कोटा/बारां: राजस्थान के बारां जिले के शाहबाद एरिया में पंप स्टोरेज प्लांट स्वीकृत हुआ है और इसे एक निजी कंपनी के जरिए सरकार लगवा रही है. राजस्थान सरकार ने बने वह पर्यावरण स्वीकृति के लिए से भेजा था, जिसकी स्वीकृति के साथ ही प्रारंभिक अनुमति भी केंद्र सरकार से मिल गई है. जिसके बाद इसका निर्माण शुरू होना है. हालांकि, इसके निर्माण में करीब 1 लाख पेड़ काटने की बात वन्य जीव प्रेमी कर रहे हैं और इस बात से आपत्ति भी जता रहे हैं. हम आपको बताते हैं कि क्या होता है पंप स्टोरेज प्लांट और किस तरह से होता है यहां पर बिजली का उत्पादन?
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के सहायक अभियंता शिव प्रसाद शर्मा का कहना है कि पंप स्टोरेज प्लांट भी एक तरह के हाइड्रो पावर प्लांट होते हैं, जिन्हें पनबिजली घर भी कहा जाता है. यहां पर पानी के जरिए बिजली का उत्पादन किया जाता है, लेकिन सामान्य तौर पर भारत में जितने पनबिजली घर पहले स्थापित किए गए थे. वे नदियों या डैम पर स्थापित थे. जहां पर डैम से पानी छोड़ने पर पानी का उत्पादन टरबाइन के जरिए किया जाता था, यह बिजली घर पूरी तरह से सस्ती बिजली उत्पन्न कर रहे हैं. राजस्थान में बूंदी जिले के जवाहर सागर और चित्तौड़गढ़ के रावतभाटा में स्थापित दो पनबिजली घरों से महज 22 से 25 पैसे प्रति यूनिट बिजली उत्पादन हो रहा है.
यूरोपियन कंट्री से शुरुआत, दक्षिण भारत में कई प्लांट लगे : शिव प्रसाद शर्मा का कहना है कि पंप स्टोरेज प्लांट हाइड्रो पावर प्लांट का ही अपग्रेडेशन कहा जा सकता है, जिनमें पहले पानी को पहाड़ी या फिर ऊंचाई के स्थान पर चढ़ा दिया जाता है. वहां से पानी को दोबारा नीचे गिर कर बिजली का उत्पादन हाइड्रो पावर प्लांट की टरबाइन चलकर किया जाता है. शिव प्रसाद का कहना है कि पहले यूरोपियन कंट्री में इस तरह के पावर प्लांट काफी संख्या में स्थापित किए गए. इसके बाद दक्षिणी भारत में भी इस तरह के पावर प्लांट लगाए गए हैं और अब राजस्थान में भी सरकार ने कई साइट इसके लिए चिह्नित की है, जहां पर यह पावर प्लांट लगाए जाने हैं.
100 मेगावाट के पावर प्लांट में रोज खर्च होती है 125 मेगावाट बिजली : शिव प्रसाद का कहना है कि डीएसपी प्लांट में दो रिजर्वायर पानी के लिए बनाए जाते हैं, जिनमें एक ऊपर पहाड़ी या ऊंचाई पर स्थित होता है. वहीं, दूसरा नीचे स्थित होता है. पीएसपी प्लांट में पंपिंग के जरिए पानी को ऊपर स्थित रिजर्व वायर में पहुंचाया जाता है. हालांकि, पानी चढ़ाना काफी महंगा सौदा हो सकता है, क्योंकि 100 मेगावाट के प्लांट में पानी चढ़ाने के लिए 125 मेगावाट के आसपास बिजली की खपत होती है. हालांकि, पानी को ऊपर ऑफ पीक ऑवर में ही चढ़ाया जाता है, जबकि बिजली का उत्पादन जब ज्यादा डिमांड होती है और पीक ऑवर में ही किया जाता है. इन दोनों समय में बिजली खरीद के दाम में काफी अंतर होता है. इसीलिए यह पीएसपी प्लांट मुनाफे का सौदा हो जाते हैं.
सस्ती और महंगी के फेर का अंतर : अधिकारियों के अनुसार सोलर और विंड के अलावा अन्य तरीके से भी सस्ती बिजली दोपहर के समय उपलब्ध होती है. इसीलिए इन्हें ऑफ पीक ऑवर बोला जाता है. बिजली को स्टोर नहीं किया जा सकता है. इसीलिए दोपहर में ज्यादा उत्पादन होता है. ऐसे में दोपहर के समय यह सस्ती हो जाती है. यहां तक कि घर में लगे सोलर के अलावा अधिकांश जगहों पर बिजली 2.5 प्रति यूनिट के अनुसार ही उपलब्ध होती है, जबकि सुबह 6 से 10 और शाम को भी 6 से 10 के बीच बिजली का उत्पादन कम हो जाता है, क्योंकि सोलर से बिजली उत्पादन नहीं रहता.
इसी समय डिमांड भी बढ़ जाती है. ऐसे में इस समय पर गैस, परमाणु, कोयला व अन्य पावर प्लांट से ही बिजली उपलब्ध होती है. ऐसे में यह बिजली महंगी भी पड़ती है, जिसके अनुसार ही कुछ माह में तो पावर परचेज ऑर्डर के अनुसार यह 12 से 16 रुपए प्रति यूनिट तक भी पहुंच जाती है. इसी का निदान करने के लिए सस्ती बिजली से पंप स्टोरेज को फुल कर दिया जाता है और जब महंगी बिजली हो तब उत्पादन करने का काम ही पीएसपी प्लांट का है.