देहरादून: चुनाव के दौरान गलियों, चौक-चौराहों और बड़ी जनसभाओं में जितनी तवज्जो भाषणों को दी जाती है. उतना ही महत्व संगीत को भी दिया जाता है. स्थिति ये है कि राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों की तरह पार्टी के गीत भी लॉन्च करते हैं. यह गीत मतदाताओं के बीच न केवल राजनीतिक दल या प्रत्याशी के लिए माहौल बनता है, बल्कि संबंधित राजनीतिक दल और प्रत्याशी की प्राथमिकताओं को भी उजागर करता है. चुनाव में गीतों को लॉन्च करने या इनके जरिए माहौल बनाने की कवायद नई नहीं है. देश में सालों से राजनीतिक दल गीतों को अपना हथियार बनाते रहे हैं. हालांकि लोकसभा चुनाव 2014 से गीतों का महत्व पहले के चुनावों की तुलना में बढ़ा है. अब एक प्रोफेशनल की तरह ही गीतों की लाइन, उनके म्यूजिक और हाई क्वालिटी पिक्चर को तैयार किया जाता है.
लोगों की जुबान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बने गीत: इस मामले में भारतीय जनता पार्टी और खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर पूर्व में बने कई गीत लोगों को काफी पसंद आए. हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने भी इस मामले में खुद को बीस साबित करते हुए कुछ ऐसे गीत जनता के बीच रखे हैं, जिन्होंने लोगों को आकर्षित किया है. पूर्व में पीएम मोदी से जुड़े गीत पिछले लोकसभा चुनाव में धूम मचाते दिखे हैं और इन गीतों ने भारतीय जनता पार्टी का देश में माहौल बनाने का भी काम किया है. हालांकि कांग्रेस ने लड़की हूं लड़ सकती हूं जैसे गीतों के जरिये अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश की है.
क्षेत्रीय भाषा में भी गीतों को लॉन्च करते हैं राजनीतिक दल: चुनाव के दौरान क्षेत्रीय भाषा में भी राजनीतिक दल गीतों को लॉन्च करते हुए सीधे आम जन तक पहुंचाने और उन्हें प्रभावित करने की भी कोशिश करते हैं. इस लोकसभा चुनाव में भी इसी तरह के गीत लॉन्च हो रहे हैं. खास बात यह है कि इन गीतों में राजनीतिक दलों की प्राथमिकताएं भी दिखाई देती हैं. अब तक भारतीय जनता पार्टी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर जो गीत चुनाव के दौरान सुनाई दे रहे हैं, उनमें राम मंदिर और धारा 370 हटाने समेत भगवा जैसे शब्दों को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है. साफ है कि भारतीय जनता पार्टी यह चुनाव राम मंदिर और अपनी हिंदुत्व छवि को आगे रखकर लड़ रही है और इसी संदेश को इन गीतों के माध्यम से जनता तक पहुंचा जा रहा है.
गीतों के जरिए होता है प्रचार: कई स्थानीय लोग गायक भी अपने लोकगीत के जरिए राजनीतिक दलों का प्रचार कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के लिए भी ऐसे ही कुछ लोकगायक पार्टी की लाइन और भाजपा के मुख्य एजेंट से जुड़े विषय के साथ गीतों को तैयार कर रहे हैं, जिन्हें राजनीतिक दल अपने राजनीतिक मंचों पर खूब इस्तेमाल भी कर रहे हैं.
फिल्मी गीतों का भी हो रहा इस्तेमाल: वैसे तो राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के गीत लॉन्च किए गए हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों और प्रत्याशियों के स्तर पर भी अलग-अलग गीतों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई जगह प्रत्याशी फिल्मी गीतों या राष्ट्रभक्ति से जुड़े गीतों को भी अपने वीडियो के साथ जोड़कर इसका उपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसके अलावा अपने क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर फिट बैठने वाले फिल्मी गीतों का भी इस्तेमाल हो रहा है, जबकि क्षेत्रीय भाषा के गीतों को भी विशेष तवज्जो मिल रही है. इस तरह देखा जाए तो चुनाव में गीतों के दम पर बढ़त लेने की ख्वाहिश के साथ कुछ नए प्रयोग किये जा रहे हैं.
कांग्रेस बोली जनता के सवालों से जुड़े मुद्दों पर गीत बनाए बीजेपी: कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि कांग्रेस के प्रत्याशी लोकसभा स्तर पर गीतों को लॉन्च कर रहे हैं और इसके जरिए लोगों तक संदेश पहुंचा जा रहा है. उन्होंने कहा कि भाजपा को जनता के सवालों से जुड़े मुद्दों पर गीत बनाना चाहिए.
गीतों ने बड़े आंदोलन में निभाई अहम भूमिका: वैसे तो गीत मनोरंजन का एक साधन है, लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि इन्हीं गीतों ने कई बड़े आंदोलन भी खड़े किए हैं. देश की आजादी की लड़ाई हो या उत्तराखंड के लिए हुए आंदोलन में इन्हीं गीतों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है. जाहिर है कि गीतों की इस ताकत को राजनीतिक दल अच्छी तरह से जानते हैं. आंदोलन और संघर्ष की इस ताकत को अब राजनीतिक दल राजनीति के लिए भी आजमा रहे हैं और इसका कहीं ना कहीं फायदा भी राजनीतिक दलों को मिल रहा है.
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