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हाई कोर्ट ने सैनिक की मौत के 24 साल बाद पत्नी को वित्तीय सहायता देने का दिया आदेश, राज्य सरकार ने वर्ष 2000 में किया था इंकार - Punjab Haryana High Court

Punjab Haryana High Court: सैनिक की मौत के बाद परिजनों को वित्तीय सहायता ना मामले के मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.

Punjab Haryana High Court
Punjab Haryana High Court (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 8, 2024, 5:47 PM IST

चंडीगढ़: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर हरियाणा के किसी सैनिक की ड्यूटी के दौरान मौत होती है, तो उसके परिवार को राज्य की नीति के अनुसार अनुग्रह राशि देने से इनकार नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट ने ये आदेश राज्य सैनिक कल्याण बोर्ड को एक सैनिक परिवार को अनुग्रह राशि देने पर फैसला सुनाते हुए दिया है. कोर्ट ने हरियाणा सरकार को तीन महीने के भीतर विधवा को सभी लाभ जारी करने का आदेश भी दिया है.

हरियाणा के अधिकारियों ने स्पष्टीकरण का दिया हवाला: हाई कोर्ट ने कहा कि सैनिक की मृत्यु अक्टूबर 2000 में गोरीचेन शिखर से अरुणाचल प्रदेश के शिविर में लौटते समय हुई थी. राज्य के 30 सितंबर 1999 के निर्देशों के अनुसार परिवार को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिलनी चाहिए थी, क्योंकि सैनिक की ड्यूटी के दौरान मौत हुई थी. जबकि हरियाणा के अधिकारियों ने 7 नवंबर 2001 के बाद के स्पष्टीकरण का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया था. अब हाई कोर्ट ने कहा है कि स्पष्टीकरण की आड़ में ऐसे लाभों को पूर्वव्यापी रूप से अस्वीकार नहीं किया जा सकता.

गुरुग्राम का है सैनिक परिवार: जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने हरियाणा के जिला गुरुग्राम निवासी जगरोशिनी देवी की याचिका स्वीकार करते हुए ये आदेश पारित किए हैं. याचिकाकर्ता जगरोशिनी देवी ने 24 मार्च 2017 को हरियाणा राज्य सैनिक बोर्ड के सचिव द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी. इसमें अनुग्रह राशि (वित्तीय सहायता) देने के उनके दावे को खारिज कर दिया गया था. याचिकाकर्ता के पति 8 मराठा लाइट इन्फेंट्री में सेवारत नायक भागीरथ की मृत्यु 23 अक्टूबर 2000 को गोरीचेन शिखर से शिविर में लौटते समय हुई थी. उनकी मृत्यु को आपरेशन फाल्कन में युद्ध हताहत के रूप में मानने का आदेश दिया गया था.

मृत्यु का कारण युद्ध में शहादत: सेना द्वारा मृत्यु के कारण बारे जारी एक प्रमाण पत्र में प्रमाणित किया गया था कि भागीरथ युद्ध में मारे गए थे. सेना ने उन्हें युद्ध हताहतों को दिए जाने वाले सभी प्रकार के लाभ जारी किए थे. लेकिन हरियाणा सरकार ने अपनी नीति के अनुसार उन्हें 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने से इनकार कर दिया था. इस नीति के अनुसार ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले सैनिकों को ये राशि दी जाती है. हरियाणा सरकार ने 30 सितंबर 1999 के निर्देशों और 7 नवंबर 2001 के स्पष्टीकरण के अनुसार युद्ध नायकों के बलिदान के लिए लाभ प्रदान करने का तर्क दिया था.

मृत्यु के बाद नियम में संशोधन किया: हरियाणा सरकार ने कहा था कि याचिकाकर्ता के पति का मामला राज्य की नीति के अंतर्गत नहीं आता. बताया गया कि सैनिक की मृत्यु अरुणाचल प्रदेश में गोरीचेन पर्वतारोहण अभियान दल के सदस्य के रूप में शिखर से कैंप-2 पर लौटते समय गोरीचेन चोटी से गिरने के कारण हुई थी, ना कि किसी सैन्य अभियान में. राज्य के इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि राज्य द्वारा 30 सितंबर 1999 को अधिसूचित अनुग्रह सहायता के लिए प्रारंभिक नीति के अनुसार (23 अक्टूबर 2000) को लागू थी. उस समय सैनिक भागीरथ की मृत्यु हुई थी, जोकि वित्तीय सहायता के हकदार थे. हालांकि बाद में 7 नवंबर 2001 के एक स्पष्टीकरण के माध्यम से नियम में संशोधन किया गया, जोकि स्पष्टीकरणात्मक है.

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार का फैसला गलत ठहराया: याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उक्त स्पष्टीकरण 30 सितंबर 1999 की नीति से युद्ध हताहतों और युद्ध दुर्घटनाओं को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के नुकसान को बाहर करता है. सभी पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने माना कि 7 नवंबर 2001 के बाद के स्पष्टीकरण पर भरोसा कर 30 सितंबर 1999 के निर्देशों के अनुसार अनुग्रह मुआवजा अस्वीकार करने का फैसला गलत था.

