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नक्सलियों के गढ़ में पहली बार बनेंगे मतदान केंद्र, वोटिंग के लिए लोगों को नहीं करना होगा 15 से 20 किलोमीटर का सफर - 2024 के लोकसभा चुनाव

Polling stations in Naxal Belt. 2024 के लोकसभा चुनाव में कई मतदान केंद्र नक्सलियों के गढ़ में बनाए जाएंगे. बूढ़ा पहाड़ और बिहार से सटे हुए कई इलाकों में पहली बार मतदान केंद्र बनाए जाने की संभावना है. पहले इलाके के ग्रामीणों को वोट देने के लिए 15 से 20 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता था. 2024 के लोकसभा के चुनाव में यह उम्मीद जताई जा रही है कि ग्रामीणों को वोट देने के लिए लंबा सफर नहीं करना होगा.

Polling stations in Naxal Belt
Polling stations in Naxal Belt
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 7, 2024, 10:47 PM IST

पलामू: लातेहार और पलामू-गढ़वा के कई इलाके ऐसे हैं जहां नक्सलियों के खौफ के कारण मतदान केंद्रों को बदल दिया जाता था. कई इलाके में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे और मतदान करवा कर हेलीकॉप्टर से ही वापस लौट जाते थे. प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी चुनाव का बहिष्कार करता है. पिछले डेढ़ वर्ष में माओवादियों के खिलाफ अभियान ऑक्टोपस चलाया गया है, जिसके बाद बूढ़ापहाड़ के इलाके से माओवादियों की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है, जबकि बिहार सीमा पर भी यही स्थिति बनी हुई है.

पलामू-गढ़वा और लातेहार में दर्जनों मतदान केंद्र को बदल दिया जाता था: 2019 के लोकसभा चुनाव में कई मतदान केंद्रों पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से पोलिंग पार्टी को भेजा गया था. लातेहार का पूरा इलाका चतरा लोकसभा क्षेत्र में है, जबकि पलामू और गढ़वा एक लोकसभा क्षेत्र है. पलामू-गढ़वा और लातेहार के इलाके में लोकसभा चुनाव के दौरान दर्जनों मतदान केंद्र को रीलोकेट किया जाता था. इन मतदान केंद्र पर नक्सलियों के खौफ के कारण मतदान कर्मियों को पहुंचना बेहद ही मुश्किल था.

बूढापहाड़ से सटे हुए से 35 से 40, बिहार सीमा से सटे हुए 20 से 25 जबकि अन्य नक्सल इलाकों के 25 से 30 गांव के मतदान केंद्रों को बदल दिया जाता था. गढ़वा से सटे बूढ़ापहाड़ के इलाके में 15 से 20 गांव को मिलाकर एक मतदान केंद्र बनाया जाता था. मतगड़ी स्थित मतदान केंद्र पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से पोलिंग पार्टी पहुंचती थी और मतदान के बाद अगले दिन वापस लौटती थी. इसी तरह लातेहार के मंडल, बारेसाढ़ समेत कई इलाकों में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे. पलामू के चक के इलाके में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे. लेकिन इस बार हालात बदले हुए है मतदान केंद्रों के रिलोकेशन की संभावना बेहद ही कम है.

बदले गए मतदान केंद्रों पर पैदल जाते हैं लोग, दिन भर का लगता है समय: नक्सली इलाकों में मतदान केंद्र की रीलोकेशन के बाद ग्रामीणों को 15 से 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है. गर्मी के दौरान चुनाव होने पर ग्रामीणों की हालत खराब हो जाती है. ग्रामीणों के जंगल और पथरीले रास्तों का सफर करना पड़ता है. मतगड़ी के इलाके के रहने वाले प्रताप तिर्की बताते हैं कि कई वर्षों से मतदान केंद्रों का रीलोकेशन किया जा रहा है, ग्रामीणों को 15 से 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है और उनका दिन भर का समय लगता है. ग्रामीणों के पास मतदान केंद्र तक पहुंचाने के लिए कोई साधन भी मौजूद नहीं है. ग्रामीणों पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि लोग आसानी वोटिंग प्रक्रिया में भाग ले सकें. उन्होंने कहा कि अगर हालात बदले हैं और ग्रामीणों को नजदीक में मतदान केंद्र मिलता है तो यह बेहद खुशी की बात होगी.

