कोरबा: छत्तीसगढ़ में 11 सीटों पर चुनाव प्रक्रिया पूरी हो गई. अब रिजल्ट का इंतजार है. इस बार चुनाव में तीसरा चरण छत्तीसगढ़ में काफी महत्वपूर्ण रहा. तीसरे चरण में रायपुर, बिलासपुर जैसे शहरी सीटों पर मतदान हुआ. कोरबा लोकसभा सीट पर भी 7 मई को मतदान पूरा किया गया. कोरबा लोकसभा सीट पर आठ विधानसभा में से कोरबा विधानसभा सीट पर सबसे कम मतदान हुआ है.
विधानसभा चुनाव से कम रहा मतदान प्रतिशत: इस बार लोकसभा चुनाव में कोरबा विधानसभा सीट पर 63.18 फीसदी मतदान हुआ है. अब से ठीक 4 महीने पहले जब विधानसभा चुनाव हुए थे. तब यहां 67 फीसदी मतदान हुआ था. अब 4 महीने में ही कोरबा विधानसभा में 5 फीसदी की गिरावट आई है. राजनीतिक दल गुणा भाग लगा रहे हैं कि आखिर इसका कारण क्या है? चर्चा यह भी है कि मतदान प्रतिशत में जो गिरावट आई है. जिन लोगों ने मतदान नहीं किया है. वो किसके वोटर थे? कम मतदान होने के बाद भी फायदा किसको होगा?
स्वीप अभियान के तहत लगाया गया था एड़ी चोटी का जोर: कोरबा लोकसभा क्षेत्र के ग्रामीण मतदाताओं में इस लोकसभा में काफी उत्साह दिखा. गर्मी में भी लोग घरों से निकले लंबी कतारों में लगे. नाव पर चढ़कर आए और मतदान किया. जबकि कोरबा विधानसभा के शहरी मतदाताओं ने मतदान करने में रुचि नहीं दिखाई. लोकसभा चुनाव के लिए कलेक्टर और निर्वाचन अधिकारी अजीत वसंत की अगुवाई में स्वीप अभियान की कई गतिविधियां संचालित की गई. लगभग प्रतिदिन नुक्कड़ नाटक, रंगोली, निबंध प्रतियोगिता, साइकिल रैली, बाइक रैली से लेकर स्वीप की ओर से क्रिकेट मैच तक खेला गया. मतदाताओं को जागरूक करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया गया, लेकिन सारे प्रयास विफल रहे. विधानसभा की तुलना में मतदान प्रतिशत 5% गिर गया.
कोरबा लोकसभा के सभी विधानसभा सीटों पर मतदान प्रतिशत: कोरबा लोकसभा में मतदान का प्रतिशत स्थिर रहा है. साल 2019 में जितनी वोटिंग हुई थी. साल 2024 में भी लगभग उतनी ही वोटिंग हुई है. इस वर्ष मतदान का प्रतिशत 75.63 रहा है, जबकि साल 2019 में कुल मतदान का यह आंकड़ा 75.34 था. इसके अनुसार इस बार के मतदान में सिर्फ 0.29 प्रतिशत की ही वृद्धि दर्ज हुई है. कोरबा लोकसभा के आठ विधानसभा क्षेत्र में शहरी विधानसभा वाले क्षेत्र कोरबा में सबसे कम 63.18 फीसदी वोटिंग हुई है, जबकि रामपुर विधानसभा में 77.80 फीसदी, कटघोरा में 74.81 फीसदी, पाली-तानाखार में 79.58 फीसदी, भरतपुर सोनहत में 82.45 फीसदी, मनेंद्रगढ़ में 71.46 फीसदी, बैकुंठपुर में 80.3 फीसदी और मरवाही में 78.62 फीसदी मतदान हुआ है.
