सागर: वैज्ञानिक के तौर पर बात करें, तो प्रबोध कुमार दुनिया के प्रमुख मानव विज्ञानियों में जाने जाते थे. एक साहित्यकार के तौर पर बात करें, तो साहित्य की इतनी समृद्ध विरासत मिली थी कि प्रेमचंद जैसे महान कहानीकार उनके नाना थे, जिनकी विरासत को उन्होंने साहित्य रचना के जरिए आगे बढ़ाया. मुंशी प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार का जन्म 8 जनवरी 1935 को हुआ था. उनका सागर यूनिवर्सिटी से गहरा नाता था, क्योंकि उनकी शिक्षा-दीक्षा यहीं हुई थी. उनके पिता सागर में वकालत करते थे. सागर यूनिवर्सिटी में मानव विज्ञान में अध्ययन करने के बाद यहां पढ़ाया और विभागाध्यक्ष भी रहे.
उन्होंने आस्ट्रैलिया, पोलेंड और जर्मनी में मानव विज्ञान का अध्यापन किया और फिर कोलकाता आकर बस गए. कोलकाता से निकली महान कहानीकार बेबी हलदार की प्रेरणा प्रबोध कुमार ही थे. दरअसल, बेबी हलदार घरों में काम करने वाली निम्न मध्यमवर्ग की महिला थी. जिनके पढ़ने-लिखने की रूचि देखकर प्रबोध कुमार ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने अपनी आत्मकथा आलो अंधारी लिखी. जो दुनिया भर में मशहूर हुई और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ.
प्रबोध कुमार का सागर से नाता
प्रबोध कुमार को उनकी जयंती के अवसर पर याद करने का अवसर है. बुंदेलखंड से उनका गहरा नाता था. प्रबोध कुमार का मूल गृह सागर के देवरी कस्बे में हैं. इनकी साहित्यिक विरासत बहुत बड़ी है. ये प्रेमचंद की बेटी कमला के बेटे थे. दरअसल, प्रेमचंद की बेटी कमला का विवाह देवरी के बडे़ मालगुजार परिवार में हुआ था. उनके पति वासुदेव प्रसाद बडे़ वकील थे और सागर की वकालत की दुनिया में बड़ा नाम था. बाद के दिनों में सागर शहर के सिविल लाइन इलाके में बस गए थे.
8 जनवरी 1935 में प्रबोध कुमार का जन्म हुआ. प्रबोध कुमार के नाना प्रेमचंद थे, इसलिए साहित्यिक विरासत और संवेदना की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि प्रबोध कुमार के पास थी. जाहिर सी बात है कि वो सागर में पले बढे़, सागर यूनिवर्सटी में उन्होंने पढ़ाई की. यहां के मानव विज्ञान विभाग में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और विभागाध्यक्ष भी बने. बाद में भारत से बाहर आस्ट्रेलिया के कैनबरा,पोलैंड की वारसा और जर्मनी की दो यूनिवर्सटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे. साहित्यकार के तौर पर कहानी, कल्पना, कृति और वसुधा जैसी पत्रिकाओं में उनकी कहानियों का प्रकाशन हुआ. उन्होंने बेबी हालदार की आत्मकथा आलो अंधारी का हिंदी अनुवाद किया.
प्रबोध कुमार की बेबी हलदार से मुलाकात
बेबी हलदार की बात करें, तो साहित्य जगत के लिए वो परिचय की मोहताज नहीं हैं. बेबी हालदार की आत्मकथा 'आलो अंधारी' दुनिया भर में चर्चित हुई थी. साहित्य जगत को उन्होंने एक तरह से हिला कर रख दिया था कि घरेलू कामकाज करने वाली महिला कैसे साहित्यकार बन सकती है. जो कम पढ़ी लिखी हो और जिसका सारा जीवन संघर्ष में बीता हो. सागर यूनिवर्सटी के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डाॅ आशुतोष बताते हैं कि "प्रबोध की कोलकाता में रहने के दौरान बेबी हालदार से मुलाकात हुई. बेबी हालदार कोलकाता के पिछडे़ इलाके की रहने वाली महिला थी. 13 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया. जैसा कि अशिक्षा और गरीबी के कारण होता है.
