पलामूः दलित के नाम पर राजनीति कैसे होती है, इसका बड़ा उदाहरण मुरुमातु के दलित परिवार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. 30 अगस्त 2022 को पलामू के पांडु थाना क्षेत्र के मुरुमातु में दो दर्जन के करीब दलित परिवार को उजाड़ दिया था. आज भी उजड़े हुए परिवार शरणार्थी के जीवन जी रहे हैं.
उस समय दलितों को उजाड़े जाने के बाद पांडु का इलाका एक सप्ताह तक राजनीति का केंद्र बना रहा. इस दौरान दलितों के लिए जमीन और आवास देने की घोषणा की गई. दलितों को उस दौरान कैंप लगाकर वोटर आईडी और आधार कार्ड बनाया गया. जिस वक्त में दलित परिवारों को उजाड़ा गया, उस वक्त भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष, मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष, सांसद, विधायक, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल समेत कई सामाजिक संगठन मौके पर गए थे. सभी ने दलितों को जमीन और आवास देने की घोषणा की.
अब तक नसीब नहीं हुआ जमीन और घर, बिखर गये कई परिवार
इस घटना के 20 महीने बीत जाने के बाद भी अनुसार परिवारों को घर और जमीन नहीं मिल पाया है. परिवार के बच्चों के लिए पढ़ाई की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है. हालांकि तत्कालीन सीएम की मौजूदगी में एक दलित परिवार को पर्चा दिया गया था. जिस वक्त घटना हुई थी उस वक्त पांडू थाना के पुराने भवन में 20 से अधिक परिवारों को शरणार्थी के रूप में रखा गया था. लेकिन आज कई परिवार बिखर गए और पलायन कर गए हैं.
दलित परिवार के सदस्य संतोष ने बताया कि उनके लिए घर और जमीन की कुछ व्यवस्था नहीं की गई है, वे शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं. उन्हें कहा गया था कि जमीन और घर मिलेगा उसके बाद ही इस जगह को छोड़ कर जाना है. वहीं राधा देवी बताती हैं कि वो इस उम्मीद पर शरणार्थी बनकर रह रही हैं कि उन्हें भी एक दिन जमीन और घर मिलेगा. जिस वक्त घटना हुई थी उस वक्त एससी-एसटी प्रावधानों के तहत कुछ परिजनों को सहायता राशि दी गई पर बाकी को कुछ नहीं मिला.
दलित परिवार का बनाया गया वोटर कार्ड, मतदान के लिए प्रशासन कर रहा जागरूक
मुरुमातु के दलित परिवारों का वोटर कार्ड बनाया गया है. बीएलओ को वोट को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाने के लिए कहा गया है. प्रशासनिक रिकॉर्ड में मात्र दो परिवार है जो थाना के पुराने भवन में शरण लिए हुए हैं. प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार जमीन के लिए समीक्षा की जा रही है. कई परिवारों ने अपना ठिकाना भी बदल लिया है, जिस कारण प्रशासनिक तंत्र को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
"दलित परिवारों को बसाने के लिए प्रशासन और सरकार स्तर पर बात कही गई थी, पार्टी ने लगातार दलितों की आवाज को उठाया था. लेकिन प्रशासन और सरकार ने कुछ नहीं किया, सरकार की उदासीनता और तुष्टिकरण की राजनीति का यह घटना उदाहरण है. तुष्टिकरण के कारण वास्तविक लोगों को लाभ नहीं हुआ, यह घटना काफी जघन्य थी". -अमित तिवारी, जिला अध्यक्ष भाजपा.
"दो डिसमिल जमीन और 25-25 हजार रुपए एक-एक परिवार को देने की बात हुई थी और इसके लिए अनुमति भी मिल गई थी. फिलहाल अपडेट क्या है यह कहा नहीं जा सकता है, उस दौरान भाजपा के नेताओं ने जमकर राजनीति की थी. भाजपा ने राजनीति की लेकिन मदद नहीं की". -राजेंद्र कुमार सिन्हा, जिला अध्यक्ष, झारखंड मुक्ति मोर्चा.
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