लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए, प्रदेश में इलेक्ट्रो होम्योपैथी के प्रैक्टिस की मंजूरी दी है. न्यायालय ने कहा कि चूंकि प्रदेश में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस को किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है लिहाजा याचियों के मेडिकल के इस विधा में प्रैक्टिस करने में हस्तक्षेप न किया जाए, जब तक कि इस सम्बंध में नियम न बना लिए जाएं। हालांकि न्यायालय ने यह शर्त भी अधिरोपित की है कि प्रैक्टिश्नर याचीगण अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ शब्द नहीं लगाएंगे.
यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने राजेश कुमार व अन्य की ओर से वर्ष 2009 में दाखिल याचिका पर पारित किया है. याचिका में 25 नवंबर 2003 के केंद्र सरकार के व 1 जून 2004 का राज्य सरकार के शासनादेशों को चुनौती दी गई थी. याचियों की ओर से 5 मई 2010 का स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार का एक आदेश पेश किया गया जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि केंद्र सरकार का 25 नवंबर 2003 का शासनादेश इलेक्ट्रो होम्योपैथी के रिसर्च को प्रतिबंधित नहीं करता और न ही इसके प्रैक्टिस को रोकने का कोई प्रस्ताव है.
कहा गया है कि याचियों ने काउंट मैती एसोसिएशन से इलेक्ट्रो होम्योपैथ की प्रैक्टिस का सर्टिफिकेट प्राप्त किया है, उक्त सर्टिफिकेट के साथ याची पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व केरल आदि प्रदेशों में प्रैक्टिस कर सकते हैं. वहीं, राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि इस विधा के तहत प्रैक्टिस के लिए नियम बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है, यदि केंद्र नियम बनाता है तो राज्य सरकार उसका अनुपालन करेगी. सभी पक्षों की बहस सुनने के उपरांत न्यायालय ने याचिका को निस्तारित करते हुए, ‘डॉक्टर’ शब्द का अपने नाम के सतह इस्तेमाल न करने की शर्त पर याचियों को इलेक्ट्रो होम्योपैथी के प्रैक्टिस की मंजूरी दे दी.
इलेक्ट्रो होम्योपैथी क्या होती है?
यह एक वनस्पतियों पर आधारित चिकित्सा विज्ञान है. भारत में इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता नहीं है. यह चिकित्सा पद्धति 1865 में इटली में डॉ.काउंट सीज़र मेटी ने खोजी थी. इसमें पेड़ पौधों के रस से चिकित्सा की जाती है.