वे बहुत कम उम्र में कई तरह की समस्याओं में जकड़ती चली गयी। एक बार सबकुछ छोडकर कोलकाता में आ गयी और लोगों के घरों में घरेलू सहायिका के तौर कामकाज करने लगी। इसी सिलसिले में प्रबोध कुमार के यहां काम करने लगी. उनकी पढ़ाई लिखाई बंगला में थी और उन्होंने 5वीं या 7वीं तक पढ़ाई की थी. बोल अच्छा लेती थी, लेकिन लिखना पढ़ना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि पढ़ाई उनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य नहीं था, उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती जीवन यापन था.
प्रबोध कुमार ने पहचानी बेबी हलदार की लगन
बेबी हलदार जब प्रबोध कुमार के यहां काम करने आती थी, तो जहां उनकी किताबें और लाइब्रेरी थी, वो वहां काफी देर तक सफाई करती रहती थी. जब प्रबोध कुमार ने इस बात पर ध्यान दिया, तो उनको जानने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने देखा कि वो किताबों को बड़ी हसरत से देखती हैं. पढ़ने लिखने को बड़ा ध्यान देती हैं. डाॅ आशुतोष बताते हैं कि "प्रबोध कुमार कोई सामान्य व्यक्ति तो थे नहीं, उनको जो साहित्यिक संवेदना विरासत में मिली थी. उसी पृष्ठभूमि के चलते उन्होंने पहचान लिया और बेबी हलदार को प्रेरित किया कि तुम कुछ लिखो. बेबी हलदार के सामने सवाल था कि क्या लिखूं, मुझे क्या आता है.
प्रबोध कुमार ने कहा कि आप अपनी कहानी लिखो,अपने जीवन को लिखो. बेबी हलदार के सामने समस्या थी कि ऐसा जीवन जिसमें सिवाय दुख और संघर्ष के कुछ नहीं है, तो क्या लिंखू. उन्हें लिखना नहीं आता था, लिखने की शैली भी नहीं आती थी. तो प्रबोध कुमार ने कहा कि आपको जैसा आता है, वैसा लिखो."
प्रबोध कुमार की प्रेरणा से मिसाल बनी बेबी हलदार
डाॅ आशुतोष बताते हैं कि "प्रबोध कुमार की प्रेरणा भारतीय साहित्य में एक मिसाल बन गयी. बेबी हलदार लिखने लगी और उनका जीवन बदलने लगा. धीरे-धीरे उन्होंने बांग्ला में अपनी शैली में लिखा. कोई साहित्यिक कौशल और कोई कलात्मकता ढंग नही है, लेकिन कहते हैं कि सादगी और सहजता अपने वैभव पर उतरती है, तो उससे बड़ा शास्त्रीय और क्लासिक कुछ नहीं हो सकता है, फिर बांग्ला में आलो अंधारी नाम से किताब छपी. प्रबोध कुमार ने उसका हिंदी अनुवाद किया.
प्रबोध कुमार के योगदान को देखकर पूरी दुनिया भौचक रह गयी. उन्होंने अचानक से भारतीय साहित्य को बड़ी सहज, विनम्र और विश्वसनीय लेखिका दे दी. यहीं से बेबी हलदार का पूरा जीवन संघर्ष खत्म हो गया. उनकी आत्मकथा कई भाषाओं में अनुवादित हुई. उन पर यूनेस्को ने ध्यान दिया, कई डाक्यूमेंट्री फिल्में बनी. भारत या एशिया या विकासशील देशों की निम्न मध्यम वर्ग की तमाम महिलाओं को बेबी हलदार रोशनी बन गयी.
मजेदार बात ये है कि प्रबोध कुमार के इस कार्य के बारे में प्रबोध कुमार ने कभी कुछ नहीं कहा, जो कुछ कहा अपनी आत्मकथा में बेबी हलदार ने कहा. एक ऐसा आदमी जिसने जीवन बदल दिया, समय बदल दिया। लेकिन इस बदलाव को लेकर कोई महत्वाकांक्षा नहीं कि लोग हमको जाने. ये तो बेबी हलदार ने बताया कि ये पूरी आत्मकथा किसकी प्रेरणा से लिखी. फिर उस विरासत को याद किया, जो प्रेमचंद की विरासत है, बदलाव की विरासत है."