पलामू के जोनल आईजी राजकुमार लकड़ा का कहना है कि एंटी नक्सल अभियान के साथ-साथ गुड गवर्नेंस भी जरूरी है. पुलिस एवं सुरक्षा बलों के मौजूदगी में हालात बदल रहे हैं लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे है. उन्होंने बताया कि लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है.

पलामू: लातेहार और पलामू-गढ़वा के कई इलाके ऐसे हैं जहां नक्सलियों के खौफ के कारण मतदान केंद्रों को बदल दिया जाता था. कई इलाके में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे और मतदान करवा कर हेलीकॉप्टर से ही वापस लौट जाते थे. प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी चुनाव का बहिष्कार करता है. पिछले डेढ़ वर्ष में माओवादियों के खिलाफ अभियान ऑक्टोपस चलाया गया है, जिसके बाद बूढ़ापहाड़ के इलाके से माओवादियों की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है, जबकि बिहार सीमा पर भी यही स्थिति बनी हुई है.

पलामू-गढ़वा और लातेहार में दर्जनों मतदान केंद्र को बदल दिया जाता था: 2019 के लोकसभा चुनाव में कई मतदान केंद्रों पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से पोलिंग पार्टी को भेजा गया था. लातेहार का पूरा इलाका चतरा लोकसभा क्षेत्र में है, जबकि पलामू और गढ़वा एक लोकसभा क्षेत्र है. पलामू-गढ़वा और लातेहार के इलाके में लोकसभा चुनाव के दौरान दर्जनों मतदान केंद्र को रीलोकेट किया जाता था. इन मतदान केंद्र पर नक्सलियों के खौफ के कारण मतदान कर्मियों को पहुंचना बेहद ही मुश्किल था.

बूढापहाड़ से सटे हुए से 35 से 40, बिहार सीमा से सटे हुए 20 से 25 जबकि अन्य नक्सल इलाकों के 25 से 30 गांव के मतदान केंद्रों को बदल दिया जाता था. गढ़वा से सटे बूढ़ापहाड़ के इलाके में 15 से 20 गांव को मिलाकर एक मतदान केंद्र बनाया जाता था. मतगड़ी स्थित मतदान केंद्र पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से पोलिंग पार्टी पहुंचती थी और मतदान के बाद अगले दिन वापस लौटती थी. इसी तरह लातेहार के मंडल, बारेसाढ़ समेत कई इलाकों में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे. पलामू के चक के इलाके में मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से जाते थे. लेकिन इस बार हालात बदले हुए है मतदान केंद्रों के रिलोकेशन की संभावना बेहद ही कम है.

बदले गए मतदान केंद्रों पर पैदल जाते हैं लोग, दिन भर का लगता है समय: नक्सली इलाकों में मतदान केंद्र की रीलोकेशन के बाद ग्रामीणों को 15 से 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है. गर्मी के दौरान चुनाव होने पर ग्रामीणों की हालत खराब हो जाती है. ग्रामीणों के जंगल और पथरीले रास्तों का सफर करना पड़ता है. मतगड़ी के इलाके के रहने वाले प्रताप तिर्की बताते हैं कि कई वर्षों से मतदान केंद्रों का रीलोकेशन किया जा रहा है, ग्रामीणों को 15 से 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है और उनका दिन भर का समय लगता है. ग्रामीणों के पास मतदान केंद्र तक पहुंचाने के लिए कोई साधन भी मौजूद नहीं है. ग्रामीणों पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि लोग आसानी वोटिंग प्रक्रिया में भाग ले सकें. उन्होंने कहा कि अगर हालात बदले हैं और ग्रामीणों को नजदीक में मतदान केंद्र मिलता है तो यह बेहद खुशी की बात होगी.

पलामू के जोनल आईजी राजकुमार लकड़ा का कहना है कि एंटी नक्सल अभियान के साथ-साथ गुड गवर्नेंस भी जरूरी है. पुलिस एवं सुरक्षा बलों के मौजूदगी में हालात बदल रहे हैं लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे है. उन्होंने बताया कि लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है.

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