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चंडीगढ़: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर हरियाणा के किसी सैनिक की ड्यूटी के दौरान मौत होती है, तो उसके परिवार को राज्य की नीति के अनुसार अनुग्रह राशि देने से इनकार नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट ने ये आदेश राज्य सैनिक कल्याण बोर्ड को एक सैनिक परिवार को अनुग्रह राशि देने पर फैसला सुनाते हुए दिया है. कोर्ट ने हरियाणा सरकार को तीन महीने के भीतर विधवा को सभी लाभ जारी करने का आदेश भी दिया है.

हरियाणा के अधिकारियों ने स्पष्टीकरण का दिया हवाला: हाई कोर्ट ने कहा कि सैनिक की मृत्यु अक्टूबर 2000 में गोरीचेन शिखर से अरुणाचल प्रदेश के शिविर में लौटते समय हुई थी. राज्य के 30 सितंबर 1999 के निर्देशों के अनुसार परिवार को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिलनी चाहिए थी, क्योंकि सैनिक की ड्यूटी के दौरान मौत हुई थी. जबकि हरियाणा के अधिकारियों ने 7 नवंबर 2001 के बाद के स्पष्टीकरण का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया था. अब हाई कोर्ट ने कहा है कि स्पष्टीकरण की आड़ में ऐसे लाभों को पूर्वव्यापी रूप से अस्वीकार नहीं किया जा सकता.

गुरुग्राम का है सैनिक परिवार: जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने हरियाणा के जिला गुरुग्राम निवासी जगरोशिनी देवी की याचिका स्वीकार करते हुए ये आदेश पारित किए हैं. याचिकाकर्ता जगरोशिनी देवी ने 24 मार्च 2017 को हरियाणा राज्य सैनिक बोर्ड के सचिव द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी. इसमें अनुग्रह राशि (वित्तीय सहायता) देने के उनके दावे को खारिज कर दिया गया था. याचिकाकर्ता के पति 8 मराठा लाइट इन्फेंट्री में सेवारत नायक भागीरथ की मृत्यु 23 अक्टूबर 2000 को गोरीचेन शिखर से शिविर में लौटते समय हुई थी. उनकी मृत्यु को आपरेशन फाल्कन में युद्ध हताहत के रूप में मानने का आदेश दिया गया था.

मृत्यु का कारण युद्ध में शहादत: सेना द्वारा मृत्यु के कारण बारे जारी एक प्रमाण पत्र में प्रमाणित किया गया था कि भागीरथ युद्ध में मारे गए थे. सेना ने उन्हें युद्ध हताहतों को दिए जाने वाले सभी प्रकार के लाभ जारी किए थे. लेकिन हरियाणा सरकार ने अपनी नीति के अनुसार उन्हें 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने से इनकार कर दिया था. इस नीति के अनुसार ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले सैनिकों को ये राशि दी जाती है. हरियाणा सरकार ने 30 सितंबर 1999 के निर्देशों और 7 नवंबर 2001 के स्पष्टीकरण के अनुसार युद्ध नायकों के बलिदान के लिए लाभ प्रदान करने का तर्क दिया था.

मृत्यु के बाद नियम में संशोधन किया: हरियाणा सरकार ने कहा था कि याचिकाकर्ता के पति का मामला राज्य की नीति के अंतर्गत नहीं आता. बताया गया कि सैनिक की मृत्यु अरुणाचल प्रदेश में गोरीचेन पर्वतारोहण अभियान दल के सदस्य के रूप में शिखर से कैंप-2 पर लौटते समय गोरीचेन चोटी से गिरने के कारण हुई थी, ना कि किसी सैन्य अभियान में. राज्य के इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि राज्य द्वारा 30 सितंबर 1999 को अधिसूचित अनुग्रह सहायता के लिए प्रारंभिक नीति के अनुसार (23 अक्टूबर 2000) को लागू थी. उस समय सैनिक भागीरथ की मृत्यु हुई थी, जोकि वित्तीय सहायता के हकदार थे. हालांकि बाद में 7 नवंबर 2001 के एक स्पष्टीकरण के माध्यम से नियम में संशोधन किया गया, जोकि स्पष्टीकरणात्मक है.

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार का फैसला गलत ठहराया: याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उक्त स्पष्टीकरण 30 सितंबर 1999 की नीति से युद्ध हताहतों और युद्ध दुर्घटनाओं को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के नुकसान को बाहर करता है. सभी पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने माना कि 7 नवंबर 2001 के बाद के स्पष्टीकरण पर भरोसा कर 30 सितंबर 1999 के निर्देशों के अनुसार अनुग्रह मुआवजा अस्वीकार करने का फैसला गलत था.

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