देहरादून: चुनाव से पहले नेताओं के दल बदल का सिलसिला अमूमन तौर पर देखा जाता है, लेकिन ज्यादातर दल बदल विधानसभा चुनाव के दौरान होती है. क्योंकि, उस दौरान नेताओं को ये लालच होती है कि उन्हें विधानसभा का टिकट दिया जा सकता है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले और खासकर उत्तराखंड में नेताओं के दल बदल के मायने कुछ अलग ही नजर आ रहे हैं. संभावना यह जताई जा रही है कि इस चुनाव से पहले किसी भी पार्टी में शामिल होने के बाद आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें मौका मिल सकता है. उत्तराखंड की राजनीति में घमासान इस वजह से भी मचा हुआ है कि लगातार विपक्ष खाली होता जा रहा है.
बची खुची कांग्रेस भी बीजेपी में हो जाएगी शामिल: उत्तराखंड में मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक पार्टियां हैं, जिनका जनाधार है. दोनों ही राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं. जहां एक ओर विपक्षी दल कांग्रेस अपने नेताओं को एकजुट करने के साथ ही धरातल पर पार्टी को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी प्रदेश को विपक्ष विहीन मानते हुए खुद को बेहद मजबूत बताती है. इसी बीच बीजेपी ने शिगूफा छोड़ते हुए इस बात को कहा है कि कि जल्द ही बची खुची कांग्रेस भी बीजेपी में शामिल हो जाएगी.
बीजेपी प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने कहा कि विपक्ष तो कहीं है ही नहीं. जो कुछ विपक्ष राजनीति में दिखाई दे रहे हैं, वो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चौहान बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम बीजेपी में शामिल होने की तैयारी में है. राष्ट्र के निर्माण को पीएम मोदी ने जो अलख जगाई और भारतीय संस्कृति को मजबूत करने के लिए उन्होंने जो राम मंदिर से कदम बढ़ाया है, उसके बाद से देशभर के लोगों में राष्ट्रहित में आहुति देने की होड़ मची हुई है. वर्तमान स्थिति ये है कि लोग विपक्ष में रहने को तैयार नहीं है, सभी लोग बीजेपी में शामिल चाहते हैं.
वहीं, आदित्य कोठारी ने कहा कि उत्तराखंड में अभी तक 5 हजार से ज्यादा नेता अन्य दलों का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. बावजूद इसके अभी भी हजारों की संख्या में आवेदन बीजेपी में शामिल होने के आए हुए हैं. लिहाजा, लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान बड़ी तादाद में बड़े-बड़े नेता बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं. प्रदेश के कुछ सिटिंग विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री भी बीजेपी के संपर्क में हैं. ऐसे में पार्टी आलाकमान के निर्णय के बाद ही तय किया जाएगा किसको पार्टी में शामिल किया जाए. साथ ही कहा कि पूरा देश विपक्ष विहीन होता जा रहा है. जिसमें उत्तराखंड विपक्ष विहीन हो गया है.
बीजेपी के बुरे दौर की निशानी: उधर, कांग्रेस प्रदेश मीडिया प्रभारी गरिमा दसौनी ने कहा कि ये बीजेपी के बुरे दौर की निशानी है. क्योंकि, बीजेपी में नेताओं का इतना बड़ा क्राइसिस आ गया कि दूसरे दलों के नेताओं के सहारे चुनाव लड़ना पड़ रहा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं रहा? गरिमा के कहा कि बीजेपी का क्या होगा? क्योंकि, क्षमता से ज्यादा नेताओं को अपने पार्टी में शामिल कर लिया है. लिहाजा, भविष्य में बीजेपी के भीतर सिर फुटव्वल की स्थिति होगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी में नई लीडरशिप जन्मेगी.
कांग्रेस में बहादुर लोगों की जरूरत, यह शुभ संकेत: गरिमा दसौनी ने कहा कि साल 1977 में भी काफी संख्या में लोग कांग्रेस छोड़कर चले गए थे, लेकिन इसके बाद 1980 में कांग्रेस पार्टी ने नए लोगों के साथ वापसी की थी. ऐसे में ये कांग्रेस के लिए शुभ संकेत है. क्योंकि, कांग्रेस पार्टी में कायर और डरपोक लोगों की नहीं बल्कि, बहादुर लोगों की जरूरत है. ऐसे में जिसको भी जाना है, वो जा सकता है. गरिमा ने कहा कि बीजेपी यह एक झूठ है कि कांग्रेस के सिटिंग विधायक बीजेपी में शामिल हो रहे हैं.
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