गोरखपुर : शहर की जान बन चुके रामगढ़ ताल का पानी प्रदूषित हो रहा है. यह जलीय जीव के लिए खतरा बन रहा है. पिछले दिनों ताल में हुई मछलियों की मौत के बाद जांच की गई तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह तथ्य उजागर किए हैं. सीएम के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर इतनी बड़ी लापरवाही एक छोटी सी घटना से उजागर हुई है, जोकि पर्यटकों का सबसे बड़ा केंद्र है.
रामगढ़ ताल में प्रदूषण का यह मामला तब उजागर हुआ है जब 29 जून को तालाब के किनारे मछलियां मरी हुई बरामद हुईं. मछलियों की मौत का कारण जानने के लिए गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, गोरखपुर कार्यालय को जांच सौंपी. जिसकी रिपोर्ट शुक्रवार को आने के बाद यह पता चला कि ऑक्सीजन की कमी मछलियों की मौत का प्रमुख कारण है.
ऑक्सीजन की कमी की यह रही वजह : प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गोरखपुर विकास प्राधिकरण को जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें रामगढ़ ताल के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम है. जिसकी वजह से मछलियों की मौत हुई. रिपोर्ट में कहा गया है कि ताल में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी (बीओडी) एवं केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) की मात्रा मानक से अधिक पाई गई है, जो मछलियों के लिए बेहद हानिकारक है.
इसके अलावा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिसके तहत शहर का जो पानी तालाब में गिर रहा है, उसका शोधन जरूरी है. डीजल-पेट्रोल द्वारा संचालित मोटर बोट से तेल रिसाव होने की दशा में भी ताल का पानी दूषित हो रहा है, जो जलीय जीव के लिए बेहद नुकसानदायक है. इसके अतिरिक्त रामगढ़ ताल के जलस्तर को नियंत्रित करने के लिए भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए.
पानी में बीओडी और सीओडी की मात्राः गोरखपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो. डीके सिंह ने बताया कि तापमान के बढ़ने के कारण भी पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटती है. मछलियों के मरने का यह भी कारण हो सकता है. तालाब के जल शोधन पर भी कार्य होना चाहिए. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक एके वर्मा ने कहा कि इस वक्त बिछिया स्थित गोड़धोइया नाला पर कार्य चल रहा है. जिसका गन्दा पानी भी डायवर्ट होकर लगातार रामगढ़ ताल में गिर रहा है. यह भी एक बड़ा कारण है. हालांकि प्रदूषण को रोकने के लिए जीडीए द्वारा पहले से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, बावजूद इसके तालाब का जल पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाया है. उन्होंने बताया कि ताल में अलग-अलग स्थान पर बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) और सीओडी (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) 2.8 से 3.8 मिलीग्राम तक पाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, बीओडी तीन और सीओडी दस मिलीग्राम होना चाहिए.
जीडीए उपाध्यक्ष आनंद वर्धन सिंह का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट में पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम बताई गई है. उनकी तरफ से कई सुझाव भी दिए गए हैं, हालांकि जहां तक सफाई की बात है तो हम इसको लेकर पहले से ही सजग हैं. इसको लेकर कई योजनाएं और अभियान चलाए जाते रहते हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले पर्यटकों पर नजर रखी जाएगी. जिससे, आसपास कूड़ा न फेंका जाए. इस पर प्रतिबंध रहेगा. इसके अलावा बाहर का पानी जो तालाब में गिर रहा है, उसे नियंत्रित करने के साथ ही इसका शोधन भी किया जाएगा. गोड़धोइया नाला निर्माण परियोजना से इसमें गन्दगी आने की बात की जाए तो उसमें भी सीटीपी का निर्माण भी हो रहा है.