विधानसभा चुनाव में जीते थे लखनलाल देवांगन: लोकसभा चुनाव के ठीक 4 महीने पहले विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं. कोरबा विधानसभा में उस वक्त भी कांटे की टक्कर थी. कांग्रेस सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री जयसिंह अग्रवाल और लखनलाल देवांगन के बीच मुकाबला था.लखनलाल देवांगन ने विधानसभा में 25 हजार 629 वोट से जीत दर्ज की थी और कैबिनेट मंत्री बन गए. विधानसभा की वो लीड लोकसभा में भी रिपीट होगी या नहीं? अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं. विधानसभा में मतदान प्रतिशत 67 फीसदी था, लेकिन अब 5 फीसद की गिरावट आ गई है, जिस सीट से लखनलाल देवांगन जीतकर विधायक बने और कैबिनेट मंत्री बने. इसी सीट से मतदान प्रतिशत का गिरना कहीं ना कहीं कई प्रश्नों को भी जन्म देता है. भाजपाइयों की मानें तो शहर में लोग भाजपा को वोट देते हैं. शहरी मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ रहता है. इस लिहाज से मतदान प्रतिशत का कम होना, कहीं न कहीं भाजपा के लिए बुरी खबर की ओर इशारा जरूर कर रहा है.
कोरबा लोकसभा सीट की फैक्ट फाइल
- कुल मतदान केंद्र-2023
- कुल विधानसभा - 8
- कुल मतदाता- 16 लाख 18 हजार 864
- पुरुष- 8 लाख 3 हजार 520
- महिला- 8 लाख 15 हजार 292
- थर्ड जेंडर-52
- लिंगानुपात- 1019
- दिव्यांग मतदाता- 14 हजार 335
- 18 से 19 वर्ष के मतदाता- 46 हजार 831
- 85+ मतदाता- 6 हजार 366
एन वक्त पर मौसम का खराब होना भी फैक्टर: मतदान वाले दिन 7 मई को कोरबा और कटघोरा जैसे शहरी क्षेत्र में मतदान समाप्त होने के ठीक पहले लगभग साढे चार बजे मौसम बिगड़ गया था. आंधी-तूफान के साथ ही तेज बरसात हुई, इससे भी मतदान प्रतिशत प्रभावित हुआ है. शहरी वोटर भाजपा के कैडर वोटर होते हैं. इस बात से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी अवगत है. यही कारण है कि रायपुर सांसद सुनील सोनी ने निर्वाचन आयोग को मतदान के दौरान ही एक आवेदन दिया और मौसम बिगड़ने, बिजली के बाधित होने का हवाला देते हुए मतदान की अवधि में 2 घंटे का इजाफा करने का निवेदन किया. हालांकि मतदान 6:00 बजे ही समाप्त कर दिया गया था.
जानिए क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस बारे में ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट शिव अग्रवाल से बातचीत की. उन्होंने कहा कि, "यह बेहद आश्चर्य की बात है. जिला प्रशासन की ओर से इस बार अन्य जोर लगाया गया. जिले के मुख्यालय का क्षेत्र है यहां सबसे ज्यादा गतिविधियां चलाई गई. सामाजिक संगठनों ने भी मतदान करने को लेकर जन जागरण चलाया, लेकिन यह सब नाकाम रहे. यह दर्शाता है कि मतदाताओं को जगाने में राजनीतिक पार्टियां असफल रहीं. इसका एक फैक्टर यह भी है कि विधानसभा चुनाव में लोगों को जमकर प्रलोभन मिला था. वह प्रलोभन इस बार लोगों को नहीं मिला, इसके कारण भी कम मतदान हुआ. ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो यहां संसाधनों का अभाव है. लोग पैदल, नाव के माध्यम से कई किलोमीटर पैदल चलकर मौसम खराब के बाद भी मतदान करने पहुंचे. वहां अच्छा मतदान होना शहरी सुविधाओं के मुंह पर तमाचा है. शहर में सारे संसाधन मौजूद हैं, लेकिन इसके बाद भी लोग अपने घर से नहीं निकलते. यह बेहद शर्मनाक स्थिति है. पढ़े-लिखे लोग भी अपने कान में रुई डालकर सोते रहते हैं, जिस एक वोट से उनकी तकदीर बदल सकती है. उसका भी वह दुरुपयोग करते हैं और मतदान नहीं करते."