत्य,नाचा, गेड़ी नृत्य करते हुए कलाकारों की प्रतिमाएं मन मोह लेती हैं.

छत्तीसगढ़ी हाट,देवगुड़ी : मुक्तांगन परिसर का भव्य प्रवेश द्वार, मड़ियापाट, बैगा चौक, देवगुड़ी, छत्तीसगढ़ हाट गार्डन के बीच फव्वारे, बच्चों के लिए झूले समेत मनोरंजन के अनेक साधन पर्यटकों को लुभाते हैं.

लौह एवं काष्ठ शिल्प का अद्भुत संगम : बस्तर के कलाकारों की ओर से लोहा एवं दूसरी धातुओं के अलावा सागौन, शीशम की लकड़ी से बनाई गई कलाकृतियां और हजारों साल पुरानी भित्ति चित्रकला से मुक्तांगन परिसर की खूबसूरती निखरी है.

राज्य की महत्वाकांक्षी योजना : मुक्तांगन को साल 2020 में राज्य के महत्वाकांक्षी योजना में शामिल किया गया है. मुक्तांगन परिसर का भ्रमण करके संपूर्ण छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अवलोकन किया जा सकता है.साथी ही शहीद वीरनारायण सिंह स्मारक और संग्रहालय का भी निर्माण किया गया है.जिसमें आदिवासी समाज के इतिहास, देश की आजादी में उनका योगदान, लोक कला और छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा गया है.

कितना है प्रवेश शुल्क : मुक्तांगन परिसर देखने के लिए तीन से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए 20 रुपये और 12 वर्ष से अधिक के लिए 30 रुपये शुल्क निर्धारित है.कैमरा शुल्क 100 रुपये और प्री वेडिंग शूटिंग करने के लिए 1500 रुपए लिए जाते हैं. डाक्यूमेंट्री और फिल्म की शूटिंग करने के लिए पांच हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं. राष्ट्रीय पर्व और खास मौकों पर सरकार की ओर से निशुल्क प्रवेश देने की घोषणा भी की जाती है. सप्ताह में एक दिन सोमवार को मुक्तांगन परिसर को बंद रखा जाता है.

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