इंदौर. उज्जैन के ग्राम जस्तीखेड़ी निवासी संदीप पाटीदार की गर्भवती पत्नी को हाई ब्लड प्रेशर के कारण 6 माह में ही ब्लीडिंग होने लगी थी. जब महिला की सोनोग्राफी कराई गई तो पता चला कि गर्भ में खून का थक्का जमा हुआ है, जिसके कारण ब्लीडिंग हो रही है. इस स्थिति में बच्चे को बचाना मुश्किल था और गर्भपात भी करना पड़ सकता था, लिहाजा संदीप और उसकी पत्नी इंदौर पहुंचे और महज 7 माह में बच्चे की चुनौतीपूर्ण डिलीवरी करानी पड़ी. लेकिन उस दौरान बच्चे का वजन महज 650 ग्राम था और ऐसे में उसका बच पाना मुश्किल था.
बच्चे का बच पाना था मुश्किल
इस चुनौतीपूर्ण डिलीवरी के लिए अस्पताल में डॉक्टर कनक प्रिया तिवारी ने महिला का परीक्षण किया. पता चला कि बच्चा गर्भ में उल्टा था और उसका वजन आश्चर्यजनक रूप से कम था. इसके बावजूद डॉ. कनक तिवारी, डॉ. बृजबाला तिवारी और डॉ. विनीता अग्रवाल की टीम ने इसे चुनौती के रूप में लेकर बच्चों की जान बचाने के मां और परिजनों की काउंसलिंग की. जब परिजन ऑपरेशन के लिए सहमत हो गए तो उन्होंने इलाज शुरू किया. कुछ विशेष इंजेक्शन लगाने के बाद किसी तरह बच्चे की डिलीवरी कराई गई.
Read more - नॉर्मल डिलीवरी के दौरान फंसने से नवजात की मौत, शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में परिजनों का हंगामा |
40 दिन में बच्चे ने जीती जिंदगी की जंग
महज 700 ग्राम वजन के इस बच्चे की डॉक्टर्स ने सफल डिलीवरी करा ली थी. लेकिन दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बच्चे को जीवित रखने की थी. NICU यूनिट में बच्चे को लगातार ऑक्सिजन देने के साथ संक्रमण से पूरी तरह दूर रखा गया. उसका हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स कम होने के कारण रक्त संबंधी मापदंडों की पूरी निगरानी की गई. वहीं सोनोग्राफी, ईको कार्डियोग्राफी कर गहन चिकित्सा इकाई में बच्चे को सही तापमान में रखते हुए उसे विकसित करने के पूरे प्रयास किए गए. आखिरकार 40 दिनों के बाद न केवल बच्चों का वजन अब 1 किलो 50 ग्राम तक पहुंच गया है वहीं पूर्व की तुलना में वह स्वस्थ भी है.